उत्तराखंड में ज्यादा जानलेवा होते हैं एक्सीडेंट
देहरादून ब्यूरो। देहरादून स्थित एसडीसी फाउंडेशन की सस्टेनेबल डेवलपमेंट डायलॉग सीरीज के अंतर्गत उत्तराखंड में रोड एक्सीडेंट चुनौतियां और समाधान विषय पर आयोजित वर्चुअल संवाद में विशेषज्ञों ने यह बात कही। इस वर्चुअल डायलॉग का संचालन एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने किया।
100 एक्सीडेंट में 70 हताहतसंवाद में शामिल सेव लाइफ फाउंडेशन के संस्थापक पीयूष तिवारी का कहना था कि उत्तराखंड हर 100 एक्सीडेंट्स मे मरने और घायल होने वालों की संख्या का औसत राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। देश में 100 रोड एक्सीडेंट में एवरेज 26 लोगों की मौत होती है या घायल होते हैं, जबकि उत्तराखंड में यह संख्या 60 से 70 तक पहुंच जाती है।
सिर्फ ड्राइवर जिम्मेदार नहीं
पियूष तिवारी का कहना था कि किसी भी हादसे के पीछे सिर्फ ड्राइवर को दोषी मान लेने की मानसिकता से बाहर आना होगा। हमें यह बात स्वीकार करनी होगी कि ड्राइवर कितना भी कुशल हो, वह कहीं न कहीं गलती कर सकता है। ऐसे में हमें प्रयास करने चाहिए कि ड्राइवर की गलती के बाद भी हादसे में लोगों की जान बचाई जा सके। उन्होंने कहा कि हर हादसे का साइंटिफिक इंवेस्टिगेशन करके और सेफ सिस्टम एप्रोच अपनाकर हादसों और उनसे होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।
रोड एक्सीडेंट में प्रोडक्टिव ऐज प्रभावित
एम्स ऋषिकेश के असिस्टेंट प्रोफेसर और ट्रॉमा सर्जरी स्पेशलिस्ट डॉ। मधुर उनियाल का कहना था कि रोड एक्सीडेंट में आम तौर पर वे लोग मारे जाते हैं, जो अपनी प्रोडक्टिव ऐज में होते हैं। ऐसे में ये मौतें न सिर्फ उनके परिवारों बल्कि पूरे समाज को कहीं न कहीं नुकसान पहुंचाती हैं। आमतौर पर यह धारणा है कि उत्तराखंड में आपदाओं में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं, लेकिन वास्तव में राज्य में रोड एक्सीडेंट में भी बड़ी संख्या में मृत्यु होती हैं। आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि प्रोडक्टिव ऐज में होने वाली मौतों की संख्या में उत्तराखंड ऊपर है और रोड एक्सीडेंट इसका एक बड़ा कारण हैं।
उत्तराखंड में नॉन रिस्पांडस केस कम
डॉ। उनियाल ने एम्स ऋषिकेश और एम्स दिल्ली के अपने अनुभवों के आधार पर बताया कि दिल्ली में एक्सीडेंट के शिकार नॉन रिस्पांडस केस बड़ी संख्या में आते हैं। ये वे केस होते हैं, जिन्हें एडवांस हेल्थ केयर की जरूरत होती है। लेकिन, ऋषिकेश में ऐसे केस नहीं आते। डॉ। उनियाल कहते हैं कि दरअसल मौके पर या उसके आसपास प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था न होने के कारण इस तरह के घायलों की हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है। यदि दुर्घटनास्थल के आसपास प्राइमरी ट्रॉमा सेंटर्स हों और ऐसे गंभीर घायलों को जल्द से जल्द लेवल वन ट्रॉमा सेंटर्स तक पहुंचने की व्यवस्था हो तो उत्तराखंड में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने कहा कि उत्तराखंड में रोड एक्सीडेंट की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। पिछले 5 वर्षों में राज्य में करीब 7 हजार रोड एक्सीडेंट हुए हैं और इनमें लगभग 5 हजार लोगों की मौत होने के साथ ही इतने ही लोग घायल भी हुए हैं। उन्होंने हाल के दिनों में हुई दुर्घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यदि प्राथमिक हेल्थ केयर सिस्टम में सुधार किया जाए तो राज्य में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या कम की जा सकती है।