दूसरों का सपना बना लिया अपना
-लेक्चरर की नौकरी छोड़ जुट गयीं दूसरों का कॅरियर संवारने में
VARANASIलाख काबिलियत के बाद भी महिला होने का खामियाजा हमारी सोसायटी में भुगतना पड़ता है। हर कदम पर अपनी अलग लाइन खींचनी होती है। सफलता सभी के कदम चूमे ऐसा होना भी जरुरी नहीं है। एक टीचर के घर में पैदा होकर सिर्फ एकेडमिक फील्ड में ही कॅरियर बनाने की सोच कई बार बाधा बन जाती है। बावजूद इसके मुझे इससे आजादी थी। कभी पैरेंट्स ने कोई कॅरियर चुनने का प्रेशर नहीं बनाया। उनका सिर्फ एक कहना रहा कि वो कॅरियर चुनो जिसमें पूरी ऊर्जा और मन से कार्य कर सको। बीएचयू से पोस्ट ग्रेजुएट करने के बाद, एमएड और फिर पीएचडी किया। इस बीच शादी हो गई। अपने सपनों को सच करने में ससुराल का भी पूरा साथ मिला। ससुराल के लोगों ने भी कोई बंदिश नहीं लगायी। इसी की वजह रही कि मेरा सेलेक्शन शिक्षा आयोग में हो गया। लेकिन कुछ व्यक्तिगत परेशानी के चलते मैंने उसे ज्वाइन नहीं किया। सन् 2003 में मैनें स्कूल ज्वाइन किया। जिसमें पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के सपनों को बुनने में जुट गयी। इसमें पति व फैमिली का भी पूरा सपोर्ट मिला। हालांकि लेक्चरर की नौकरी छोड़ने का थोड़ा दुख हुआ था। लेकिन आज मैं जो काम कर रही हूं। वह उससे भी बड़ा है। एक सही निर्णय का नतीजा है कि आज हजारों स्टूडेंट्स को उनका कॅरियर चुनने में मदद कर रही हूं। इसमें बहुत खुली मिल रही है।
डॉ। वंदना सिंह, डायरेक्टर संत अतुलानंद कान्वेंट स्कूल