देहरादून के आसपास बड़ी संख्या में हो रहे जंगलों के कटान के बीच संडे को इस मसले को लेकर दो अलग-अलग गोष्ठियों को आयोजन किया गया। इन गोष्ठियों में पिछले 20 वर्षों में 50 हजार हेक्टेअर जंगल काटे जाने को लेकर चिन्ता जताई गई और अब उत्तराखंड में जंगल काटने पर पूरी तरह से रोक लगाने की जरूरत बताई गई। यह भी कहा गया कि पर्यावरण की चिन्ता करने वालों को विकास विरोधी बताने का तर्कों और जानकारियों के साथ खंडन करने की जरूरत पर जोर दिया गया।

देहरादून (ब्यूरो)। दून पीपुल्स प्रोग्रेसिव क्लब की ओर से आयोजित की गई गोष्ठी में पर्यावरणविद् और बांधों के विरोध में लगातार आवाज उठाने वाले हेमंत ध्यानी प्रोजेक्ट के माध्यम से उत्तराखंड को पर्यावरण से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जल, जंगल और जमीन में कुछ भी सुरक्षित नहीं है और इन तीनों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि पिछले 20 सालों में उत्तराखंड में 50 हेक्टेअर जंगल काटे जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि विकास की जो सोच हाल के वर्षों में डेवलप की गई है, उसमें प्रकृति और पर्यावरण कहीं शामिल नहीं है। औली के बुग्यालों को सेठों के बच्चों की शादी के लिए किराये पर दिया जा रहा है तो केदारनाथ जैसी संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में भारी-भरकम निर्माण किये जा रहे हैं। उनका कहना था कि राज्य के धामों को दामों में बदला जा रहा है।

आंदोलन तेज करना जरूरी
पर्यावरणविद प्रो। रवि चोपड़ा ने कहा कि जो स्थितियां पैदा हो चुकी हैं, उन्हें देखते हुए अब पर्यावरण के प्रति संवेदनशील सभी लोगों को आगे आना चाहिए। अब पर्यावरण बचाने के लिए बड़े आंदोलन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक गौरादेवी का गांव रैणी में अब खतरे में है। इस क्षेत्र में बनाई गई बिजली परियोजनाओं के कारण गांव को विस्थापित करना पड़ रहा है। उन्होंने पर्यावरण बचाने के आंदोलन के युवाओं की भागीदारी को महत्वपूर्ण बताया। सिटीजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा ने कहा कि देहरादून में बिना जरूरत के जंगल काटे जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आशारोड़ी में 3 मिनट बनने के लिए 2500 पेड़ों को काटा जाना किसी भी हाल में तर्कसंगत नहीं है।

विकास की इतनी बड़ी कीमत
उत्तराखंड फॉरेस्ट्री यूनिवर्सिटी के डॉ। एसपी सती ने कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा की बात करना विकास विरोधी होना नहीं है। हमें बिजली और सड़क की जरूरत है, लेकिन उनकी कीमत हजारों पेड़ काटकर और गांवों में बांधों में डुबाकर नहीं चुकाई जानी चाहिए। उन्होंने बांधों का पर्यावरण के लिए बड़ी आपदा बताया। भूकंप के मेन थ्रस्ट जोन और पैरा ग्लेशियर क्षेत्र में बिजली योजनाओं को उन्होंने घातक बताया। उनका कहना था कि भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां नदियों के बहाव का अध्ययन किये बिना बांध बनाये जाते हैं। उन्होंने बांध के निचले क्षेत्रों में भारी भूस्खलन का इसका कारण बताया।

मंदाकिनी में लाखों टन मलबा
उत्तराखंड किसान सभा के महासचिव गंगाधर नौटियाल ने पर्यावरण पर हमले को देश के संघीय ढांचे पर खतरा बताया। उन्होंने मंदाकिनी नदी में बन रही दो बिजली परियोजनाओं और ऑल वेदर रोड का हवाला देते हुए कहा कि मंदाकिनी नदी में डंप किया गया हजारों टन मलबा निकट भविष्य में बड़ी तबाही का कारण बन सकता है।

जारी रहेगा आंदोलन
कचहरी स्थित शहीद स्थल पर हुई एक अन्य गोष्ठी में जंगलों को बचाने का आंदोलन लगातार आगे बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया गया गया। वक्ताओं ने जल, जंगल और जमीन पर जनता के अधिकार और पर्यावरण के साथ संतुलन स्थापित कर विकास नीति बनाने की जरूरत पर बल दिया।

Posted By: Inextlive