अस्पतालों में इलाज की आड़ में नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त का धंधा बनारस में फल-फूल रहा है. वाराणसी व चंदौली में कई अस्पताल हैं जो नियम-कानून ताक पर रखकर संचालित हो रहे हैं. ऐसी आर्थिक रूप से कमजोर और अशिक्षित नाबालिग लड़कियां जो गर्भवती हो जाती हैं उनका गर्भपात करने के बजाय डॉक्टर बच्चों के खरीदार से सेटिंग कर लेते हैं

वाराणसी (ब्यूरो)। अस्पतालों में इलाज की आड़ में नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त का धंधा बनारस में फल-फूल रहा है। वाराणसी व चंदौली में कई अस्पताल हैं, जो नियम-कानून ताक पर रखकर संचालित हो रहे हैं। ऐसी आर्थिक रूप से कमजोर और अशिक्षित नाबालिग लड़कियां जो गर्भवती हो जाती हैं, उनका गर्भपात करने के बजाय डॉक्टर बच्चों के खरीदार से सेटिंग कर लेते हैं। इसके लिए गैंग के सदस्य चंदौली से सटे बिहार और सोनभद्र से सटे झारखंड के जिलों में विजिट भी करते हैं। यह काम ज्यादातर खुद को चिकित्सक या चिकित्साकर्मी कहने वाले अप्रशिक्षित लोग करते हैं। बदले में मोटी रकम वसूलते हैं। एयरपोर्ट में पकड़ी गई महिला ने मुगलसराय के अस्पताल से 50 हजार रुपए में बच्चा खरीदने की बात कही।

फर्जी डॉक्टर ने बेचा नाबालिग का बच्चा

फूलपुर थाना प्रभारी प्रवीण सिंह के अनुसार बच्चा खरीद-फरोख्त में मुख्य भूमिका निभाने वाला केबी हास्पिटल का संचालक जमील खान फर्जी डाक्टर बना हुआ था। उसके पास किसी तरह की डिग्री नहीं थी। इसने चंदौली के कटरिया की रहने वाली 16 साल की गर्भवती नाबालिग का प्रसव कराया और उसके बच्चे को 50 हजार में हास्पिटल में ही काम करने वाली निधि सिंह को बेच दिया। पूछताछ में जानकारी मिली कि नाबालिग शारीरिक व आर्थिक रूप से कमजोर है। उसके इलाज व खाने-पीने के नाम पर जमील खान ने उसे दस हजार रुपये दिए, जबकि 40 हजार रुपये अपने पास रख लिया।

खरीद-फरोख्त करने वाले गए जेल

नवजात बच्चे की खरीद-फरोख्त करने वाले चंदौली के दुलहीपुर निवासी जमील खान, मिर्जापुर के नारायणपुर निवासी अशोक पटेल व रामनगर के सुजाबाद की रहने वाली निधि सिंह के खिलाफ पुलिस ने गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। अदालत के सामने प्रस्तुत करके उनको जेल भेज दिया है। नवजात को चाइल्ड लाइन को सौंप दिया गया।

रात में चलता है गर्भपात का धंधा

चंदौली के दुलहीपुर स्थित केबी हास्पिटल का रजिस्ट्रेशन वाराणसी के रहने वाले सचिन कुमार के नाम से है। वह कुछ वक्त के लिए हॉस्पिटल जाकर मरीज देखते हैं, लेकिन अस्पताल का पूरा संचालन जमील खान करता था। जमील खान ने पांच महीने पहले रामनगर के साहित्यनाका मोड़ पर एक पतली गली में स्थित रेखा सिंह के मकान में किराये पर अस्पताल की शाखा खोली थी। इसमें एक केबिन एक हाल में मरीजों को भर्ती करने के लिए दो बेड और एक आपरेशन थियेटर है। अस्पताल के बाहर किसी तरह का बोर्ड नहीं लगाया है। गली के बाहर लोहे का छोटा सा बोर्ड लगाया है, जिस पर लिखा है केबी हेल्थ सेंटर। स्थानीय लोगों का कहना है कि जमील खान शाम को सात बजे आता था। यहां देर रात तक गर्भवती महिलाएं आतीं और और उनका गर्भपात कराया जाता था।

