Tree Felling in Dehradun Uttarakhand: कितना बदल गया ग्रीन दून, पेड़ों की छांव भी नहीं हो रही नसीब
देहरादून,(ब्यूरो): Tree Felling in Dehradun Uttarakhand: ये यकीन नहीं हो रहा है कि ये वही दून है जिसे कभी रिटायर्ड लोगों का शहर कहा जाता था। तब सड़कों से लेकर जहां भी नजर जाती आम-लीची से लकदक बाग-बगीचे और गन्ने व बासमती से लहलहाते खेत नजर आते थे। लेकिन राजधानी बनने के बाद यहां शहरीकरण की ऐसी रेस शुरू हुई कि नेचुरल सोर्सेस के संरक्षण के सवाल कोसों पीछे छूट गए। हरियाली के शहर में आज हर तरफ कंक्रीट के जंगल दिखाई देते हैं।
अब हरिद्वार बाईपास रोड की तैयारी
रोड की बात करें तो सबसे पहले चकराता रोड से पेड़ों का सफाया शुरू हुआ। रोड किनारे राहगीरों को छांव देने वाले पेड़ रायपुर और सहस्रधारा समेत अन्य रोड से साफ कर दिए गए हैं। हरिद्वार रोड पर बचे-खुचे पेड़ लोगों को चिलचिलाती धूप में छांव के बीच सुकून का अहसास करा रहे हैं। वहीं रोजगार का भी जरिया बने हैं, लेकिन कुछ दिन बाद ये पेड़ भी विकास की भेंट चढ़ जाएंगे।
बचे-खुचे पेड़ रहने दो सरकार
सड़कों के किनारे घनी छांव में आते-जाते लोग सुस्ता लेते थे, लेकिन सड़कों के चौड़ीकरण के नाम पर जिस तरह हजारों पेड़ों का सफाया किया जा रहा है उससे दून की सड़कों से भविष्य में पेड़ों वजूद मिट जाएगा। रिकॉर्ड तोड़ गर्मी अलार्मिंग सिचुएशन है। यह संकेत दे रहे हैं कि अधिक से अधिक पेड़ लगाओ और उनका संरक्षण भी करो। पर्यावरणविद् ही नहीं आम लोग भी सरकार से गुहार लगाने लगे हैं कि बचे-खुचे पेड़ों को जिंदा रहने दें। पहली बार दून का टेंपरेचर मई से लेकर अब तक लगातार 40 पार है। पेड़ रहेंगे, तो पर्यावरण शुद्ध रहेगा और तपती दुपहरी में लोगों को छांव भी मिलती रहेगी।
पेड़ों के अंधाधुंध कटान से वायु प्रदूषण की स्थिति मानक से तीन से चार गुना तक पहुंच गया है। जिस रिस्पना और बिंदाल नदी को एक दौर में सदानीरा कहा जाता था, वहां अब पानी की जगह गंदगी बह रही है।
कट गए लाखों पेड़
राज्य बनने के 23 साल के भीतर सरकारी आंकड़ों में ही करीब 70 हजार से अधिक पेड़ कट चुके हैं। वास्तिविकता में यह आंकड़ा लाखों में है। हर साल पर्यावरण संरक्षण के नाम पर हजारों पौधे लगाए जाते हैं, मगर उनकी प्रकृति सजावटी प्रजाति के पादपों से आगे नहीं बढ़ पाती। लिहाजा, शहर के 20 किमी। के दायरे में ही तापमान में आठ डिग्री तक का अंतर पाया गया है। साफ है कि जहां जितनी संख्या में पेड़ कम हैं, वहां का तापमान उतना ही अधिक रहता है।
2000
के लगभग पेड़ किए गए हैं अब तक ट्रांसप्लांट
10752
पेड़ काटे गए हैं दून-दिल्ली एक्सप्रेस वे प्रोजेक्ट के लिए
6500
पेड़ विकासनगर-पांवटा मार्ग से काटे गए
8000
पेड़ काटे गए दून-पांवटा मार्ग के लिए
2000
हजार पेड़ काटे गए चकराता रोड के चौड़ीकरण के लिए
2200
पेड़ काटे गए सहस्रधारा रोड से ये फलदार पेड़ किए ट्रांसप्लांट
आम
जामुन
लुकाट
गुलमोहर
जर्कन
सिल्वर
ओक
तुन
रीठा सेमल
कंजी
छतुन पेड़ों के कटने से नुकसान
- पर्यावरण हो रहा तेजी से प्रदूषित
- साफ हवा लेने में घुट रहा दम
- दून में भी भीषण गर्मी का प्रकोप
- सड़क किनारे नहीं मिल रही छांव
- सड़कों से गायब हो रही हरियाली
- रोड चौड़ीकरण के लिए काटे जा रहे पेड़
- सड़क किनारे बचे-खुचे पेड़ों को बचाने की मांग
- पर्यावरण हो रहा असंतुलित, बढ़ रहा बीमारियों का प्रकोप
- पेड़ लगाने के साथ ही पेड़ों के संरक्षण का भी जिम्मा लें
छांव के साथ छिन रहा रोजगार
सड़क किनारे वर्षों पुराने पेड़ न केवल राहगीरों को छांव दे रहे हैं, कई युवाओं का रोजगार भी चला रहे हैं। हरिद्वार बाईपास रोड पर जगह-जगह पर पेड़ों के नीचे कोई चाय बेच रहा है, तो कोई छोले-कुल्चे तो कोई गन्ने का जूस तो लीची-आम। तपती दुपहरी में पेड़ों के नीचे एसी-कूलर की हवा भी कुछ नहीं है। शुद्ध और ताजी हवा यहां आने वाले हर व्यक्ति सुकून देती है। यहां वजह है कि लोग कार हो या मोटरसाइकिल वाले सभी गर्मी से राहत को यहां जरूर ठहरते हैं। लेकिन अफसोस इस बात है कि रोड चौड़ीकरण के चलते अगले साल तक ये पेड़ भ्री कट जाएंगे।
मैं कई साल से हरिद्वार रोड पर छोले-कुल्चे बेचता हूं। गर्मी के दिनों में लोग अक्सर पेड़ की छांव के चलते यहां पर आते हैं और सुकून से खाते-पीते हैं, लेकिन पेड़ नहीं रहेगा तो मेरा रोजगार छिन जाएगा।
बृजेश कुमार, व्यापारी
मैं देहरादून में ही एक कंपनी में मार्केटिंग का काम रहता हूं। बाजार में अक्सर घूमना होता है। मैं बाजार की बजाय हरिद्वार बाईपास रोड से गुजर कर पेड़ की छांव में जूस आदि पीता हूं। शहर में कहीं पेड़ खड़े होने के लिए बचे ही नहीं है।
अंकित यादव, स्थानीय व्यक्ति
मोहम्मद आलम, व्यापारी सड़कों के किनारे पेड़ होने जरूरी हैं। पेड़ क्यों जरूरी है। 43 डिग्री पार कर गए पारे ने बता दिया है। अभी भी सरकार को चेतना चाहिए। कम से कम जो पेड़ अब रोड किनारे बचे हैं उन्हें नहीं काटा जाए। ज्यादा से ज्यादा नए पेड़ लगाएं जाएं।
आशु फरेदी, स्थानीय व्यक्ति dehradun@inext.co.in