दून का प्रमुख बिजनेस सेंटर था एस्लेहॉल
देहरादून ब्यूरो। मौजूदा मांडा हाउस और एस्लेहॉल करीब 52 बीघा संपत्ति पर राजा मांडा का स्वामित्व था। पहाड़ी विल्सन के नाम से प्रसिद्ध किंग विल्सन ने इस संपत्ति में से 50 बीघा राजा मांडा से खरीद ली। किंग विल्सन अंग्रेज सेना का एक भगोड़ा सैनिक था। उसने किसी तरह से टिहरी के राजा से मिलकर जंगल काटने का ठेका ले लिया था और उत्तराखंड में जंगलों को काटकर बेशकीमती लकड़ी बेचकर मोटा धन कमा लिया था। बाद में किंग विल्सन हर्षिल में जा बसा और वहीं शादी की। हर्षिल में कुछ समय पहले तक विल्सन कॉटेज भी थी, जो बाद में आग से जल गई। इसी पहाड़ी विल्सन से राजा मांडा से एस्लेहॉल वाली जमीन खरीदी। तब से यह प्रॉपर्टी कई हाथों में जाती रही।
लगातार बिकती रही प्रॉपर्टी
वर्ष 1840 में कैप्टन जॉन फिशर ने यह प्रॉपर्टी पहाड़ी विल्सन से खरीद ली और 1844 में धूम सिंह और मोहर सिंह नामक व्यक्तियों को बेच दी। तीन साल बाद ही एक फिर से यह प्रॉपर्टी बिक गई। धूमसिंह और मोहर सिंह ने इसे लेकर विलियम अल्बर्ट को बेच दिया। विलियम अल्बर्ट ने इसी वर्ष स्कॉट को प्रॉपर्टी बेच दी। 1850 में किसी दवे दंपति ने एस्लेहॉल की प्रॉपर्टी खरीद ली और 1863 में अंग्रेज बिजनेसमैन हॉक्सन को बेच दी।
हिमालयन बैंक ने की जब्त
अंग्रेज व्यापारी हॉक्सन ने यह संपत्ति खरीद तो ली, लेकिन इसका व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं कर पाया। हॉक्सन ने यह संपत्ति हिमालया बैंक से लोन लेकर खरीदी थी और अब वह बैंक का लोन नहीं चुका पा रहा था। ऐसे में वर्ष 1873 में हॉक्सन ने इस प्रॉपर्टी 10 हजार रुपये में हिमालया बैंक के पास गिरवी रख दी। इसके बाद में हॉक्सन बैंक का कर्ज नहीं चुका पाया। ऐसे में हिमालया बैंक ने 1873 में इसे राय बहादुर उग्रसेन को बेच दिया।
राय बहादुर उग्रसेन के पास यह प्रॉपर्टी 1938 तक बिना किसी खास उपयोग के पड़ी रही। इसके बाद उन्होंने व्यावसायिक और रेजिडेंशियल कॉम्लेक्स में बदल दिया और अलग-अलग खरीदारों को बेच दिया। कई सुप्रसिद्ध दुकानों के अलावा एस्लेहॉल में ऑरियन्ट सिनेमा भी बनाया गया, जो अब भी मौजूद है। यहां बनी दुकानों को अलग-अलग लोगों ने खरीदा।
संरक्षण की जरूरत
एस्लेहॉल बेशक आज अलग-अलग लोगों की निजी संपत्ति है, लेकिन दून का करीब डेढ़ सौ साल पुराना हेरिटेज होने के गौरव इस शॉपिंग कॉम्लेक्स के नाम है। ऐसे में दून हेरिटेज के संरक्षण के लिए काम करने वाले लोकेश ओहरी, विजय भट्ट और इंद्रेश नौटियाल जैसे लोग लगातार दून के सभी हेरिटेज के संरक्षण और विकास कार्यों के बीच इन्हें इनके मूल स्वरूप में बनाये रखने की लगातार मांग करते रहे हैं।