अप्रैल माह शुरू होते ही नया एजुकेशन सेशन शुरू हो जाता है। सेशन शुरू होते ही पैरेंट्स की भी परेशानी बढ़ जाती है। प्राइवेट स्कूल इस समय एडमिशन फीस बुक्स ड्रेस से लेकर मोटी रकम वसूल रहे हैं। जबकि कई स्कूल ऐसे भी हैं जिनके स्कूल प्रबंधक की ओर से मनमानी फीस वसूली जाती है। इन दिनों अधिकांश बुक्स स्टोर पर बुक्स नहीं मिल पा रहे। पैरेंट्स बुक्स के लिए एक बुक शॉप से दूसरे बुक शॉप के चक्कर काटने को मजबूर हैं।

देहरादून (ब्यूरो) दून में 3 हजार से ज्यादा सरकारी व प्राइवेट स्कूल्स हैैं, जिनमें सरकारी, केन्द्रीय विद्यालय व प्राइवेट स्कूल शामिल हैं। इनमें भी आईसीएसई, सीआईएसई, सीबीएसई, उत्तराखंड बोर्ड के स्कूल शामिल हैं। इनमें भी कई स्कूलों ने अपने बोर्ड बदल लिए हैं, जिसके बाद ज्यादातर स्कूल अब सीबीएसई में शामिल हो गए हैं। बावजूद इसके स्कूलों की मनमानी जारी है। जबकि, हर बार सरकार की ओर से महंगी किताबों पर रोक लगाने के लिए एक्ट बनाने का दावा किया जाता है। लेकिन, सब हवा हो जाते है। फिर मार्च में रिजल्ट आने के बाद पैरेंट्स की जद्दोजहद शुरू हो जाती है। उनके लिए बच्चों को एजुकेशन देना मुश्किल हो रहा है। सिटी के अधिकतर स्कूल ऐसे हैं जो हर साल पब्लिशर ही बदल देते हैं। जिससे सीधे-सीधे अभिभावक परेशान होते हैैं।


एक नजर
दून में स्कूल -3026
सीबीएसई - 1628
आईसीएसई- 78
सीआईएसई - 25
उत्तराखंड बोर्ड - 160 (माध्यमिक )
सरकारी अल्पसंख्यक स्कूल- 126


ये आ रही दिक्कत
- सीट फुल के नाम पर नहीं मिल रहा एडमिशन
- एडमिशन तो मिला, लेकिन नहीं मिल पा रही किताबें
- पब्लिशर बदलने से नहीं मिल पा रही कई बुक्स
- एनसीईआरटी की किताबें नहीं स्कूल्स में अवेलेबल
- ड्रेस बदलने से काटने पड़ रहे चक्कर
- क्लास 1-9 की बुक्स नहीं हो पा रही अवेलेबल
- फीस ऑनलाइन नहीं ले रहे स्कूल प्रबंधक

पहले की सरकारों ने जारी की गाइडलाइन
हर साल स्कूल में बच्चों के एडमिशन को लेकर स्कूल प्रबंधन के लिए निर्देश जारी किए जा रहे हैं। जानकारों के अनुसार पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार की ओर से ड्राफ्ट भी तैयार किया गया था। लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका। साथ ही मनमानी फीस पर रोक लगाने के लिए भी फीस एक्ट बनाने का भी दावा किया गया। साथ ही राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण बनाने का शासनादेश भी हुआ। इसके बाद भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार में नए सिरे से फीस एक्ट बनाने के लिए तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने भी कई बार नाराजगी जताई। लेकिन, बात आगे नहीं बढ़ पाई। इसके बाद राज्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बाद में राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण बनाने का शासनादेश हुआ। लेकिन उसके बाद भी हर साल की तरह इस साल भी पैरेन्ट्स पांच से दस हजार रुपये की किताबों के सेट और स्कूल फीस के नाम पर सिस्टम की मार झेलने को मजबूर हैं।

आरटीई में भी मिलता है एडमिशन
मंहगी फीस और एडमिशन फीस के लिए जो पैरेन्ट्स नहीं भर सकते, उनके लिए राइट टू एजुकेशन के तहत बच्चे एडमिशन लेते हैं। आरटीई में उत्तराखंड रजिस्टर्ड कुल 2476 स्कूल शामिल हैं, जिनमें देहरादून में 545 से ज्यादा स्कूल रजिस्टर्ड हंै। इसके बाद भी कभी एड्रेस गलत होने और कभी वेरिफिकेशन न होने के कारण एडमिशन नहीं मिल पाता है। जिससे बच्चों को इसका फायदा नहीं मिल पाता।

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Posted By: Inextlive