Varanasi news: संस्कृत के प्रसार के लिए विश्वविद्यालय परिसरों से बाहर निकलें पंडित : आनंदी बेन
वाराणसी (ब्यूरो)। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कहा कि संस्कृत देववाणी ही नहीं, राष्ट्रवाणी भी है। इसमें संपूर्ण भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति सन्निहित है। सभी भारतीय भाषाएं इसके शब्दकोष से समृद्ध होती हैं। संस्कृत और संस्कृति के बल पर ही 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाया जा सकता है। इसलिए संस्कृत के ज्ञान के प्रसार के लिए पंडितों, विद्वानों, आचार्यों को विश्वविद्यालय परिसरों से बाहर निकलकर अपना दायित्व निभाना चाहिए। वह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक मुख्य भवन में आयोजित 42वें दीक्षा समारोह में अध्यक्षीय उद्बोधन दे रही थीं। समारोह में कुलाधिपति राज्यपाल ने 31 मेधावियों में 56 स्वर्ण पदक वितरित किए तथा बटन दबाकर 13733 शास्त्री-आचार्य व विद्यावारिधि (पीएचडी) के विद्यार्थियों के अंकपत्र व उपाधियों को डिजिलाकर में अपलोड किया।
उपाधिधारकों को बधाई और शुभकामना देते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत ग्रंथों में निहित प्राचीनतम ज्ञान-विज्ञान जन-जन तक पहुंचे, इसके लिए नकारात्मकता छोड़, सकारात्मक ऊर्जा से इसके प्रचार-प्रसार में लगना होगा। हमारे ऋषि-मुनियों, पूर्वजों ने यदि सकारात्मक सोच नहीं रखी होती तो आज ये धरोहरें हमारे पास नहीं होतीं। कुलाधिपति ने कहा कि भारत की प्रतिष्ठा के दो आधार स्तंभ हैं, संस्कृत भाषा और संस्कृति। नई पीढ़ी को एक आदर्श व राष्ट्रभाव से परिपूर्ण नागरिक तैयार करने के लिए संस्कृत व संस्कृति का ज्ञान होना आवश्यक है। इसके लिए संस्कृत के विद्वानों को आठ वर्ष तक के छोटे बालकों के लिए संस्कृत के शब्दकोष व छोटी-छोटी पुस्तकें तैयार करनी चाहिए। वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की जो परिकल्पना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की है, अगले 25 वर्षों में उसका दायित्व इन्हीं बालकों के कंधों पर आना है। इसलिए उनको इस ²ष्टि से तैयार करने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय के सरस्वती पुस्तकालय में संग्रहित एक लाख प्राचीन पुस्तकों व पांडुलिपियों को संरक्षित कर उन्होंने दो वर्षों में उनके डिजिटाइजेशन का कार्य पूर्ण कर लेने का दायित्व भी विश्वविद्यालय को सौंपा। इसे गति देने के लिए एक और कंप्यूटर खरीदने को कहा।
समारोह में मुख्य अतिथि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो। अनिल डी सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप परिषद तकनीकी की पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करा रहा है। इसके लिए ÓअनुवादिनीÓ नामक टूल तैयार किया गया है। अभी इससे अनुवाद करने में बहुत सी खामियां सामने आ रही हैं लेकिन देखा गया है कि सभी भारतीय भाषाओं में प्रचुर मात्रा में संस्कृत के शब्द हैं। इसलिए तकनीकी ज्ञान को भारतीय भाषाओं में अनूदित करने के लिए संस्कृत को माध्यम बनाना सरल होगा। पहले विषयवस्तु का अनुवाद संस्कृत में किया जाय, तत्पश्चात संस्कृत से उसे भारतीय भाषा में अनूदित किया जाय तो खामियां दूर हो सकती हैं। इसके लिए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के आचार्यों से आग्रह है कि वे इस कार्य को संपन्न कराने में अपना सहयोग करें। क्योंकि संस्कृत को जाने बिना भारतवर्ष के ज्ञान को जानना संभव ही नहीं है। वेद, उपनिषद-ज्ञान, गीता, कालिदास के बिना भारत, भारत नहीं है। आज हम जिस ज्ञान का शोध कर रहे हैं, वह पश्चिम से आया है,
यह गलत परिकल्पना है। भारत से ज्ञान पश्चिम को गया, फिर इधर आया। विशिष्ट अतिथि उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने कहा कि 2047 तक भारत को विश्वगुरु बनाने के महायज्ञ में संस्कृत विद्वानों, स्नातकों को ज्ञान यज्ञ की आहुति देनी होगी। यहां से ज्ञान प्राप्त कर जीवन के विविध क्षेत्र में जाने वाले विद्वान छात्र स्वांत: सुखाय जो भी करें, उसमें परजन हिताय व राष्ट्र हिताय का भाव अवश्य हो। परतंत्रता कालखंड के इतिहास में जो त्रुटियां हो गई हैं, उन्हें ठीक करने की जिम्मेदारी भी गुरुजनों की है। हमारी शिक्षण संस्थाएं राम, कृष्ण, गौतम, चंद्रगुप्त, राणा और शिवा तैयार करती हैं, पटरी पर पत्थर रखने वाला नहीं। विशिष्ट अतिथि उच्च शिक्षा राज्य मंत्री रजनी तिवारी ने भी युवा उपाधिधारकों से राष्ट्र के नवनिर्माण में अपनी ऊर्जा लगाने का आह्वान किया। कुलाधिपति राज्यपाल ने चंदौली के दस आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, परिषदीय विद्यालयों के पांच अध्यापकों व परिषदीय विद्यालयों के 15 विजेता बच्चों को किट््स व अन्य उपहार देकर पुरस्कृत किया। स्वागत व धन्यवाद ज्ञापन कुलपति प्रो। बिहारी लाल शर्मा, संचालन डा। मधुसुदन मिश्र व कुलसचिव राकेश कुमार ने किया।