आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने माइक्रो एल्गी 6 सूक्ष्मशैवाल 8 की दो नई नस्ल की खोज की है जिसकी मदद से शहरी गंदे पानी को साफ करने के एक नए प्रोसेस को तैयार किया गया है. स्कूल ऑफ बॉयो केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. विशाल मिश्रा और शोध छात्र विशाल सिंह की देखरेख में इस वॉटर प्यूरीफिकेशन मेथड को तैयार किया गया है.

वाराणसी (ब्यूरो)। आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने माइक्रो एल्गी 6 सूक्ष्मशैवाल 8 की दो नई नस्ल की खोज की है, जिसकी मदद से शहरी गंदे पानी को साफ करने के एक नए प्रोसेस को तैयार किया गया है। स्कूल ऑफ बॉयो केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ। विशाल मिश्रा और शोध छात्र विशाल सिंह की देखरेख में इस वॉटर प्यूरीफिकेशन मेथड को तैयार किया गया है। इसमें पहले, दूसरे और सूक्ष्मशैवाल-आधारित तीसरे शोधन को एक सतत् प्रणाली में एकीकृत किया गया है। यह प्रणाली न केवल गंदे जल को साफ करती है, बल्कि मूल्यवान सूक्ष्मशैवाल बायोमास भी उत्पन्न करती है, जिसका उपयोग बायोफ्यूल, प्रोटीन सप्लीमेंट और पशु चारे के रूप में किया जा सकता है, जिससे यह प्रोसेस फाइनेंशियल रूप से भी फायदेमंद है। इस शोध को हाल ही में भारत सरकार से पेटेंट मिला है।

गंगा जल में मिली सूक्ष्मशैवाल

डॉ। विशाल मिश्रा ने बताया, उनकी शोध टीम ने रविदास घाट के पास गंगा नदी से कई शैवाल के सैंपल एकत्रित किए और उनमें से दो नई नस्ल की माइक्रो एल्गी 6 सूक्ष्मशैवाल 8 की खोज की, जिनका नाम क्लोरेला सोरोकिनियाना वीएसवीएम 1 और टेट्राडेसमस अरेनिकोला वीएसवीएम 2 रखा गया है। इनके नामों का रजिस्ट्रेशन यूएसए स्थित नेशनल सेण्टर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन में किया गया है।

हार्मफुल एलिमेंट को करेगा साफ

डॉ। विशाल मिश्रा ने बताया, यह वॉटर प्यूरीफिकेशन मेथड आम लोगों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, क्योंकि यह गंदे जल से हार्मफुल एलिमेंट जैसे अमोनियम, नाइट्रोजन और फास्फेट को प्रभावी रूप से हटाकर जल को साफ करता है। यह नदियों और अन्य जल स्रोतों में प्रदूषण को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे पर्यावरण स्वस्थ होता है। इसे पानी खेती, सिचाई या अन्य कार्यों में उपयोग में लाया जा सकता है।

इस शोध का सामाजिक लाभ

इस प्रणाली को लागू करके, नगरपालिकाएं और इंडस्ट्री गंदे जल सिस्टम को महत्वपूर्ण रूप से सुधार सकते हैं, जिससे जनता का स्वास्थ्य और हमारा एन्वायर्नमेंट बेहतर हो सकता है। यह शहरी क्षेत्रों के लिए एक समाधान बन जाता है, जो गंदे जल की समस्या से जूझ रहे हैं।

क्या है बॉयोमास

बॉयोमास वह ईंधन है, जो जीवित जीवों के ऑर्गेनिक वेस्ट मेटेरियल जैसे पौधों के अपशिष्ट, पशुओं के अपशिष्ट, वन अपशिष्ट, और नगरपालिका के अपशिष्ट से तैयार किया जाता है। आसान भाषा में समझें तो बॉयोमास वह है, जिसे वेस्ट मेटेरियल से ईंधन में कन्वर्टेड किया जाता है और एनर्जी सोर्स के रूप में उपयोग किया जाता है।

कैसे काम करता है वाटर प्यूरीफिकेशन मेथड

डॉ। विशाल मिश्रा ने बताया कि इस विधि में पहली, दूसरी और सूक्ष्मशैवाल-आधारित तीसरे शोधन को एक सतत प्रणाली में एकीकृत किया जाता है। विधि में गंदे जल को पहले एक कंटेनर में रखा जाता है। जब उस कंटेनर में गंदगी अपने आप नीचे बैठ जाएगी, उसके बाद दूसरे चरण में मैकेनिकल प्रक्रिया की जाएगी, इसमें पानी को मशीन द्वारा मिलाया जाएगा, इस प्रक्रिया से गंदगी के छोटे कण आपस में जुड़ कर फिर नीचे बैठ जायेंगे। अब जो जल बचा है उसमें हानिकारक केमिकल जैसे अमोनियम, नाइट्रोजन और फोस्फोरस घुला रहता है। तीसरे चरण में सूक्ष्मशैवाल-आधारित शोधन प्रक्रिया आरंभ होती है। यह शैवाल हानिकारक केमिकल सोख लेती है।

इस वाटर प्यूरीफिकेशन मेथड से शहरी लोगों को बहुत फायदा होगा। ये गंदे पानी से सभी तरह के केमिकल को साफ कर देता है।

डॉ। विशाल मिश्रा, प्रोफेसर, स्कूल ऑफ़ बायो केमिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी बीएचयू

Posted By: Inextlive