चारधाम कपाट खुलने की तिथियां घोषित होने का सिलसिला शुरू होते ही एक बार फिर नये सीजन में यात्रा को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सरकार का ध्यान आमतौर पर ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालुओं को यात्रा करवाने की तरफ होता है लेकिन इस बार जोशीमठ में होने वाले भूस्खलन के बाद कैरिंग कैपेसिटी के अनुसार श्रद्धालुओं को चारधाम भेजने की बात कही गई है। ऐसे में सवाल यह उठाया जा रहा है कि राज्य सरकार इस बार श्रद्धालुओं का पिछला रिकॉर्ड तोडऩे की दिशा में काम करेगी या फिर कैरिंग कैपेसिटी का निर्धारण कर यात्रियों की संख्या पर अंकुश लगाने की दिशा में काम होगा।

देहरादून (ब्यूरो)। जोशीमठ में धंसाव के बाद इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि पहाड़ी नगरों में उनकी कैरिंग कैपेसिटी से ज्यादा लोग पहुंच रहे हैं। जोशीमठ का जियोलॉजिकल सर्वेक्षण करने वाले जियोलॉजिस्ट ने भी माना है कि कैरिंग कैपेसिटी से ज्यादा बसावट और लोगों की ज्यादा भीड़ भी जोशीमठ के धंसाव का एक कारण है। ऐसे में यह भी सवाल उठा कि क्या उच्च हिमालयी क्षेत्र, जहां उत्तराखंड राज्य के चारधाम स्थिति हैं, उनकी कैरिंग कैपेसिटी इतनी है कि लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं को वहां जाने दिया जाए। इन सवालों के बीच राज्य के आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा को कहना पड़ा कि इस बार चारधामों की कैरिंग कैपेसिटी के अनुरूप श्रद्धालुओं को अनुमति दी जाएगी।

सरकार के सामने धर्मसंकट
पर्यावरणीय मसलों और अरबन गवर्नेंस पर काम करने वाली दून स्थिति एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल का कहना है कि सरकार के सामने धर्म संकट है। एक तरफ नया रिकॉर्ड बनाने का लक्ष्य और दूसरी तरफ कैरिंग कैपेसिटी का अंकुश है। रिकॉर्ड बनाना है कि कैरिंग कैपेसिटी को भूलना होगा। कोई न कोई ठोस निर्णय जल्द लेना होगा। अनूप नौटियाल का मानना है कि रिकॉर्ड बनाने की सोच पुरानी और आउटडेटेड है। जोशीमठ की घटनाओं को देखते हुए नये तरीके से यात्रा संचालित करनी चाहिए। वे कहते हैं कि तीर्थाटन और पर्यटन को अलग तरीके से संचालित करने की शुरुआत करने का ये अच्छा मौका है।

रिकॉर्ड पर खुश होती है सरकार
कैरिंग कैपेसिटी की चर्चाओं के बीच यह भी सच है कि राज्य सरकार चारधाम यात्रा में उमडऩे वाली भीड़ को देखकर खुश होती रही है, यहां आने वाले यात्रियों के आंकड़ों को अपनी उपलब्धि की तरह पेश करती रही है। लेकिन जियोलॉजिस्ट और हिमालयी पारिस्थितिकी पर नजर रखने वालों का कहना है कि उत्तराखंड के चारों धाम उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हैं। जियोलॉजिस्ट डॉ। एसपी सती कहते हैं कि इन हिमालयी क्षेत्रों में सीमित मानव गतिविधियों की इजाजत दी जानी चाहिए। जिस तरह से हाल के वर्षों तीर्थयात्रियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है, वह हिमालय की कैरिंग कैपसिटी को देखते हुए खतरनाक है।

पिछले वर्ष 46 लाख तीर्थयात्री पहुंचे
केदारनाथ आपदा के बाद से उत्तराखंड के चार धामों में तीर्थयात्रियों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। कुछ लोग इसे अब डिजास्टर टूरिज्म का नाम भी देने लगे हैं। खास बात यह है कि राज्य सरकार इस भीड़ को अपनी उपलब्धि के रूप से प्रचारित करती रही। चारों धामों और हेमकुंड साहिब में पिछले वर्ष आये तीर्थयात्रियों की संख्या में नजर डालें तो सबसे ज्यादा 17.43 लाख से ज्यादा तीर्थयात्री बदरीनाथ पहुंचे। केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की संख्या 15.63 लाख थी। गंगोत्री में 6.24 लाख और यमुनोत्री में 4.85 लाख तीर्थयात्री पहुंचे।

Posted By: Inextlive