लंबे संघर्ष और कुर्बानियों के बाद मिला उत्तराखंड राज्य अपनी 22वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस दौरान राज्य के हिस्से कुछ उपलब्धियां भी आई तो नाकामियों की एक लंबी फेहरिस्त बनी। दो राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और भाजपा ने बारी-बारी से उत्तराखंड पर शासन किया कई क्षेत्रों में विकास भी हुआ लेकिन कुल मिलाकर जिन उम्मीदों के साथ अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी वे सभी उम्मीदें राजनीति की भेंट चढ़ गई। भय भूख भ्रष्टाचार ने इस दौरान राज्य में जड़े जमाई। नौकरियां पैसे वालों की बेची जाने लगी और आम बेरोजगार युवक आत्महत्या तक करने का विवश हो गये।

देहरादून (ब्यूरो)। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यदि सरकारों की उपलब्धियों पर नजर डाली जाए तो मोटर रोड सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएंगी। राज्य बनते समय यानी वर्ष 2000 में राज्य में करीब 8 हजार किमी लंबी सड़कें थी, यह आंकड़ा अब 35 हजार के पार पहुंच चुका है। ज्यादातर गांव सड़कों से जुड़ गये हैं। यह बात अलग है कि इन सड़कों के लिए कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था नहीं हुई है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट अब भी सिर्फ उन्हीं सड़कों पर है, जिन पर 2000 से पहले था।

शहरीकरण तेज हुआ
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद सुदूर पहाड़ों से लोगों ने शहरी और अद्र्ध शहरी क्षेत्रों में तेजी से पलायन शुरू किया। इससे एक ओर जहां शहरी क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की कमी पडऩे लगी, वहीं दूसरी ओर गांव सिकुडऩे लगे और कई गांवों में भी एक भी व्यक्ति नहीं रहा गया। राज्य गठन के समय उत्तराखंड के 21.72 प्रतिशत लोग शहरी क्षेत्रों में रह रहे थे, जबकि अब 36.24 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही है। इस दौरान राज्य में शहरी निकायों की संख्या में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। राज्य गठन के वक्त शहरी निकायों की संख्या 63 थी, जो अब 102 हो गई है। एक खास बात यह भी है कि उत्तराखंड में शहरीकरण की रफ्तार हिमाचल प्रदेश के मुकाबले तीन गुना ज्यादा दर्ज की गई है।

स्वास्थ्य सेवाओं में निराशा
राज्य पलायन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में पलायन का एक बड़ा कारण स्वास्थ्य सेवाएं हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति यह है कि डॉक्टर अब भी पहाड़ चढऩे से कतरा रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में सुरक्षित प्रसव तक की व्यवस्था नहीं है। हॉस्पिटल के रास्ते में बच्चे पैदा होना या जच्चा-बच्चा की मौत हो जाना आम बात हो गई है। सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1.1 प्रतिशत हिस्सा ही स्वास्थ्य पर खर्च किया जा रहा है। राज्य में आज भी शिशु मृत्यु दर 31 प्रति हजार है, जबकि पड़ोसी राज्य हिमाचल में सिर्फ ़19 प्रति हजार है।

पुनर्वास नीति फेल
उत्तराखंड में इन वर्षों में जितनी तेजी से सड़कों का जाल फैला उतनी ही तेजी से गांव भी असुरक्षित होते चले गये। राज्य सरकार ने आपदा की दृष्टि से असुरक्षित गांवों के लिए 2011 में पुनर्वास नीति बनाई। लेकिन, यह नीति लगभग फेल हुई है। हर वर्ष असुरक्षित गांवों की संख्या बढ़ रही है। यह संख्या अब 400 का आंकड़ा पार कर चुकी है, लेकिन पुनर्वास की रफ्तार बेहद धीमी है। हर साल प्राकृतिक आपदाओं में मौतें हो रही हैं।

नहीं मिल पाये रोजगार
रोजगार के मामले में राज्य का प्रदर्शन लगातार कमजोर रहा और बेरोजगारों की संख्या बढ़ती चली गई। राज्य गठन के समय पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 3.13 लाख थी, जो अब 8.40 लाख है। अकेले देहरादून में एम्पलॉयमेेंट ऑफिस से रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या 88 हजार से ज्यादा है।

सरकार की उपलब्धियां
- इस वर्ष चारधाम और हेमकुंड साहिब में 45 हजार से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचे।
- रानीबाग में एचएमटी की 45.33 एकड़ जमीन राज्य सरकार को मिली।
- राज्य के सड़कों का जाल बिछाया गया, रेल और एयर कनेक्टिविटी बढ़ी।
- भर्ती कलेंडर जारी कर 7 हजार पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
- खिलाड़ी उन्नयन योजना के तहत 8 से 14 वर्ष के खिलाडिय़ों के लिए 1500 रुपये प्रतिमाह।
- स्कूली शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर दी गई है।
- आयुष्मान योजना में हर परिवार को 5 लाख तक के इलाज की सुविधा।


21वीं सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड का दशक होगा। हमारी सरकार ने वर्ष 2025 तक हर क्षेत्र में अग्रणी राज्य बनने का संकल्प लिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सहयोग से हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
पुष्कर सिंह धामी, सीएम

Posted By: Inextlive