सूर्यधार लेक में होगा मछली पालन
- सिंचाई विभाग तैयार कर रहा प्रोजेक्ट, तलाशी जा रही पर्यटन की भी संभावना
- ट्रायल सफल होने के बाद राज्य के अन्य वाटर लेक में शुरू की जा रही योजना
हेल्प सेल्फ ग्रुप को सौंपा जाएगा काम
ङ्क्षसचाई विभाग के अधिकारियों की मानें तो जलाशयों में स्थानीय निवासियों और स्वयं सहायता समूहों को यह कार्य दिया जा सकता है। इससे स्वरोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। इस संबंध में मत्स्य विभाग से विमर्श कर कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा। जलाशयों में मत्स्य पालन से संबंधित कार्य सिंचाई विभाग द्वारा आवंटित किए जाएंगे या फिर मत्स्य विभाग के माध्यम से इस बारे में जल्द ही निर्णय लिया जाएगा।
सिंचाई और मत्स्य विभाग का ज्वाइंट वेंचर
ङ्क्षसचाई विभाग राज्य के जलाशयों में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने की कार्ययोजना पर मंथन कर रहा है। बताया जा रहा है कि स्थानीय निवासियों के समूहों को यह कार्य दिया जा सकता है। इसे लेकर जल्द ही ङ्क्षसचाई विभाग और मत्स्य पालन विभाग के उच्चाधिकारियों के मध्य बैठक होगी, जिसमें कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा।
प्रदेश में मत्स्य पालन की अपार संभावनाओं को देखते हुए सरकार जलाशयों को स्वरोजगार के बड़े साधन के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है। इसके लिए मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं। साथ ही स्थानीय स्तर पर गठित स्वयं सहायता समूहों को भी इससे जोड़ा जा रहा है। मत्स्य पालन विभाग की इस मुहिम में अब ङ्क्षसचाई विभाग भी भागीदार बनने जा रहा है।
ट्रायल रहा सफल
दरअसल ङ्क्षसचाई विभाग के हरिपुरा, बौर और तुमडिय़ा जलाशयों में वर्तमान में मत्स्य पालन विभाग मछली पालन कर रहा है। इसके बेहतर परिणाम भी सामने आए हैं। ट्रायल के लिए यहां पर मत्स्य पालन शुरू किया गया था। ट्रायल सफल होने के बाद विभाग राज्य के दूसरे जलाशयों में भी मत्स्य पालन करने की योजना बना रहा है। प्रदेश के जलाशयों में मत्स्य पालन के जरिए सरकार स्वरोजगार के नये आयाम स्थापित करने की तैयारी कर रही है।
हरिपुरा, बौर और तुमडिय़ा के बाद अब सूर्यधार झील, अंबीवाला, बैजनाथ झील, सौगार गदेरा, मोहनारी, नैपाल कोट, कोसी बैराज समेत अन्य जलाशयों में भी इसी तरह की पहल करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। जलाशयों को बहुविकल्पी बनाने की कार्ययोजना बनाई जा रही है। जलाशयों से बिजली के बाद मत्स्य पालन करके स्वरोजगार से जोडऩे की योजना बनाई जा रही है। तीन जलाशयों में ट्रायल सफल होने के बाद इसे अन्य जलाशयों में लागू करने की योजना बनाई जा रही है।
जयपाल सिंह, प्रमुख अभियंता, सिंचाई विभाग, उत्तराखंड