काशी के सीनियर एडवोकेट आचार्य श्याम उपाध्याय 46 सालों से संस्कृत भाषा में लड़ रहे केस संस्कृत भाषा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए साल 2003 में मिला नेशनल संस्कृत अवॉर्ड 'संस्कृत मित्र'

वाराणसी (ब्यूरो) संस्कृत भाषा को समृद्ध करने में काशी का योगदान किसी से छिपा नहीं है। यहां की परम्परा में भी संस्कृत की झलक दिखती है। मॉडर्न और कॉनवेंट एजुकेशन के दौर में काशी में एक ऐसे भी शख्स हैं, जिन्होंने संस्कृत को जीवंत कर रखा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं सीनियर एडवोकेट आचार्य श्याम जी उपाध्याय की। कचहरी परिसर की भीड़ में पहनावे से वह भी वकीलों की जमात में शामिल हो जाते हैं, लेकिन जैसे ही उनका चेहरा सामने आता है और संवाद शुरू करते हैं तो 7 हजार की भीड़ में एकदम अलग, अनोखा और अद्भूत व्यक्तित्व की झलक सामने आती है। लोवर कोर्ट में लगभग सभी अधिवक्ता सुनवाई और बहस के दौरान अक्सर हिंदी या अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते दिखते हैं, लेकिन सिंगल आचार्य श्याम जी उपाध्याय हैं, जो कोर्ट रूम में सिर्फ और सिर्फ संस्कृत भाषा में ही अपनी दलीलें पेश करते है। संस्कृत में दलीलें सुनकर कोर्ट में काबिल दोस्त ही नहीं, बल्कि जज साहब भी असमंजस में पड़ जाते हैं। दलील ही नहीं, वकालतनामा, शपथ पत्र और प्रार्थना पत्र भी संस्कृत में जमा करते हैं।

जज को पड़ जाती है ट्रांसलेटर की जरूरत

वाराणसी जिला न्यायालय में पिछले 46 साल से श्याम जी उपाध्याय संस्कृत भाषा में केस लड़ते चले आ रहे हैं। उनका दावा है कि आज तक उन्हें किसी केस में हार का सामना नहीं करना पड़ा। कोर्ट रूम में संस्कृत भाषा में अपना पक्ष रखते हैं तो अच्छे-अच्छे वकीलों के पसीने छूट जाते हैं। कई बार कोर्ट रूम में जज भी हैरान हो जाते हैं। कई बार मुकदमे की सुनवाई के दौरान जज को ट्रांसलेटर की जरूरत भी पड़ती है।

संस्कृत में वकालत की रोचक कहानी

हिंदी और अंग्रेजी को छोड़ श्याम जी ने वकालत के लिए संस्कृत को क्यों चुना, इसकी भी बहुत रोचक कहानी है। उन्होंने 70 साल पुराना अपने जीवन से जुड़ा एक किस्सा सुनाया। वो साल 1954 था, जब श्याम जी उपाध्याय सात साल की उम्र में अपने पिता पंडित संकठा प्रसाद उपाध्याय के साथ मिर्जापुर कचहरी गए थे। पिताजी को किसी से कहते सुना कि यहां अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू में तो बहस हो रही है, लेकिन संस्कृत में नहीं, बहुत अफसोस है कि यहां संस्कृत में कोई बहस करने वाला नहीं है। बस यही बात उनको लग गई और उन्होंने संस्कृत भाषा में वकालत करने की ठान ली। फिर वाराणसी न्यायालय से उन्होंने इसकी शुरुआत की।

भगवान शंकर के भक्त हैं श्याम

कोर्ट परिसर में संस्कृत को जीवंत करने वाले श्याम जी उपाध्याय भगवान शंकर यानी श्री काशी विश्वनाथ के भक्त भी हैं। इसलिए उन्होंने अपने चौकी पर ही महादेव को स्थापित कर दिया है। हर रोज सुबह जब वो कचहरी आते हैं तो पहले चौकी पर विराजे महादेव की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं। उसके बाद वो अपने काम की शुरुआत करते हैं।

बीएनएस किसी चुनौती से कम नहीं

अभी तक कोर्ट में अधिवक्ता श्याम जी भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत अपनी दलीलें रखते रहे हैं, लेकिन एक जुलाई से देश में लागू नये कानून के तहत अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज होता है। श्याम जी बताते हैं कि देश में लागू नये कानून किसी चुनौती से कम नहीं हैं। अभी तक कोर्ट में नये कानून के तहत बहस या सुनवाई मेरे द्वारा नहीं की गई है। भविष्य में जरूरत पड़ी तो इस पर भी संस्कृत में ही बहस, सुनवाई समेत सभी अदालती प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

मिले हैं कई नेशनल अवॉर्ड

संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए 4 सितम्बर को संस्कृत दिवस भी मनाते हैं। इस मौके पर वह 50 अधिवक्ताओं को सम्मानित भी करते हैं। संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए कई किताब भी लिख चुके हैं। बता दें कि संस्कृत भाषा के क्षेत्र श्याम जी उपाध्याय के विशेष योगदान के लिए साल 2003 में भारत सरकार ने उन्हें नेशनल संस्कृत अवार्ड 'संस्कृत मित्रÓ से नवाजा था। इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं।

Posted By: Inextlive