दून के पलटन बाजार स्थित सीएनआई स्कूल को शहर में शिक्षा के लिए पहला प्रयास माना जाता है। इसे मिशन स्कूल के नाम से जाना जाता था। यह स्कूल हालांकि क्रिश्चियन मिशनरी की ओर से खोला गया था लेकिन बाद के दिनों में इसी स्कूल में घटी एक घटना दून में एंग्लो-वैदिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार का कारण भी बनी। दून के इतिहास में रुचि रखने वाले जन विज्ञान के विजय भट्ट के साथ आज हम बिसरी विरासत में मिशन स्कूल और दून में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।

देहरादून ब्यूरो। मिशन ऑफ नॉर्दन इंडिया (सीएनआई) स्कूल की स्थापना वर्ष 1854 में अमेरिकन प्रेसबाइटेरियन मिशन ने की थी। इसके संस्थापक और संचालक एक पादरी थे, जिनका नाम मि। जैक हुड साइड था। इसी दौर में दून के आसपास की एपी मिशन ने कुछ और स्कूल खोले। बताया जाता है कि पहले इस स्कूल को मौजूद तहसील वाली जमीन पर खोलने का विचार बनाया गया था, लेकिन यह जमीन मिश्नरी को नहीं मिल पाई, इसके बाद एक अंगे्रेज अधिकारी ने अपने रकम खर्च कर पलटन बाजार के पास की जमीन खरीदी और स्कूल शुरू किया गया। 1854 में सीएनआई स्कूल मिडिल तक बनाया गया। 1910 में इसे हाई स्कूल बनाया गया।

100 साल पुरानी बिल्डिंग
पलटन बाजार में सीएनआई स्कूल आज जिस बिल्डिंग में चल रही है, वह 1020 में बनी थी। यानी कि बिल्डिंग 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है। उस दौर में इसी आर्किटेक्ट पर आधारित कुछ अन्य बिल्डिंग देहरादून में बनाई गई। इनमें मौजूदा लैंसडौन चौक के पास का इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल और कचहरी परिसर की एक बिल्डिंग भी शामिल हैं। फॉरेस्ट स्कूल को बाद में बड़ा रूप देकर इसे फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट का रूप दिया गया।

मिश्नरी से आर्य आर्य समाज तक
मिश्नरी द्वारा स्थापित दून का सीएनआई स्कूल ही बाद में एक घटना के कारण दून में आर्य समाज की स्थापना और एंग्लो-वैदिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण बना। कहा जाता है कि सीएनआई स्कूल में पढऩे वाले बच्चों को शिक्षा के साथ ही क्रिश्चियन धर्म के बारे में भी शिक्षा दी जाती थी। इससे इस स्कूल के कई बच्चे ईसाई धर्म की ओर झुक जाते थे। एक व्यवसायी के दो बेटे भी सीएनआई स्कूल में ईसाई तौर-तरीके अपनाने लगे। सनातनी पिता ने जब उन्हें रोकनेे का प्रयास किया तो वे ईसाई धर्म अपनाने तक उतारू हो गए। हालांकि स्वामी दयानन्द सरस्वती के प्रयास से वे आर्य समाजी बन गये।

धर्म पर वाद-विवाद
इसी बीच वर्ष 1879 में हरिद्वार में कुंभ मेला लगा। स्वामी दयानन्द सरस्वती कुंभ मेले में आये और वहां से देहरादून के लिए चले। वे 14 अप्रैल को देहरादून पहुंचे। यहां स्वामी दयानन्द सरस्वती से कई गणमान्य लोगों ने भेंट की। इसी दौरान किसी ने उन्हें सीएनआई स्कूल में दो लड़कों के ईसाई बनने की जिद के बारे में बताया। कुछ दिन बाद स्वामी दयानन्द सरस्वती स्कूल पहुंचे। बताते हैं कि वहां धर्म को लेकर स्वामी दयानन्द सरस्वती और पादरी मि। जैस हुकसाइक के बीच धर्म को लेकर गूढ़ परिचर्चा हुई। इस परिचर्चा को सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इतने तर्क पूर्ण तरीके से अपनी बात रखी कि सुनने वाले उनके मुरीद हो गये।

आर्य समाज की जड़ें जमी
हालांकि इस घटना से पहले भी दून में आर्य समाज को मामने वाले कुछ लोग थे। लेकिन सीएनआई स्कूल की परिचर्चा के बाद न सिर्फ ईसाई बनने पर उतारू दोनों लड़के आर्य समाजी हो गये, बल्कि दून के कई अन्य लोग भी आर्य समाज में शामिल हो गए। यहीं से दून में एंग्लो-वैदिक शिक्षा का प्रसार शुरू हुआ। डीएवी स्कूल और डीएवी कॉलेज इसका उदाहरण है। बाद में वर्ष 1902 में ज्योति स्वरूप भटनागर ने 6 छात्राओं के साथ अपनी पत्नी महादेवी भटनागर के नाम में महदेवी कन्या पाठशाला की शुरुआत की, जिसने बाद में दौर में दून में महिला शिक्षा के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Posted By: Inextlive