बारिश का मौसम एक ओर जहां गर्मी से राहत देता है. वहीं दूसरी ओर जलजनित बीमारियों को भी आमंत्रण देता है. इस मौसम में पब्लिक को डेंगू चिकनगुनिया व मलेरिया सरीखी बीमारियों से जूझना पड़ता है. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने बारिश के दौरान मच्छरों से बचाव के लिए एक नई टेक्निक का इस्तेमाल किया है. ऑयल बॉल टेक्निक से लार्वा का विस्तार नहीं होगा और जो हैं भी वे धीरे-धीरे नष्ट होते जाएंगे.

वाराणसी (ब्यूरो)। बारिश का मौसम एक ओर जहां गर्मी से राहत देता है। वहीं, दूसरी ओर जलजनित बीमारियों को भी आमंत्रण देता है। इस मौसम में पब्लिक को डेंगू, चिकनगुनिया व मलेरिया सरीखी बीमारियों से जूझना पड़ता है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने बारिश के दौरान मच्छरों से बचाव के लिए एक नई टेक्निक का इस्तेमाल किया है। ऑयल बॉल टेक्निक से लार्वा का विस्तार नहीं होगा और जो हैं भी, वे धीरे-धीरे नष्ट होते जाएंगे।

बारिश में जहां भी जलजमाव होता है। वहां मच्छरों का प्रकोप देखने को मिलता है। जलजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक खास प्लान तैयार किया है। स्वास्थ्य विभाग मच्छरों के खात्मे के लिए ऑयल बॉल टेक्निक का प्रयोग कर रहा है। यह ऑयल बॉल पिंडरा ब्लॉक के पतिराजपुर गांव की स्वयं सहायता समूह मां लक्ष्मी महिला समूह की महिलाएं तैयार कर रही हैं। ऑयल बॉल टेक्निक का इस्तेमाल जलजनित बीमारियों से मुक्ति दिलाएगी। बल्कि बेरोजगार महिलाओं को भी रोजगार दिलाने में सहायक होगी।

ट्रॉयल रहा सफल

जिला मलेरिया अधिकारी शरद चंद्र पांडेय ने बताया, 15 से 20 दिन का प्रयोगिक अध्ययन किया गया। यह अध्ययन सीर गोवर्धन क्षेत्र के काशीपुरम कॉलोनी के जलजमाव वाले खाली प्लाटों, नालियों और गड्ढों में किया गया था, जो पूरी तरह से सफल रहा। इस योजना में कुल 2698 वर्कर्स ने काम किया।

ऑयल बॉल टेक्निक

लकड़ी के बुरादे को कपड़े की पोटली में बांधकर छोटे-छोटे बॉल बनाए गए। इन्हें निष्प्रयोज्य इंजन ऑयल में डुबोया जाता है। इस बॉल को ठहरे हुए जल में डाला जाता है, जिससे ऑयल की परत धीरे-धीरे पानी की सतह पर फैल जाती है, इस कारण मच्छर के लार्वा को ऑक्सीजन की उचित मात्रा नहीं मिल पाती और लार्वा नष्ट हो जाता है। इसका प्रयोग मुख्य एंटी लार्वा गतिविधियों जैसे टेमीफास स्प्रे, बीटीआई स्प्रे एवं फागिंग गतिविधियों के साथ-साथ एक अन्य सहयोगी विकल्प व विधि के रूप में किया जाएगा।

कैसे हुआ अध्ययन

एक खाली प्लॉट में कई महीनों से पानी भरा था, जिसमें लार्वा थे। लार्वा घनत्व 10 था, जिसमें ऑयल बॉल का प्रयोग किया गया। 24 घंटे के उपरांत ऑयल बॉल के चारों ओर ऑयल की परत पानी की सतह पर लगभग तीन मीटर में तक फैल गई, जिससे लार्वा की संख्या में गिरावट देखी गई। इसके पश्चात लार्वा घनत्व दो पाया गया। एक बड़ी नाली में भी इस विधि का प्रयोग किया गया, जिसमें काफी संख्या में लार्वा थे। 24 घंटे के बाद अध्ययन में देखा गया कि ऑयल बॉल 20 से 30 सेमी की दूरी में लार्वा नष्ट हो गए, लेकिन 50 सेमी। के लार्वा जीवित थे। कचरे की वजह से नाली जाम थी, जिस वजह से ऑयल का फैलाव पूर्णरूप से नहीं हो सका। इस कारण नाली में इसका प्रयोग विफल रहा। कच्ची जमीन में दो मीटर क्षेत्र वाले गंदे पानी से भरे गड्ढे में ऑयल बॉल का प्रयोग किया गया। यहां कचरा नहीं था। इससे ऑयल का फैलाव पानी की सतह पर दिखने लगा, जिससे लार्वा की संख्या में गिरावट देखी गई और यह प्रयोग सफल रहा। स्वयं सहायता समूह की ओर से निर्मित एक ऑयल बॉल लगभग 50 मिली इंजन ऑयल अवशोषित करता है। करीब 50 मी लंबे और 50 मी चौड़े पानी से भरे हुए खाली प्लॉट के लिए लगभग आठ ऑयल बॉल चाहिए होंगे।

मच्छरों के सिटी में 34 हॉटस्पॉट

मीरपुर बसही, शिवपुरी, फुलवरिया, पांडेयपुर, पहाडिय़ा, टकटकपुर, खोजवां करौंदी, कंडवा, सामने घाट, बीएचयू, सलारपुर, राजघाट, नेवादा, सुंदरपुर, सुस्वाही, भगवानपुर, नगवां, चितईपुर, बड़ी बाजार, चेतगंज, सिगरा, सोयपुर, सलारपुर, लोहता, सारनाथ,अकथा, रामनगर, सीर गोवर्धन, छित्तूपुर, घसियारी, तिलमापुर, टोला, बरेका, खजुरी।

आसपास के एरिया भी सेंसेटिव

करघाना, बैरवा, जगतपुर, देवचंदपुर, सिसवा, बीकापुर, उमरा, बरइर्, मोकलपुर, छितौनी,जालूपुरा, जगदीशपुर, सहडी, मवैया, धरसौना, राजापुर, औरा, मुरादाहा, कोईरान, सेमलपुर, कुरोटा, बचाव, कुरहुवा, जमापुर, थाथरा और कपसेठी।

वर्जन

ऑयल बॉल टेक्निक का इस्तेमाल वाराणसी में पहली बार किया जा रहा है। ये तरीका पहले भी हम लोगों को बताया करते थे, लेकिन अब उसी तरीके को और कारगर बनाया गया है। अभी जो ट्रॉयल चल रहे हैं। उसमें सकारात्मक फायदे देखने को मिले हैं। जलजनित बीमारियों से लडऩे की पूरी तैयारी है। लोगों के भी जागरूक होने की जरूरत है

संदीप चौधरी, सीएमओ वाराणसी

Posted By: Inextlive