दून के करीब 46 ऐसे प्राईवेट स्कूल हैं जो आरटीई क्र राइट टू एजुकेशनक्र के अंतर्गत मान्यता लेने व उसकी फीस जमा करने के लिए खुद को बाध्य नहीं मानते. ये मामला सचिव तक पहुंचा है.

देहरादून, (ब्यूरो): दून के करीब 46 ऐसे प्राईवेट स्कूल हैं, जो आरटीई क्र(राइट टू एजुकेशनक्र)के अंतर्गत मान्यता लेने व उसकी फीस जमा करने के लिए खुद को बाध्य नहीं मानते। ये मामला सचिव तक पहुंचा है। इसको लेकर बाकायदा, एक दिन पहले माध्यमिक शिक्षा निदेशक महावीर सिंह बिष्ट व सीईओ दून के साथ तमाम स्कूलों के मैनेजमेंट ने इस पर मंथन किया। आखिर में तय हुआ कि शिक्षा निदेशक निजी स्कूलों के सुझावों को फिर से शिक्षा सचिव तक पहुंचाएंगे। उसके बाद आखिरी फैसला शासन की ओर से लिया जाएगा।

आरटीई के लिए फीस, मान्यता जरूरी
राइट टू एजुकेशन के तहत सभी स्कूलों को मान्यता लेने के साथ फीस जमा करनी पड़ती है। लेकिन, उत्तराखंड में आरटीई 2013 में लागू हुआ। जबकि, देशभर में वर्ष 2009 में इसकी शुरुआत हुई। इसको देखते हुए दून के करीब 46 स्कूलों ने विभाग के सामने अपनी बात रखते हुए स्पष्ट किया है कि राज्य में लागू आरटीई एक्ट के बाद 2013 से पहले उनके स्कूल संचालित हो रहे हैं। ऐसे में वे आरटीई मान्यता के लिए फीस जमा करने को बाध्य नहीं हैं।

डायरेक्टर की मौजूदगी में मंथन
नियमानुसार आरटीई मान्यता के लिए आईसीएसई व सीबीएसई के स्कूलों को 50 हजार और हिंदी मीडियम के स्कूलों को 10 हजार रुपए की फीस सरकार जमा करनी होती है। लेकिन, 2013 के पहले से संचालित स्कूल इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैैं। इसको देखते हुए माध्यमिक शिक्षा निदेशक, सीईओ दून की मौजूदगी में वेडनसडे को बैठक आयोजित हुई। जिसमें इस मुद्दे पर स्कूल मैनेजमेंट व शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ मंथन हुआ।

कई स्कूलों की रोका है भुगतान
आरटीई को लेकर स्कूलों का कहना था कि कई स्कूलों को पिछले 3 वर्षों से फीस भुगतान तक नहीं हो पाया है। इस बार विभागीय अधिकारियों का कहना था कि इस बावत 8 से 10 स्कूलों की धनराशि रजिस्ट्रेशन न होने के कारण रोकी गई है। वहीं, स्कूलों ने मांग की कि अन्य बच्चों की तरह सरकार उन्हें आरटीई के तहत अप्रैल से यानि पूरे 12 महीनों की फीस का भुगतान करे।

इन इलाकों के स्कूल शामिल
-विकासनगर
-जौनसार बावर
-दून सिटी
-ऋषिकेश

सालाना फीस बढ़ोत्तरी पर वार्ता
बैठक में कई और म़ुद्दों पर भी विचार विमर्श हुआ। मसलन, स्कूलों का कहना था कि उत्तराखंड में अब तक कोई फीस एक्ट नहीं है। ऐसे में उन्हें हर वर्ष फीस बढ़ोत्तरी किए जाने का अधिकार दिया जाए। इस पर भी अधिकारियों ने कहा कि ये मसला भी शिक्षा सचिव तक जाएगा। उसके बाद इस शासन ही अंतिम मुहर लगाएगा। लेकिन, निदेशक माध्यमिक ने स्कूल मैनेजमेंट का कहा है कि वे फीस बढ़ाते हैं तो इसकी सूचना नोटिस बोर्ड पर फ्लैश करें। जिससे पेरेंट्स पहले से ही अपनी तैयारी कर सकें। ऐसा न होने पर पेरेंट्स फीस बढ़ोत्तरी की शिकायत लेकर विभाग तक पहुंच रहे हैं। स्कूलों को मैकेनिज्म के आधार पर इसको लेकर काम करना होगा।

अधिकारियों के ये थे तर्क
-उत्तराखंड में शिक्षक-अभिभावक संघ भी है मौजूद।
-स्कूल फीस बढ़ाने के लिए संघ से लें अप्रूवल।
-जिससे पेरेंट्स भी फीस बढ़ोत्तरी पर हो सकें सहमत।
-एनसीईआरटी बुक्स के अलावा दूसरे बुक्स के रेट का भी मामला उठा।
-बुक्स के मामूली रेट बढ़ाने पर स्कूल दिखे तैयार।
-पेरेंट्स का एक निश्चित शॉप से बुक्स खरीदने की बाध्यता पर भी हुआ मंथन।

स्कूल बसें न हों ओवरक्राउडेड
बैठक में स्कूल बसों में बच्चों को ठूंस कर ले जाने का मामला भी उठा। जिस पर स्कूलों ने अपनी सहमति दी। कहा, ये हर स्कूल की जिम्मेदारी रहेगी कि बसों में ज्यादा स्टूडेंट्स न बिठाए जाएं।

एनसीटीई नियम का पालन हो
एनसीटीई क्र(नेशनल काउंसिल फॉर टीचिंग एजुकेशनक्र) के पालन किए जाने पर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जोर दिया। कहा, मानकों के अनुसार ही निजी स्कूलों में टीचर्स की नियुक्ति हो। इस पर स्कूलों का कहना था कि अब इसके लिए कम से कम छह महीने का वक्त दिया जाए।

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Posted By: Inextlive