दून में बेहद पुरानी ऐतिहासिक इमारतों के अवशेष मौजूद हैैं लेकिन इनका इतिहास कहीं खो गया है। दून में ब्रिटिश रूल के दौरान कई इमारतें बनीं थीं इन इमारतों का अपना कोई इतिहास जरूर रहा होगा लेकिन इसे संजोने की कोशिश नहीं की गई। इन इमारतों के आस-पास भी कोई ऐसी जानकारी मेंशन नहीं है जिससे टूरिस्ट्स या स्थानीय लोगों को इनका महत्व पता चल सके। राज्य गठन के 24 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन इतने समय में भी इनके जीर्णोद्धार और इनका इतिहास खंगालने की कोशिश नहीं की गई। ये विरासतें गुमनाम हो रही हैैं।

देहरादून (ब्यूरो) देश के पहले प्रधानमंत्री पं। जवाहर लाल नेहरू का प्रिंस चौक के पास पुरानी जेल के स्थान पर नेहरू वार्ड यकीनन आज भी मौजूद है। लेकिन, दून के पुराने वाशिंदों को छोड़ दिया जाए तो शायद अधिकतर युवा पीढ़ी को इस बारे जानकारी होगी। कारण, संबंधित विभाग इसको लेकर किसी भी प्रकार का प्रचार-प्रसार तक नहीं करता। मसलन, प्रिंस चौक की कुछ दूरी पर सड़क के किनारे जहां पर नेहरू वार्ड स्थापित है, उसके बाहर पर एक साइन बोर्ड तक नहीं है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि चाचा नेहरू के ब्रिटिशकाल के दौरान के इतिहास को कैसे युवा पीढ़ी जान व समझ सकती है। हालांकि, नेहरू वार्ड को कुछ वर्षों पहले जरूर सजाया व संवारा गया। लेकिन, बाहर से आने वाले पर्यटक एक नजर देखने पर कोई नहीं पहचान पाएंगे कि आखिर दून में किस स्थान पर नेहरू वार्ड मौजूद है।

वार्ड में चाचा नेहरू की यादें
दअरसल, पं। नेहरू का दून से गहरा लगाव रहा है। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वे वर्ष 1906 में वे मसूरी पहुंचे थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे दून की जेल में 4 बार बंद रहे। इसी दौरान जेल में वर्ष 1932 से 1941 के बीच पं। नेहरू 878 दिन जेल में कैद रहे। इस दौरान उन्होंने भारत एक खोज के कई अंश लिखे थे। आज भी नेहरू वार्ड में उनका किचन, बेड, बाथरूम, टेबल, कुर्सी मौजूद है। बताया जाता है कि वर्ष 1939 में उन्होंने इंदिरा गांधी के नाम पत्र भी लिखा। पं।नेहरू मृत्यु से एक दिन पहले यानी 26 मई 1964 को दून आए थे और सर्किट हाउस में रुके थे।

107 साल पुरानी है इनामुल्लाह बिल्डिंग
दून शहर के गांधी रोड पर स्थित करीब 107 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक इमारत की पहचान महज एक इमारत के नाम से है। जबकि, ये वही बिल्डिंग है, जब 1917 में देश में अंग्रेजी हुकूमत थी। तब दून के इनामुल्लाह शेख ने करीब 400 मीटर लंबी बिल्डिंग बनवाई थी। बताया जाता है कि इस इमारत को उन्होंने गेस्ट हाउस के रूप में बनवाया था। उन्हें के नाम पर वर्तमान में इस इमारत का नाम इनामुल्लाह बिल्डिंग पड़ गया। इस इमारत की खासियत ये है कि ये इमारत एक ही लिंटर पर बनाई गई है। जिसमें सीमेंट का नहीं, बल्कि चने व उड़द की दाल का उस वक्त इस्तेमाल किया गया। वर्तमान में दो मंजिला इमारत पर अब कई दुकानें संचालित हो रही हैं। दून शहर में इसकी पहचान एक बड़े बाजार के तौर पर बनी हुई है। इसके अलावा इस बिल्डिंग की सूरत में अब काफी बदलाव आ चुका है। लेकिन, दून या फिर बाहर से आने वाले इस इमारत को केवल इनामुल्लाह बिल्डिंग के तौर पर जानते हैं। जबकि, संबंधित विभाग को इसके 107 सालों के सफर के बारे में जानकारी देनी चाहिए। जिससे रिसर्च स्कॉलर, बाहर से आने वाले पर्यटक इसके महत्व को जान सकें।

रेलवे स्टेशन पर 1983 की बोरिंग
दून रेलवे स्टेशन के पास मौजूद है रेलवे का बोरिंग। बताया जा रहा है कि इस बोरिंग का निर्माण 80 के दशक में किया गया था। लेकिन, अब यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। अब रेलवे इसका इस्तेमाल भी नहीं करता है। रेलवे अधिकारियों की मानें तो वर्षों पहले तक रेलवे इसी बोरिंग से पानी की सप्लाई करता था। लेकिन, आम लोगों व बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए ये अबूझ पहेली जैसा ही नजर आता है। अक्सर इधर से गुजरने वाले लोग आपस में सवाल करते हैं कि आखिर ये चीज है क्या। जबकि, इसके बाहर भी इस बारे में जानकारी को लेकर कोई विवरण नहीं दिया गया है।

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Posted By: Inextlive