Dehradun News: पेरेंट्स बनने की उम्मीद अब आईवीएफ पर टिकी
देहरादून, ब्यूरो: आजकल कई कपल्स पेरेंट्स बनने की कोशिश में हर तरफ से निराश होने के बाद आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) को आखिरी सहारा मान रहे हैं। दून में मौजूद आईवीएफ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि विमेंस और मेन्स दोनों में फर्टिलिटी कमजोर होने के कई कारण सामने आते हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक, रोजाना 15-20 पेसेंट ऐसे आते हैं जो इंफर्टिलिटी (बांझपन) की समस्या से परेशान हैं। इसकी वजह बदलती लाइफस्टाइल, स्ट्रेस, गलत खानपान, और स्मोकिंग जैसी आदतें हो सकती हैं। खासकर युवा पीढ़ी में ये प्रॉब्लम तेजी से बढ़ रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सही समय पर इलाज शुरू करने और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने से इस प्रॉब्लम से काफी हद तक बचा जा सकता है। वहीं, टेक्नोलॉजी की मदद से आज आईवीएफ जैसी प्रोसेस उन कपल्स के लिए उम्मीद की किरण बन गई हैं, जो लंबे समय से पेरेंट्स बनने की कोशिश कर रहे हैं। लेट मैरिज
आजकल लेट मैरिज का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसके साथ ही फर्टिलिटी से जुड़ी परेशानियां भी आम हो रही हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसकी सबसे बड़ी वजह है महिलाओं का पहले करियर पर फोकस करना और शादी में देरी करना। डॉक्टर्स का कहना है कि बढ़ती उम्र के साथ खासतौर पर महिलाओं में इंफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है। उनके पास जो कपल्स आईवीएफ का सहारा लेने आते हैं, उनमें से ज्यादातर के मामले में लेट मैरिज का फैक्टर देखने को मिलता है। एज और फर्टिलिटी का सीधा रिलेशन कंसीव करने के समय पर दिखाई देता है। एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि अगर शादी में देरी हो रही है, तो सही समय पर डॉक्टर से कंसल्ट करें और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं ताकि फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं से बचा जा सके।बढ़ती उम्र से नार्मल प्रेग्नेंसी पर खतराडॉक्टर्स का कहना है कि उम्र बढऩे के साथ नार्मल प्रेग्नेंसी में दिक्कतें बढऩे लगती हैं। खासकर 35 साल की उम्र के बाद मानसिक विकार, जिसे मेडिकल टर्म में डाउन सिंड्रोम कहा जाता है, का खतरा बढ़ जाता है। 35 की उम्र के बाद इसके चांस 50 परसेंट तक होते हैं, जो 40 साल से ऊपर की महिलाओं में 70-80 परसेंट तक पहुंच जाते हैं। यह एक ऐसी कंडीशन है जो प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चे के बॉडी और ब्रेन के डेवलपमेंट में रुकावट डालती है। ये होती है एज लिमिट एज ---- चांस --------------25 - 30 --80 परसेंट 30 - 35 -- 50 परसेंट 35 - 40 -- 30- 40 परसेंट
40 के ऊपर 20 परसेंट आईवीएफ का सक्सेस रेट बॉडी टू बॉडी डिपेंड करता है कई बार पहली बार में ही पोसिटिव रिजल्ट मिल जाते है, कई बार 2 से 3 अटेम्प्ट लगते है। सबसे अहम बात यह है कि अपनी लाइफस्टाइल को सुधारें। हेल्दी डाइट, रेगुलर एक्सरसाइज, और स्ट्रेस फ्री लाइफस्टाइल से न सिर्फ प्रेग्नेंसी के चांसेस बढ़ते हैं, बल्कि ट्रीटमेंट का सक्सेस रेट भी बेहतर होता है।-डॉ। सुमिता प्रभाकर, आईवीएफ एक्सपर्ट, सीएमआई हॉस्पिटल पहले के समय में जल्दी शादी होने से प्रेग्नेंसी का प्रेशर कम होता था। लेकिन आजकल शादी में देरी करने के कारण कई कपल्स पर शादी के कुछ समय बाद ही फैमिली प्लानिंग का दबाव बनने लगता है। जिसका स्ट्रेस भी खतरनाक सभी हो रहा है। इसके अलावा देखा जाये तो मेन और वीमेन दोनों की ही लाइफ स्टाइल ?राब होते जा रहे है जिसकी वजह से दोनों में इंफर्टिलिटी की प्रॉब्लम हो रही है। -डॉ। प्रीती पांडे, गाइनकालजिस्ट, उत्तरांचल डेंटल एंड मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट
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पीसीओडी भी है खतरनाक आजकल की बदलती लाइफस्टाइल लड़कियों की सेहत पर बड़ा असर डाल रही है। देर तक एक जगह बैठकर काम करना, वर्कआउट न करना, और जंक फूड या पैकेट वाले खाने पर डिपेंडेंट रहना आम हो गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसी वजह से कम उम्र, खासकर टीनेज में ही लड़कियां पीसीओडी जैसी प्रॉब्लम का शिकार हो रही हैं। पीसीओडी का सीधा असर फर्टिलिटी पर पड़ता है और इसकी वजह से लड़कियों को इरेगुलर पीरियड्स जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बड़ी समस्या यह है कि कई लड़कियां इस प्रॉब्लम को इग्नोर कर देती हैं, जो आगे चलकर कंसीव करने में मुश्किलें पैदा करता है। टीवी और इंफर्टिलिटी का कनेक्शन
कई बार हमारी मौजूदा परेशानियों की जड़ पुराने समय में छुपी होती है। डॉक्टर्स का कहना है कि कुछ लोग टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) जैसी गंभीर बीमारी को इग्नोर कर देते हैं, जो आगे चलकर बड़ी समस्या बन सकती है। खासतौर पर, टीबी की वजह से महिलाओं की ट्यूब्स ब्लॉक हो जाती हैं, जिससे इंफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है। पहले के समय में लोगों को इस बीमारी से होने वाली प्रॉब्लम्स के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती थी। ऐसे में महिलाओं को बांझ करार दे दिया जाता था, लेकिन असल वजह पर ध्यान नहीं दिया जाता था। आज के समय में जब मेडिकल साइंस और इंफॉर्मेशन की पहुंच बढ़ी है, तो ऐसे मामलों की पहचान करना आसान हो गया है। दून में कम एयर पॉल्यूशन, लेकिन खतरे फिर भी बरकरारदून की हवा भले ही बाकी शहरों की तुलना में पॉल्यूशन फ्री हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहां कोई खतरा नहीं है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि सिर्फ एयर पॉल्यूशन ही नहीं, बल्कि ग्राउंड वाटर का कंटामिनेशन, आसपास फैली गंदगी और कचरा भी सेहत पर बुरा असर डालते हैं। इसके अलावा, हम जो दूध या दूसरे फूड आइटम खाते हैं, उनमें भी केमिकल की मिलावट आम बात हो गई है। साथ ही, दून में भी स्मोकिंग और ड्रिंकिंग की आदतें तेजी से बढ़ रही हैं, जो हेल्थ को उतना ही नुकसान पहुंचाती हैं जितना बड़े शहरों में। इन सभी वजहों से बीमारियों और सेहत से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं। ये है कारण खराब लाइफस्टइल पोल्लुशन लेट मैरेज प्रेग्नेंसी में देरी स्ट्रेस एक्ससरसाइज नहीं करना एलकोहॉल