प्रदेश के युवाओं में नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। आए दिन पुलिस नारकोटिक्स एक्ट में मुकदमे पंजीकृत करती है जिनमें यही कहानी सामने आती है कि कैसे ड्रग पैडलर्स युवाओं को टारगेट कर रहे हैं। यदि उत्तराखंड को ड्रग्स की मांग और आपूर्ति को खत्म करना है तो इस दिशा में तमिलनाडु के प्रयासों से सीखना होगा। पुलिस साइंस कांग्रेस में बताया गया कि तमिलनाडु के किन प्रयासों के चलते वहां ड्रग माफिया की कमर तोड़ने का काम चल रहा है।


देहरादून (ब्यूरो) ड्रग्स पकड़ने के लिए हमारा पुलिस बल अथक प्रयास करता है। ऐसे में ड्रग्स के विरुद्ध सफल कार्रवाई करने वाली टीम को प्रोत्साहित करने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने रिवार्ड की व्यवस्था की है। राज्यों की पुलिस टीम या अन्य जांच/प्रवर्तन एजेंसी को भी इनाम देने की व्यवस्था की गई है, लेकिन इसके लिए पहले संबंधित राज्यों को रिवार्ड स्वीकृत करना होगा। इसके बाद भी उस राज्य के लिए एनसीबी के रिवार्ड की राह खुल जाती है। हालांकि, अधिकतर राज्य इस दिशा में कार्रवाई नहीं कर पाए और उत्तराखंड भी इसमें से एक है। दूसरी तरफ पुलिस कांग्रेस में बताया गया कि तमिलनाडु के किस तरह एनसीबी के रिवार्ड को प्राप्त करने की व्यवस्था बनाई है और 50 लाख रुपये के रिवॉल्विंग फंड का इंतजाम किया है। साथ ही ड्रग्स के विरुद्ध बेहतर काम करने वाले पांच पुलिस कार्मिकों को हर साल मुख्यमंत्री मेडल से नवाजा जाता है।

नशा मुक्त भारत की नोडल एजेंसी है समाज कल्याण
नशा मुक्त भारत के लिए समाज कल्याण विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है। उत्तराखंड में इस विभाग की बात की जाए तो यहां के अधिकारियों की भूमिका निष्कि्रय नजर आती है। शायद ही कभी सुना गया हो कि समाज कल्याण विभाग ने किसी शिक्षण संस्थान या हॉस्टल आदि में किसी तरह का कोई अभियान चलाया हो। बेशक ड्रग्स की आपूर्ति रोकना पुलिस व अन्य जांच एजेंसियों का काम है, लेकिन मांग के मोर्चे पर तो समाज कल्याण विभाग अपनी बेहतर भूमिका अदा करता है। यदि युवाओं में नशे की प्रवृत्ति ही कम हो जाए तो यह भी ड्रग माफिया पर बड़ी चोट होगी। क्योंकि, मांग कम किए जाने के चलते भी इस चेन को ब्रेक करने में मदद मिल सकती है।

Posted By: Inextlive