आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार के लिए रैलियां करने की छूट मिलेगी या नहीं यह अभी तय नहीं है लेकिन फिलहाल जो स्थिति है उससे इतना तो साफ है कि कोविड ने चुुनाव प्रचार के परंपरागत तौर-तरीकों को अब पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। आने वाले समय में भी अब चुनाव पर रैलियों-सभाओं में कम और डिजिटल प्लेटफार्म पर ज्यादा नजर आएगा।

देहरादून (ब्यूरो)। रैलियों और सभाओं पर पाबंदी लगने के बाद से सभी पार्टियों के नेता टोटल डिजिटल हो गये हैं। सीनियर लीडर्स लगभग हर रोज सोशल मीडिया प्लेट फार्म पर कोई न कोई वीडियो डाल रहे हैं। पार्टियों के सभी कार्यक्रम लाइव चलाये जा रहे हैं। ये कार्यक्रम लगभग हर प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैैं। इनमें मुख्य रूप से पार्टी का फेसबुक पेज, नेता का फेसबुक पेज, इंस्ट्राग्राम और यूट्यूब चैनल शामिल हैं।

पोस्टर, बैनर सब सोशल मीडिया पर
पिछले चुनावों में शहर की दीवार प्रशासन की पाबंदी के बावजूद पोस्टरों और नारों से पूरी तरह से पट जाती थी, लेकिन इस बार वे सभी दीवारें अब तक साफ सुथरी नजर आ रही हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर पोस्टर-बैनरों की बाढ़ आ गई है। पार्टियों और उम्मीदवारों के अलग-अलग पोस्टर-बैनर नजर आ रहे हैं।

गीतों का भी सहारा
पैसे वाले उम्मीदवार चुनाव प्रचार के लिए गीत भी कंपोज करवा रहे हैं। पार्टियों की तरफ से भी इस तरह के गीत तैयार करवाये जा रहे हैं। सत्ताधारी पार्टी ने जहां अपनी उपलब्धियों को लेकर गीत तैयार करवाये हैं, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल सरकार की विफलता के गीत कंपोज करवा रहे हैं। इस तरह के गीत पहले लाउडस्पीकर लगी गाड़ियों पर बजते थे, लेकिन अब सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के मोबाइल फोन पर बज रहे हैं।

शोर-शराबा सब बंद
सबसे खास बात यह है कि लाउडस्पीकर लगी गाड़ियों का शोर पूरी तरह से थमा हुआ है। बीजेपी ने दून में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिये हैं, लेकिन अब तक किसी उम्मीदवार की शोर मचाती गाड़ी नजर नहीं आई है। पिछले वर्षों तक टिकट पाने की लाइन में खड़े उम्मीदवार पहले ही दर्जनों प्रचार वाहन सजा देते थे और टिकट मिलने के साथ ही सभी वाहन एक साथ सड़कों पर उतर आते थे।

बैनर-पोस्टर वालों का नुकसान
चुनाव कैंपेन सड़कों से हटकर डिजिटल प्लेटफार्म पर आ जाने का सबसे ज्यादा नुकसान पोस्टर बैनर बनाने वालों को हो रहा है। आमतौर में चुनावी सीजन में पोस्टर बैनर बनाने पर करोड़ों रुपये खर्च हो जाते थे, लेकिन इस बार अब तक यह खर्च बचा हुआ है। हालांकि चुनाव आयोग के निर्देशानुसार 5 लोगों की टीमों को घर-घर जाकर प्रचार कर सकते हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में छोटे-छोटे पम्फलेट जरूर छपेंगे, लेकिन पिछले चुनावों की तुलना में यह काफी कम होने की संभावना है।

Posted By: Inextlive