Varanasi news: घर-घर पूजे गए नाग देवता, अखाड़ों में चला दंगल, नागकूप पर उमड़ी भीड़, शिवालयों में लगी कतार
वाराणसी (ब्यूरो)। महादेव की नगरी काशी में उनके गणों की आस्था श्रावण शुक्ल पंचमी यानी नागपंचमी को नागलोक से जुड़ी। घर-घर में नाग देवता की आकृतियां बना उनकी पूजा-अर्चना की गई तो नागों को दूध-लावा चढ़ाया गया, विविध तरह के पकवान बने। बाबा विश्वनाथ दरबार समेेत सभी शिवालयों में श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रही। भगवान शिव के साथ उनके गलहार की भी भक्तों ने विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की। उधर काशी के अखाड़ों में पहलवानों ने कुश्ती दंगल में दाव आजमाए तो कबड्डी, चिकवा जैसे परंपरागत खेल भी हुए। पेड़ों की डालों पर झूले पड़े तो बच्चों, युवतियों, महिलाओं ने झूले झूलते हुए कजरी गीतों से वातावरण गुंजायमान किया। नागों का चित्र बेचने वाले 'बड़े गुरु का नाग ले लोÓ 'छोटे गुरु का नाग ले लोÓ की आवाजें लगाते फिर रहे थे तो संपेरों ने भी पिटारे में नागों का आस्थावानों को दर्शन करा अपनी परंपरा का निर्वहन किया।
नागकूप रहा भक्तों का रेला
शेषनाग के अवतार कहे जाने वाले महर्षि पतंजलि की साधना स्थली नागकूप में भक्तों का रेला उमड़ पड़ा। सबने नागकूप का दर्शन-पूजन, आरती कर कूप के पवित्र जल का पान किया। मान्यता है कि इस कूप के जल का पान करने सभी तरह की बीमारियां ठीक हो जाती हैं।नागपंचमी के लोक पर्व पर प्रात:काल से ही हर घर में आस्था का वातावरण रहा। गृहस्वामिनियों ने स्नानादि से पवित्र हो नाग देवता की पूजा-अर्चना करते हुए स्वजनों के साथ ही सर्पदंश से समस्त लोक के कल्याण की कामना की व पूरे घर में दूध-लावा का छिड़काव कर नाग देवता को संतृप्त होने का आमंत्रण दिया। घरों में पूजन के बाद लोग मंदिरों में पहुंचे और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हुए उनके गलहार नागदेवता की भी पूजा की। काशी में शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, कंबल, अश्वेतर और शखंचूड़ सात प्रकार के नागों के दर्शन-पूजन का विधान है। शहर के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में भी नागपूजन के बाद कजरी व कुश्ती की धूम रही। बड़ागांव क्षेत्र में शुक्रवार को नागपंचमी का पर्व परंपरागत पूजन- अर्चन के बीच मनाया गया।
अखाड़ों में देशी-विदेशी पहलवानों ने दिखाए दांव-पेचनागपंचमी पर शुक्रवार को अखाड़़ों में पहलवानों ने दांव पेच के कौशल दिखलाए। तुलसीघाट स्थित स्वामीनाथ अखाड़े में नीदरलैंड से आए पहलवान हर्बर्ट ने भी ताकत आजमाई, हालांकि उन्हें पराजित होना पड़ा। उन्होंने जोड़ी-गद्दा पर भी हाथ फेरा। बताया कि वह नीदरलैंड में इसी देशी स्टाइल में कुश्ती सिखाते हैं। उन्हें भारतीय संस्कृति से जुड़ी कुश्ती और दंगल का ये तरीका बेहद पंसद है। अखाड़े से जुड़े ज्ञान शंकुल ङ्क्षसह ने बताया कि इस अखाड़े की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने कराई थी। उधर, सिगरा स्थित सोनिया पोखरा अखाड़े पर कुश्ती दंगल हुआ। 150 वर्षों से चल रहे इस परंपरागत दंगल में दर्जनों पहलवानों ने सहभागिता की।