ऑफिस के प्रेशर और टारगेट से तनाव में आ रहे यंगस्टर्स 60 परसेंट से ज्यादा डिप्रेशन और एंजाइटी के शिकार

वाराणसी (ब्यूरो)राजेश सिंह एक बैंक में काम करते हैं। महीने की शुरुआत में तो सब अच्छा रहता है, लेकिन 15 दिन बीतते ही टारगेट का प्रेशर ऐसा बढ़ता है कि वे परेशान हो जाते हैं। ज्यादा से ज्यादा इंसेंटिव कमाने के चक्कर में वे भूखे-प्यासे फील्ड में दौड़ते रहते हैैं। इस तरह की हालत सतीश जायसवाल की भी है। एक मोबाइल कंपनी में सेल्स का जॉब करने वाले सतीश टारगेट पूरा करने और ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की लालच में भागते रहते हैं। लंच करने का समय न मिलने से वे बर्गर और समोसा, चाट खाकर पेट भरते हैं। घर पहुंचते-पहुंचते भी उन्हें रात 11 बज जाता है। फिर सुबह 9 बजते ही निकल जाते हैं.

इच्छा पूरी करने की चाहत में परेशान

इस दोनों युवाओं में जो कॉमन बात है वो ये है कि दोनों को कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की चाहत है। ऑफिस में टारगेट का प्रेशर और घर में परिवार चलाने के लिए फाइनेंसियली स्ट्रांग बनने और हर जरूरत को पूरी करने की चाहत इस इन्हें इस कदर परेशान कर देता है कि कभी-कभी ये मेंटली डिस्टर्ब भी हो जाते हैं। इन सब का असर इनकी मानसिक स्वास्थ्य पर तो पड़ ही रहा है साथ ही ये समय से पहले बूढ़े भी हो रहे हैं। ये तो सिर्फ दो युवाओं की बात है शहर में इन दिनों ऐसा न जाने कितने यंगस्टर्स हैं जो इस तरह की समस्याओं से घिर रहे हैं.

लगातार बढ़ रहे हैं ऐसे केसेस

मंडलीय अस्पताल का मानसिक रोग विभाग में इस तरह के केस लगातार सामने आ रहे हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ। रविन्द्र कुशवाहा की मानें तो ओपीडी में ऐसे केसेस लगातार बढ़ रहे हैं। यहां हर रोज 8 से 10 मामले इस तरह के आते हैं। सभी की कांउसलिंग कर तनाव कम लेने की सलाह दी जाती है। उनका कहना है कि सपने देखना गलत नहीं है। जिंदगी में आपका रोल बड़ा होना चाहिए, उसे पाने का जज्बा और हौसला उस सपने से भी बड़ा होना चाहिए। लेकिन, सवाल ये है कि इस चक्कर में जिंदगी को दबाना नहीं चाहिए। ख्वाहिशों को पूरा करने के चक्कर में सेहत, सुकून और शांति की भी अहमियत है। लेकिन यंगस्टर्स इन सब को भूलकर सिर्फ भागने में लगे है। यही वजह है कि वे समय से पहले बूढ़े हो रहे हंै.

जिंदगी जीना आना चाहिए

साइकोलॉजिस्ट की मानें तो हमें जो जिंदगी मिली है वो बहुत खूबसूरत है। इसे जीना भी आना चाहिए। भागमभाग की इस दुनिया में आराम का पल भी होना चाहिए। लेकिन युवा अनियमित खान-पान, नींद पूरी न करना आदि में फंस गए है। इनकी जिंदगी यही तक सिमट कर रह गई है। ऐसे युवाओं ने दिन और रात की फिक्र भी खत्म कर दिया है।

कम हो रही है हैप्पीनेस

आज के दौर में जॉब मिल पाना काफी मुश्किल हो गया है। और जब जॉब मिल जाता है तो उस ऑगेनाइजेशन की डिमांड को पूरी कर पाना बड़ा चैंलेंज बन रहा है। बड़ा टारगेट और उसके बाद लगातार प्रेशर झेल पाना मुसीबत बन जाती है। इसके चक्कर में यूथ भूख-प्यास, नींद और आराम सब भूल जाता है। इन लोगों की लाइफ से हैप्पीनेस गायब हो जा रही है। लाइफ को जल्द से जल्द स्टेबलिश करना और अपने और अपनी फैमिली के लिए हर उस खुशी, ऐशो आराम पाना जिसके लिए वे वर्षों से इंतजार कर रहे थे, उसमें लग जाते हैं। यही उनकी बीमारी का कारण बन रहा है।

स्ट्रेस लाइफ का एक पार्ट

साइकोलॉजिस्ट डॉ। ऋचा सिंह बताती है कि स्ट्रेस लाइफ का एक पार्ट है और ये जरूरी भी है, लेकिन इसकी भी एक लिमिट है। लिमिट से ज्यादा स्ट्रेस लेने से इसका हम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके ज्यादा होने पर हम उस स्ट्रेस को किस तरह से मैनेज कर पाते है इसकी टेक्निक हमें आनी चाहिए। इसलिए जरूरत है कि सिर्फ यूथ को ही नहीं बच्चों को भी शुरू से ही स्ट्रेस मैनेजमेंट की टेक्निक सिखाए। ताकि इस तरह के किसी भी कंडिशन में जब स्ट्रेस ओवर हो तो उसे मैनेज कर सकें। इससे काफी हद तक इस तरह की समस्याओं से निजात मिल सकती है। हमारी जो एक्पेक्टिज है और हम अपने लिए गोल सेट कर पाए तो इतना तनाव नहीं है लाइफ में जितना उसे बना दिया जाता है। अगर इस तरह से चीजों से सेट करके चले तो काफी हद तक प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी।

किस तरह से ढल रही है उम्र

-सिर से बाल उड़ जाना

-कम उम्र में ही गंजे पन का शिकार

-20 से 35 की उम्र में दाढ़ी सफेद होना

-चेहरों पर झूर्रियां पड़ जाना

-घूंटनों दर्द शुरू हो जाता है

-जोड़ों में दर्द

आज की यूथ बहुत जल्दी में है। इसकी चक्कर में तनाव को बढ़ाया जा रहा हैै। हालांकि स्ट्रेस लाइफ का एक पार्ट है और ये जरूरी भी है, लेकिन इसकी भी एक लिमिट है। लिमिट से ज्यादा स्ट्रेस लेने से इसका हम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

डॉऋचा सिंह, साइकोलॉजिस्ट

ओपीडी में ऐसे केसेस लगातार बढ़ रहे हैं। यहां हर रोज 8 से 10 मामले इस तरह के आते हैं। सभी की कांउसलिंग कर तनाव कम लेने की सलाह दी जाती है। देखा जाए तो आज 50 फीसदी से ज्यादा यंगस्टर्स तनाव का शिकार है। इसमें पढऩे और जॉब करने वाले दोनों है।

डॉरविन्द्र कुशवाहा, मनोचिकित्सक, मंडलीय हॉस्पिटल

Posted By: Inextlive