बच्चों की तस्करी का संदेह

पुलिस को जमील खान व निधि पर बच्चों की तस्करी करने का संदेह है। पुलिस अस्पताल के रजिस्टर की जांच कर रही है। यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि जमील खान की देख-रेख में कितने बच्चे पैदा कराए। वह बच्चे अपने माता-पिता के पास हैं या नहीं। पुलिस चंदौली के कटरिया की रहने वाली उस नाबालिग से भी पूछताछ करेगी, जिसके बच्चे को खरीदा गया। वहीं, पुलिस सेरोगेसी के एंगल पर भी जांच करेगी। गिरफ्तार महिला की देवरानी को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया है।

बढ़ सकती हैं धाराएं

पुलिस ने जमील खान, अशोक पटेल और निधि सिंह के खिलाफ बच्चे की खरीद-फरोख्त व फर्जी दस्तावेज तैयार करने से संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। उनके खिलाफ 137/338/340(2) बीएनएस व 81 जेजे एक्ट 2015 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। धारा 81 किशोर न्याय अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति जो किसी भी उद्देश्य के लिए बच्चे को बेचता या खरीदता है, उसे पांच वर्ष तक के कठोर कारावास और एक लाख रुपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। 338 में तहत कोई ऐसे दस्तावेज की कूटरचना करता है, जिसका तात्पर्य मूल्यवान प्रतिभूति या वसीयत, या पुत्र को गोद लेने का प्राधिकार होना है तो उसे दंडित किया जा सकता है। 340 (2) मेें जालसाजी द्वारा पूरी तरह या आंशिक रूप से बनाया गया एक झूठा दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड देने पर दंडित किया जा सकता है। पुलिस मामले की जांच के बाद धाराएं बढ़ा सकती है।

एक साल में 50 से ज्यादा बच्चे गायब

वाराणसी और उसके आसपास के जिलों से पिछले एक साल में 50 से ज्यादा बच्चे चोरी हुए हैं। इन बच्चों को एक से दो लाख रुपए में बिहार, झारखंड और राजस्थान में बेच दिया गया। यह खुलासा वाराणसी पुलिस ने बच्चा चोर गिरोह पकड़कर किया था। पूछताछ में सामने आया कि इनके टारगेट पर फुटपाथ पर सोने वाले परिवार होते थे। सोती हुई महिलाओं के पास से बच्चा उठा ले जाते थे। वजह है कि ये लोग जल्दी थाने में शिकायत नहीं करते हैं। अगर, करते भी हैं तो इनकी सुनवाई थाने में होती नहीं। यही नहीं, ये लोग मेला या व्यस्त बाजार से भी बच्चे चोरी करते थे। किसी को शक न हो, इसलिए गिरोह में महिलाएं भी शामिल करते थे।

बच्चे के एडॉप्ट करने की प्रॉसेस

1. खरीद कर या किसी अन्य गैर कानूनी तरीके से बच्चे को प्राप्त करना अपराध है। सरकार की ओर से बच्चे को गोद लेने की व्यवस्था है।

2. सबसे पहले सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथारिटी (कारा) की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है। मान्यता प्राप्त संस्थाएं बच्चा उनके पास आने की जानकारी कारा की ही वेबसाइट पर डाल देते हैं।

3. क्रम के अनुसार रजिस्ट्रेशन कराने वाले व्यक्ति से संपर्क किया जाता है। दंपति को बच्चे की फोटो भेजी जाती है। अगर वह हामी भरते हैं तो गोद देने की प्रक्रिया शुरू होती है।

4. पुलिस व अन्य विभागों द्वारा आवेदकों का वेरिफिकेशन होता है। इसके बाद कारा की टीम सारी जानकारी की खुद पड़ताल करती है। फिर अदालत से आदेश लेकर बच्चे को गोद दिया जाता है।

(बाल संरक्षण अधिकारी निरूपमा सिंह के अनुसार)

Posted By: Inextlive