गुरु उस दीपक की तरह है जो खुद जलकर दूसरों को रोशनी देता है। शिक्षक समाज के सर्वांगींण विकास के लिए बच्चों में एजुकेशन की अलख जगाते हैं। बीते दो सालों में जब कोरोना के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे तो इस दौरान शिक्षकों को ऑनलाइन एजुकेशन ने बच्चों के करीब रखा। उस दौर में शिक्षकों के योगदान को सबने सराहा। समाज में कई शिक्षक ऐसे भी मौजूद हैैं जिन्होंने बच्चों की शिक्षा के लिए खुद को समर्पित कर दिया। वे समाज के लिए मिसाल बने।

देहरादून, ब्यूरो :
दून इंटरनेशनल स्कूल के प्रधानाचार्य दिनेश बड़त्वाल ने 1990 में एमएससी करने के बाद टीचिंग लाइन से जुड़े। बच्चों को अच्छी एजुकेशन देकर उन्होंने समाज के सर्वांगीण विकास के लिए अध्यापक बनने का निर्णय लिया। इसके लिए मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी भी छोड़ी। इसके बाद उन्होंने बीएड किया और लगातार शिक्षा में योगदान दे रहे हंै। आज उनके स्टूडेंट्स उच्च पदों पर बैठे हंै। उनके अनुसार शिक्षा के बराबर कोई भी नैतिक काम नहीं है। इससे समाज का सर्वागीण विकास होता है। समय के साथ जैसे शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव आ रहा है। उसमें बच्चा आज किताबी ज्ञान के साथ अन्य ज्ञान भी ले रहा है।

शिक्षा देने के लिए छोड़ा पति का साथ
डॉ। स्वाति आंनद बीते चार सालों से धर्मा इंटरनेशनल स्कूल में बतौर प्रिंसिपल कार्य कर रही हैं। रिमोट एरिया के बच्चों तक अच्छी व आधुनिक शिक्षा मिले, इसके लिए उन्होंने कॉलेज में बतौर प्रोफेसर के पद को छोड़कर बेसिक शिक्षा से जुडऩा बेहतर समझा। इसी का नतीजा है कि रिमोट एरिया में होने के बाद भी धर्मा इंटरनेशनल स्कूल के बच्चे सभी प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर स्कूल का नाम रोशन कर रहे हैैं। बच्चों की शिक्षा न प्रभावित हो इसके लिए उन्होंने दूसरे राज्य में रह रहे उनके पति के साथ का भी त्याग कर दिया। डॉ। स्वाति आंनद के पति सुरेश आंनद एसबीआई बैंक में बतौर सीएजीएम कार्यरत हैं। लेकिन, वे आज शहर से करीब 14 किलोमीटर दूर जाकर बच्चों के शिक्षा सुधार पर काम कर रही हैैं। उनके शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर उन्हें अंवतिका इंस्पिरेशन अवार्ड 2022 से भी सम्मानित किया गया।

एक दशक से बना रहे बच्चों का भविष्य
अरुण यादव बीते 10 सालों से गरीब व आर्थिक तौर पर कमजोर बच्चों में शिक्षा की अलग जगा रहे हैं। इस दौरान अरुण यादव ने उनकी शिक्षा में समझौता न करना पड़े इसके लिए एक संस्था की शुरुआत की। जिससे वे संस्था के माध्यम से बच्चों को शिक्षित कर सके। उनके इस कार्य से प्रेरित होकर कई शिक्षक व समाजिक संस्था से जुड़े लोग आगे आए और बच्चों के लिए किताबों समेत अन्य जरूरी सहायता दी। अरुण यादव बताते हैं कि उनके साथ बच्चों को शिक्षा देने के लिए किसी ने उनसे एक रुपये की सैलरी तक नहीं ली। यहीं नहीं शिक्षा में किसी बच्चे के लिए गरीबी आगे न आए इसके लिए परिवार को संकट की घड़ी में राशन और मेडिकल रूपी मदद भी की। जिससे बच्चों की पढ़ाई रोक न रुके। बच्चे शिक्षा लेकर आगे बढ़े यह अरुण यादव का लक्ष्य होता है।
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Posted By: Inextlive