अब चौरासी कुटिया की सैर भी हुई महंगी
देहरादून ब्यूरो।
चौरासी कुटिया वन विभाग के प्रमुख टूरिज्म डेस्टीनेशन में शामिल है। ध्यान योग के लिए विश्व विख्यात महर्षि महेश योगी ने वर्ष 1961 में स्वर्गाश्रम ऋषिकेश के पास वन विभाग से 15 एकड़ भूमि लीज पर लेकर यहां शंकराचार्य नगर की स्थापना की थी। यहां उन्होंने खास वास्तुशैली वाली चौरासी छोटी-छोटी कुटियों और 100 से अधिक गुफाओं का निर्माण कर इस जगह को ध्यान-योग केंद्र के रूप में डेवलेप किया था। इसके बाद ये वर्ष 1983 में राजाजी नेशनल पार्क बनने और वर्ष 1986 में पार्क का सीमा विस्तार होने पर चौरासी कुटिया पार्क क्षेत्र में आ गई।
2015 में दोबारा टूरिस्ट के लिए खोला
पर्यटकों की आवाजाही के कठोर नियम होने और संसाधनों का विस्तार संभव न हो पाने की वजह से महर्षि महेश योगी ने इसे वन विभाग को सुपुर्द कर दिया। इसके महर्षि ने खुद नीदरलैंड का रुख कर लिया। इसके साथ ही चौरासी कुटिया इलाके में आम लोगों व टूरिस्ट के लिए आवाजाही पर रोक लग गई। नतीजा यह हुआ कि देखरेख के अभाव में यहां बनी कुटिया व गुफाएं जर्जर होती गई। इसके बाद पूरा कैंपस बंजर में तब्दील हो गया। लेकिन, कई प्रयासों के बाद 8 दिसंबर 2015 में वन विभाग ने इस कैंपस की सफाई व मरम्मत कर इसे दोबारा टूरिस्ट को खोल दिया। तब से लेकर लगातार यहां टूरिस्ट व आम लोग सैर करने के लिए पहुंचते रहे हैं। इससे विभाग की भी आमदनी बढ़ती जा रही है।
1968 में ऋषिकेश के पास बसे चौरासी कुटी को योग व ध्यान के सेंटर के रूप में तब देश-दुनिया में पब्लिसिटी मिली, जब ब्रिटेन का वर्ल्डफेम म्यूजिकल ग्रुप बीटल्स यहां पहुंचा। बीटल्स ग्रुप के चार सदस्य जार्ज हैरिसन, पाल मैकेनिक, रिंगो स्टार व जान लेनन ने लंबे अंतराल तक यहां निवास किया। इसी दौरान इस म्यूजिकल ग्रुप ने कई धुनें और गीतों की रचना की। उसके बाद ऋषिकेश में फॉरेनर्स टूरिस्ट के लिए माने आकर्षण का केंद्र बन गया। उसके उपरांत ऋषिकेश वर्ल्ड लेवल पर योग की इंटरनेशनल राजधानी के रूप में पहचान बनाने लगा। चौरासी कुटिया पर एक नजर
-दिसंबर 2015 में पहली बार पर्यटकों के लिए खोला गया।
-वर्ष 2019-20 में सबसे ज्यादा 42233 पर्यटक पहुंचे।
मांग चुका है पर्यटन विभाग
प्रमुख टूरिस्ट डेस्टीनेशन के तौर पर पहचान रखने वाले चौरासी कुटिया की जीर्ण-शीर्ण हालत को देखते हुए राज्य पर्यटन मंत्रालय ने उन्हें सौंपे जाने की सरकार से डिमांड की थी। यहां तक पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज इसको लेकर पीएम को पत्र लिखने की मांग कर चुके हैं। लेकिन, वन विभाग ने अब तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। इसको लेकर एक बार वन मंत्री भी इसका दौरा कर चुके हैं।