गर्मियों में अक्सर उत्तराखंड के जंगलों में चीड़ के पेड़ों से गिरने वाली पत्तियां आग का कारण बनती हैं जिससे पेड़-पौधों और जंगली जानवरों को भारी नुकसान होता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए दून फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट ने एक नया रास्ता खोजा है। डीन ऑफ केमिस्ट्री एंड बायोप्रोस्पेक्टिंग डिविजन डॉ। विनीत कुमार ने 2017 से इस पर काम शुरू किया था और अब यह एक बेहतरीन रोजगार का साधन बन गया है। लो बजट में हो रहे हैं चीड़ की पत्तियों के कई खूबसूरत प्रोडक्ट्स तैयार।

देहरादून (ब्यूरो) हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले चीड़ के पेड़ दिखने में जितने खूबसूरत हैं, उतनी ही खतरनाक उनकी सुई जैसी पत्तियां (पिरुल) होती हैं। उत्तराखंड में ये पेड़ बहुतायात में हैं और राज्य के 16.36परसेंट फॉरेस्ट एरिया में फैले हुए हैं। हर साल करीब 15 लाख मैट्रिक टन पिरुल जमा होता है, जिसमें से 6 लाख मैट्रिक टन का उपयोग हो सकता है। लेकिन, सही उपयोग न होने से ये पर्यावरण और जंगलों के लिए बड़ा खतरा बन जाती हैं।

एफआरआई का अनोखा समाधान
मार्च से मई के बीच चीड़ के पेड़ों से सूखी पत्तियां (पिरुल) गिरती हैं, जो 20 से 25 सेंटीमीटर लंबी और नुकीली होती हैं। ये पत्तियां आसानी से आग पकड़ सकती हैं और पहाड़ों में आग फैलने का बड़ा कारण बनती हैं। अगर इन्हें यूं ही छोड़ दिया जाए तो ये पेड़-पौधों और जानवरों के लिए खतरा बन जाती हैं और नए पेड़-पौधों के बढऩे में भी रुकावट डालती हैं। लेकिन अगर इनका सही उपयोग किया जाए तो ये पत्तियां एक बहुमूल्य संसाधन बन सकती हैं। एफआरआई के चीफ साइंटिस्ट डॉ। विनीत कुमार ने चीड़ की पत्तियों का सही इस्तेमाल करने के लिए एक नई टेक्निक खोजी है। उन्होंने इन पत्तियों से रेशा निकालने का एक आसान तरीका निकाला है। इस टेक्निक से बड़ी मात्रा में पिरुल से रेशा निकाला जा सकता है, जिसे कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे लेकर एक्सपेरिमेंट्स किए जा रहे हैैं। फिलहाल जो प्रोडक्ट्स तैयार किए जा रहे हैैं वह चीड़ की पत्तियों से डायरेक्ट किए जा रहे हैैं।

पिरुल से बनने वाले प्रोडक्ट्स
-पेन स्टैंड
-कोस्टर
-ट्रे
=वॉल हैंगिंग्स
-बास्केट्स

रोजगार के नए अवसर
इस टेक्निक के जरिए न सिर्फ चीड़ की पत्तियों की समस्या का समाधान हो रहा है, बल्कि यह रोजगार का एक नया जरिया भी बन गया है। चमोली ग्रोथ सेंटर के फील्ड कोऑर्डिनेटर आशीष प्रसाद ने बताया कि 15 महिलाएं इस प्रोडक्शन के प्रॉसेस में शामिल हैं। इन्हें शुरुआत में सेंटर पर ट्रेनिंग दी जाती है, जिसके बाद ये महिलाएं घर बैठे ही इन प्रोडक्ट्स को तैयार करती हैं। इसके लिए उन्हें किसी तरह की मशीन या दूसरे इक्विपमेंट्स की जरूरत भी नहीं होती है, केवल सुई और धागे का यूज कर के वो प्रोडक्ट्स को तैयार करती हैैं।

कम लागत में अच्छा मुनाफा
पिरुल के प्रोडक्ट्स को तैयार करने की लागत बहुत कम है, क्योंकि पिरुल सीधे जंगलों से लाया जाता है और बिना किसी बड़े प्रॉसेस या महंगी मशीनों के सीधे इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से कुछ चीजों में धागे का इस्तेमाल भी होता है, जिससे इनकी वैल्यू और बढ़ जाती है। यह टेक्निक सस्ती होने के साथ-साथ एन्वॉयरमेंट के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इससे जंगलों में आग लगने की समस्या का बड़े पैमाने पर समाधान किया जा सकता है।

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Posted By: Inextlive