देहरादून जिले का एक सुदूरवर्ती जनजातीय गांव धीरे-धीरे जल समाधि ले रहा है। बिना कोई व्यवस्था किये 72 परिवारों वाले इस गांव के लोगों को 48 घंटे के नोटिस पर गांव से हटा दिया गया। अब ये लोग गांव के जूनियर हाई स्कूल और कुछ अन्य जगहों पर शरण लिये हुए हैं। लगातार बढ़ते जल स्तर के बीच रोड़ियों के ढेर पर बैठे ग्रामीण धीरे-धीरे अपने घरों को जल समाधि लेते देख रहे हैं। गांव की बेटियां अपनी ससुराल से डूबते मायके को देखने आ रही हैं। घर-परिवार के लोगों से गले लगकर रो रही हैं। गांव में सुबह से शाम तक रोने-धोने का माहौल बना हुआ है। उधर गांव के घर खेत-खलिहान मंदिर और बड़े-बड़े पेड़ धीरे-धीरे पानी में समाते जा रहे हैं। यह कहानी कालसी विकास खंड के लोहारी गांव की है जो 120 मेगावाट की व्यासी जल विद्युत परियोजना की भेंट चढ़ा है।

देहरादून (ब्यूरो)। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने ट्यूजडे को दून से करीब 90 किमी दूर जाकर लोहारी गांव का रियलिटी चेक किया। गांव अब चारों ओर से पानी से घिर गया है। एक मंजिला घरों की छत और दोमंजिला घरों के ऊपर का हिस्सा अब भी पानी के बाहर हैं। गांव के चारों ओर के खेत भी डूब चुके हैं। गांव के 72 परिवारों के लोग अब तक के चढ़ चुके जलस्तर से कुछ ऊपर बने जूनियर हाई स्कूल के भवन में रह रहे हैं। कुछ परिवार आसपास के कुछ पुराने घरों में रह रहे हैं। सभी लोग एक साथ खाना बना रहे हैं। घरों का ज्यादातर सामान बाहर ही पड़ा हुआ है। राशन एक कमरे में रखा गया है।

रो पड़ती हैं बेटियां
गांव वालों को ढांढ़स बंधाने के लिए लगातार उनके रिश्तेदार पहुंच रहे हैं। मायके के डूबने की खबर सुनकर बेटियां भी आ रही हैं और डूबते मायके का देखकर रो पड़ती हैं। गांव वाले उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं कि रोओ मत जल्दी कहीं और घर बन जाएगा, लेकिन यह कहते हुए गांव वाले खुद रो पड़ते हैं।

रोड़ी के टीले में बैठ देख रहे डूबते घर
गांव के पास ही लखवाड़ डैम के लिए कुछ समय पहले स्टोन क्रशर लगाया गया था। इससे बनी रोड़ियों के गांव के पास दो बड़े ढेर हैं। पहला ढेर स्कूल के पास है और दूसरा गांव के पास। दोनों ढेर अभी डूबे नहीं हैं, लेकिन इन ढेरों के बीच के हिस्सा भी जलमग्न हो चुका है। गांव वालों में दोनों टीलों के बीच दो बल्लियां रख दी हैं। इनसे होकर ग्रामीण, उनके रिश्तेदार और ससुराल से आई बेटियां गांव के पास पहुंच रही हैं और डूबते घरों को आखिरी बार निहार रहे हैं।

नहीं मिली जमीन
ग्रामीणों के पास शिकायतों के ढेर हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से बातचीत करते हुए ग्रामीणों ने बताया कि वे लगातार जमीन से जमीन की मांग करते रहे हैं। कैबिनेट में यह प्रस्ताव लाया भी गया, लेकिन बार में निरस्त कर दिया गया। परियोजना के लिए उनकी जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े नौ बार एक्वायर किये गये। लोगों को उसका मुआवजा भी दिया गया। लेकिन घरों और खेतों के मुआवजे के नाम पर लोगों के खातों में 2 लाख से लेकर 6 लाख रुपये तक डाले गये। यह घरों का मुआवजा है, गौशालाओं का या खेतों का यह कोई नहीं बता रहा। यह भी जानकारी नहीं है कि उन्हें किस रेट से मुआवजा मिल रहा है। इसके अलावा जो जमीन एक्वायर की गई थी, उससे ज्यादा हिस्सा पानी में डूब गया है। पानी कहां तक भरेगा, लोगों को यह भी जानकारी नहीं है।

जून में किया था प्रदर्शन
ग्रामीणों का कहना है कि डैम में पानी भरना पिछले वर्ष जून में शुरू हुआ था। इसके साथ ही उन्होंने डैम साइट पर 120 दिन तक प्रदर्शन किया था। लोगों ने पानी में खड़े होकर जल सत्याग्रह भी किया था। लेकिन, उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया गया। 2 अक्टूबर 2021 की रात को 17 ग्रामीणों को गिरफ्तार कर बाकी को खदेड़ दिया गया। उन पर बलवा करने की धाराएं लगाई गई। निचली कोर्ट से उन्हें जमानत तक नहीं मिली। हाईकोर्ट से जमानत लेनी पड़ी।

नहीं आया कोई अधिकारी
डीएम डॉ। आर। राजेश कुमार ने मंडे को आदेश दिये थे कि मानवीय आधार पर लोहारी गांव के लोगों के रहने की अस्थाई व्यवस्था की जाए। लेकिन ट्यूजड दोपहर बाद तक यहां कोई अधिकारी या कर्मचारी नहीं पहुंचा। स्कूल भवन और आसपास के घरों में रह रहे लोगों के लिए पीने के पानी तक ही व्यवस्था नहीं है। दो दिन तक टैंकरों से पानी भेजा गया, लेकिन अब टैंकर भी नहीं भेजे जा रहे हैं। लोग लगातार उल्टी-दस्त के शिकार हो रहे हैं। ग्रामीणों को कहना है कि कुछ लोग डिप्रेशन के शिकार हो गये हैं। उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है।

Posted By: Inextlive