देहदान नेत्रदान और अंगदान जैसे काम करना हर किसी के बस की बात नहीं. इसके लिए हिम्मत और बड़ा दिल चाहिए. लेकिन आज भी ऐसे लोग हैं जो जीते जी और मरने के बाद भी दूसरों की मदद करने के लिए आगे आते हैं.


देहरादून, ब्यूरो: देहदान, नेत्रदान और अंगदान जैसे काम करना हर किसी के बस की बात नहीं। इसके लिए हिम्मत और बड़ा दिल चाहिए। लेकिन आज भी ऐसे लोग हैं जो जीते जी और मरने के बाद भी दूसरों की मदद करने के लिए आगे आते हैं। इन दोनों को सही तरीके से जरूरतमंदों तक पहुंचाने में सबसे बड़ा रोल उन लोगों का होता है, जो दिन-रात इस पर काम करते हैं। दून के यमुना कॉलोनी में स्थित दधीचि देह दान समिति ऐसी ही एक संस्था है। ये संस्था देश भर में 27 सैलून से दून में पिछले दो सालों से लगातार देहदान और अंगदान के प्रोसेस को आसान बना रही है। यह मेडिकल कॉलेजों, गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स और दान करने वालों के बीच ब्रिज का काम करती है, ताकि दान सही तरीके से जरूरतमंदों तक पहुंच सके। इनकी मेहनत और नेक काम की वजह से कई लोगों की जिंदगी बदल रही है।साल 2022 में हुई थी शुरुआत
दधीचि देह दान समिति न सिर्फ दून, बल्कि देशभर में अपने सेंटर्स के जरिए देहदान और अंगदान के लिए काम कर रही है। इस संस्था की शुरुआत 1997 में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आलोक कुमार ने की थी। जिसके बाद दून में भी यह समिति 27 फरवरी 2022 से सक्रिय है। समिति के दून अध्यक्ष, डॉ। मुकेश गोयल, बताते हैं कि पिछले 27 सालों से संस्था पूरे देश में अपनी सेवाएं दे रही है। दून में यह संस्था न सिर्फ जरूरतमंदों की मदद कर रही है, बल्कि गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेजों में पढऩे वाले स्टूडेंट्स को पढ़ाई में भी मदद पहुंचा रही है। संस्था का उद्देश्य देहदान और अंगदान को लेकर जागरूकता फैलाना और इसे सरल बनाना है। 2 साल में 13 देहदान, 23 नेत्रदान दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष ने बताया कि पिछले दो सालों में 400 लोग समिति से जुड़कर अंगदान करने का संकल्प ले चुके हैं। इसके अलावा, 13 लोगों ने देहदान किया है, जिनके शरीर को दून मेडिकल कॉलेज को सौंपा गया है। साथ ही अब तक 23 लोगों ने नेत्रदान किया, जिससे 46 लोगों की जिंदगी रोशन हो गई है। उन्होंने बताया कि जब कोई व्यक्ति अपनी दोनों आंखें दान करता है, तो उनका यूज दो अलग-अलग लोगों के लिए किया जाता है। इस तरह, एक दान से दो लोगों की जिंदगी में रोशनी लौट आती है। ये होता है प्रोसेस


अगर कोई अपना देहदान या नेत्रदान करना चाहता है, तो वह दधीचि देहदान समिति से संपर्क करता है। इसके बाद समिति की टीम उस व्यक्ति के घर जाकर परिवार के दो सदस्यों की सहमति के साथ फॉर्म भरवाती है। जब वह व्यक्ति, जिसने अपने शरीर या अंगदान करने का फैसला किया है, निधन हो जाता है, तो परिवार वाले तुरंत समिति को इसकी जानकारी देते हैं। अगर नेत्रदान का मामला होता है, तो समिति की मेडिकल टीम तुरंत दानकर्ता के घर पहुंचती है और कॉर्निया निकालकर उसे अस्पताल तक पहुंचाती है। इन जगहों पर होता है सप्लाई दून मेडिकल कॉलेज एम्स ऋ षिकेश श्रीनगर मेडिकल कॉलेज देहदान से स्टूडेंट्स की हेल्प

देहरादून में कई बड़े मेडिकल कॉलेज हैं, जहां स्टूडेंट्स को बेहतर डॉक्टर बनने के लिए हर तरह की सुविधाएं मिलती हैं। इन्हीं में से एक है रिसर्च और प्रैक्टिस के लिए ह्यूमन बॉडी की जरूरत। दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष डॉ। मुकेश गोयल बताते हैं कि देहदान का सबसे बड़ा फायदा मेडिकल स्टूडेंट्स को होता है। वे इन शरीरों पर प्रैक्टिस कर अपनी स्किल्स को निखारते हैं और एक बेहतर डॉक्टर बनने की ओर कदम बढ़ाते हैं। यही वजह है कि समिति अब तक 13 दान की गई बॉडीज को दून मेडिकल कॉलेज को सौंप चुकी है। इस पहल से न केवल स्टूडेंट्स को अपनी पढ़ाई में मदद मिलती है, बल्कि यह सोसायटी के लिए भी एक बड़ा योगदान है।दान करने वालो में यहां के लोग शामिल राजपुर रोड मोहकमपुरटर्नर रोड तिलक रोड दूसरे शहरों से भी आते हैं कॉल्स डॉ। मकेश गोयल का कहना है कि जब लोगों को किसी आर्टिकल या किसी और तरीके से संस्था के बारे में जानकारी मिलती है, तो वे उनसे कॉन्टेक्ट करते हैं। ऐसे में, जिस भी जगह से कॉल आता है, उनकी संस्था उस एरिया की टीम को सारी जानकारी दे देती है। इसके बाद टीम उस व्यक्ति से संपर्क करके आगे के प्रोसेस पूरी करती है।यहां-यहां से फोन कॉल्स भुवनेश्वर झारखण्ड इंदौर जबलपुर गाजियाबादनोएडा दिल्ली भटिंडा कोटा कानपूर पटना दधीचि देहदान समिति का एक ही मकसद है कि ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंदो की मदद हो सके। ये संस्था स्टूडेंस के लिए भी एक अहम् भूमिका निभा रही है जिससे की वो अपनी स्किल्स को बेहतर कर सकें। डॉ। मुकेश गोयल, अध्यक्ष, दधीचि देहदान समिति

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Posted By: Inextlive