स्वच्छ सर्वेक्षण में टॉप 50 में जगह पाने का दावा करना शहर के लिए एक गौरव की बात है लेकिन इस तरह के दावे तब खोखले नजर आने लगते हैं जब शहर में खाली प्लॉटों को डंपिंग ग्राउंड समझ लिया जाता है और यहां कूड़े के ढेर शहर की खूबसूरती को दाग लगाते दिखते हैैं। खाली प्लॉटों में डंप किया जाने वाला कचरा न तो कभी उठाया जाता है और न ही वहां किसी तरह का कोई छिड़काव किया जाता है जिससे कूड़े के कारण फैलने वाली संभावित बीमारियों से लोगों को बचाया जा सके।

देहरादून (ब्यूरो)। आउटर के रिहायशी इलाके तो दूर मिड सिटी में भी कई जगह ऐसे प्लॉट नजर आ जाते हैं, जिनमें लोग अपने घरों का कचरा फेंक देते हैं। हालांकि नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि लोग पैसा बचाने के लिए ऐसा करते हैं। इसमें कुछ हद तक सच्चाई भी हो सकती है, लेकिन इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाये गये हैं, इस बात का कोई जवाब नगर निगम के अधिकारियों के पास नहीं होता। कुछ जगहों पर नगर निगम का यह दावा सही हो सकता है, लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां न तो सफाई कर्मचारी हैं और न ही वहां कचरा कलेक्ट करने वाली गाड़ी जाती हैं। ऐसे इलाकों में खाली प्लॉटों में कचरा फेंकने के अलावा लोगों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता।

आउटर सिटी में बुरे हाल
निगम निगम की सीमाओं का विस्तार करने के लिए कुछ वर्ष पहले सिटी के आसपास के कई गांवों को नगर निगम में शामिल कर लिया गया था। इन गांवों की पंचायतों के पास जो पैसा था, वह भी नगर निगम के पास ट्रांसफर हो गया था। लेकिन, नये वार्डों में सफाई व्यवस्था की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। इन वार्डों में अभी कई प्लॉट ऐसे हैं, जिन पर निर्माण नहीं हुआ है। कचरा उठाने और डस्टबिन जैसी कोई सुविधा भी इन क्षेत्रों में नहीं है। ऐसे में सभी खाली प्लॉट डंपिंग ग्राउंड बन गये हैं। टॉप 50 रैंकिंग के दावे के बावजूद इस तरफ ध्यान न दिये जाने पर लोग सवाल उठा रहे हैं।

क्या कहते हैं दूनाइट्स
आप देहराखास की तरफ चले जाइये। कहीं भी डस्टबिन नहीं मिलेगी। यहां आमतौर पर कचरा उठाने वाली गाड़ी भी नहीं आती। पटेलनगर थाने के आसपास के इलाके में कई खाली प्लॉट हैं। सब डंपिंग ग्राउंड बने हुए हैं।
राहुल सोनकर

साफ सुथरा देहरादून हम तो नारे में ही सुनते हैं। कई बार सुना कि प्लास्टिक बैन हो रहा है। इसके लिए समय-समय पर ड्रामे भी किये जाते हैं, लेकिन शहर में कोई ऐसी जगह नहीं जहां कचरे के रूप में प्लास्टिक पन्नियां न फैली हों।
नादिर हुसैन

स्वच्छता में हमारा शहर देश में अच्छी रैंकिंग लाये ये बड़ी खुशी की बात है, लेकिन दुख तो तब होता है, जब पता चलता है कि रैंकिंग में तो सुधार हुआ, लेकिन गंदगी पहले जैसी ही है। कई जगह तो बढ़ गई। ऐसी रैंक किसी काम की नहीं।
सचिन चौधरी

नगर निगम को सबसे पहले तो सफाई कर्मचारियों की संख्या बढ़ानी चाहिए। देखा जाता है कि परमानेंट कर्मचारी सफाई करने आती ही नहीं। डेली वेजेज वाले कभी-कभी आते हैं या मोहल्ला स्वच्छता समिति वाले। ऐसे में कैसे शहर साफ हो पाएगा। ये बड़ा सवाल है।
समीर

Posted By: Inextlive