मुकाम हासिल कर समाज के लिए बने आदर्श
शहीद पिता का नाम रोशन करते हुए माउंट किलिमंजारो की चोटी साइकिल से की फतह
कुछ लोग विपरीत परिस्थितियों के बाद भी हार नहीं मानतेदेहरादून, (ब्यूरो):
बदलते समय के साथ जैसे-जैसे समय बीतता है। वैसे-वैसे लोग सफलता न मिलने पर हार मान लेते है और प्रयास छोड़ देते है। लेकिन, समाज में कुछ लोग ऐसे भी हंै जो विपरीत परिस्थितियों के बाद भी हार नहीं मानते। इन्हीं में एक है प्रीति नेगी। बचपन में ही उसके सिर से पिता का साया उठ गया तो जैसे-तैसे मां ने पाला-पोसा। बेटी ने शहीद पिता का नाम रोशन करते हुए माउंट किलिमंजारो की चोटी को साइकिल से फतह कर वल्र्ड रिकॉर्ड बनाया। ऐसे ही एक और प्रेरक बने हैं करण शुक्ला। जिनके दोनों पैर नहीं है, लेकिन उनके कार्य में यह कभी नहीं झलका। उन्होंने दिव्यांगता को कमजोरी के बजाय लडऩे का जज्बा कायम किया और सफलता झंडा फहरा कर समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन गए।
वल्र्ड रिकॉर्ड बनाकर बनी मिसाल
रुद्रप्रयाग के एक छोटे से तेवड़ी गांव की रहने वाली प्रीति नेगी को आज पूरा देश जानता है। उसके पिता राजपाल सिंह 2002 में ज मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गए थे। इस बीच प्रीति ने अपनी पढ़ाई पूरी की। प्रीति का कहना है कि वह अपने पिता की तरह देश सेवा करना चाहती थी, लेकिन उसे यह सौभाग्य नहीं मिला। उसका कहना है कि वह पर्वतारोहण के जरिए ऐसे काम करना चाहती है, जो आज तक किसी ने नहीं किया हो। उसने रिस्पेक्ट टू गौड इवेंट के जरिए हरिद्वार से लेकर केदारनाथ तक की यात्रा भी की। इससे पहले वह बॉक्सिंग के खेल में भी हाथ आजमा चुकी है।
शरीर से दिव्यांग होने के बाद भी करन शुक्ला आज कई परिवारों की आर्थिकी का जरिया बने हुए है। करन ने सबसे पहले जोगीवाला के पास अपना बैग बनाने का केन्द्र खोला। ग्रामीण महिलाओं के साथ मिलकर जूट और कॉटन के बैग बनाने की शुरुआत की। यह काम उन्होंने पॉलीथिन के विरोध अभियान के तौर पर लिया। धीरे-धीरे उनके इस अभियान में ग्रामीण इलाकों से महिलायें भी हाथ बढ़ाया। खास बात यह है कि फिजीकली चैलेंज्ड होने के बाद भी जूट और कॉटन के बैग की सप्लाई से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन का काम खुद करते हैं।
एनजीओ के माध्यम से कर रहे मदद
करन शुक्ला ने अपनी कंपनी की शुरुआत की। इसके साथ ही ग्रामीण महिलाओं के सहयोग के लिए एक एनजीओ भी बनाया है। उन्होंने एनजीओ से जुड़ी दर्जनों कामकाजी महिलाओं को बैग आदि बनाने के लिए घर-घर जाकर रॉ-मैटीरियल भी पहुंचाते हैं, ताकि वह घर के काम के साथ रोजगार भी कर सके। उनका यह हार्ड वर्क आज बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार के लिए प्रेरित कर रहा है।