क्लाइमेट चेंज : फिजां कब तक रहेगी धुआं-धुआं
देहरादून (ब्यूरो)। दून में पर्यावरण और स्वच्छता के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था वेस्ट वॉरियर्स के नवीन सडाना कहते हैं कि जितना पर्यावरण प्रदूषण संबंधी खतरा बढ़ रहा है, उतना हम वनों और प्राकृतिक संसाधनों को विनाश कर रहे हैं। देहरादून में विकास के नाम में हाल के दिनों में बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान हुआ और अभी हजारों की संख्या में और पेड़ काटे जाने की संभावना है। चारों तरफ धूल-धक्कड़ का महौल है। पर्यावरण संरक्षण की बात होती है, लेकिन इस मसले में जन प्रतिनिधि और अधिकारी गंभीर नहीं हैं।
हम विनाश के रास्ते पर : डॉ। आंचल
अर्थ क्लाइमेट संस्था की डॉ। आंचल शर्मा दून घाटी में पर्यावरण के मसले में लगातार सक्रिय हैं। वे पेड़ काटने को लेकर एक ऑनलाइन पिटीशन जारी कर चुकी हैं, जिसे जबरदस्त समर्थन मिला। आंचल कहती हैं कि क्लाइमेट चेंज के असर से निपटने का सबसे कारगर तरीका हरियाली है। लेकिन, अफसोस यह है कि आज हम हरियाली बचाने के बजाय हरियाली को तथाकथित विकास के नाम पर समाप्त कर रहे हैं। दरअसल हम विनाश के रास्ते पर हैं।
धूल-धुआं कब बंद होगा
सतपाल गांधी पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं, साथ ही फोटोग्राफर प्रकृति से जुड़े हर तरह के फोटो उतारते हैं और प्रकृति को हो रहे नुकसान से आगाह करते हैं। वे कहते हैं, क्लाइमेट चेंज की बात होती है तो सबसे पहले सवाल यह आता है कि हम कब तक धुआं फैलाते रहेंगे और धूल उड़ाते रहेंगे। कचरा जलाने पर रोक है और 5 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान भी है, लेकिन इसके बावजूद दून में सरेआम कचरा जलाया जा रहा है। इसके बावजूद कोई चालान नहीं होता। इसी तरह नियम है कि जहां भी निर्माण कार्य हो रहा हो, वहां नियमित रूप से पानी का छिड़काव होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। ऐसे में हम क्लाइमेट चेंज से निपटने के प्रयासों की बात किस मुंह से कर सकते हैं।