कोई भी मनोकामना पूर्ण नहीं होती है तो परेशान होने की जरूरत नहीं. काशी में बाबा विश्वनाथ के अलावा बाबा कामेश्वर महादेव भी विराजमान हैं जिनके दर्शन और पूजन करने से भी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

वाराणसी (ब्यूरो)। कोई भी मनोकामना पूर्ण नहीं होती है तो परेशान होने की जरूरत नहीं। काशी में बाबा विश्वनाथ के अलावा बाबा कामेश्वर महादेव भी विराजमान हैं, जिनके दर्शन और पूजन करने से भी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यही वजह है कि यहां पर सोमवार हो या फिर रविवार, हमेशा भक्तों की भीड़ रहती है। जल चढ़ाने से लेकर दूध से अभिषेक कराने के लिए भक्त कतारबद्ध रहते हैं। मच्छोदरी गायघाट स्थित कामेश्वर महादेव का मंदिर में बाबा विराजमान है।

दुर्वासेश्वर महादेव की महिला निराली

ज्योतिषाचार्य संगीता गौड़ की मानें तो बाबा कामेश्वर महादेव के साथ ही दुर्वासेश्वर महादेव भी विराजमान हैं। मंदिर तो काफी पुराना है वहीं कई शिवलिंग भी स्वयंभू हैं। मंदिर में चार ज्योर्तिलिंग भी है। द्वादश आदित्य में एक खखोलकादित्य भी यहां पर विराजमान हैं। साथ ही महाबल नरसिंह व मारकंडेय महादेव का भी अलग-अलग मंदिर है। मंदिर के पुजारी राजेश गिरि बताते हैं कि यहां पर दुर्वासा मुनि के द्वारा प्रतिष्ठा लिंग दुबसिश्वर भी विराजमान है जिनको शानि त्रयोदशी के दिन (शनि प्रदोष) के दिन पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है।

सभी की मनोकामनाएं होतीं पूर्ण

यह काशी के प्रमुख शिवालयों में से एक है। पं। कुबेरनाथ शुक्ल ने अपनी प्रसिद्ध कृति वाराणसी वैभव में इस मंदिर के बारे में वर्णन किया है। उनके मुताबिक दुर्वासा ऋषि द्वारा स्थापित यह शिवलिंग सभी प्रकार की मन: कामनाओं को देने वाला कहा गया है। इसके समीप काम कुंड भी थी, मगर मत्स्योदरी तीर्थ के साथ ही साथ वह भी पाट दिया गया है। एक मत यह भी है कि कामदेव ने इसकी स्थापना की।

दुर्वासेश्वर कामद लिंग

दुर्वासेश्वर कामद लिंग के नाम से प्रसिद्ध है जिनकी सेवा करने से समस्त कामनाएं पूरी होती है। यहां पर सावन के अंतिम सोमवार पर महादेव का श्रृंगार व भंडारा होता है। यहां पर वैसे तो रोज ही भारी संख्या में दर्शनार्थियों का आना होता है लेकिन सावन के दिनों में यहां पर बद्धालुओं की भीड़ और भी बढ़ जाती है।

कामेश्वर-दुर्वासेश्वर संग विराजमान

कामेश्वर तथा दुर्वासेश्वर दोनों ही शिवलिंग एक ही मंदिर में अब भी विराजमान है। शनि प्रदोष के दिन संध्या समय में इनके पूजन का विशेष महात्म्य है। कामकुंड में स्नान करने से सभी पातकों का नाश होता है। इस कामकुंड में स्नान करके कामेश्वर पूजन का विधान था लेकिन अब तो कामकुंड ही लुप्त हो गया है। मंदिर के ईशान कोण (उत्तर पूर्व) की दिशा में एक कुंड है जिसमें पीतल के अरघे में छोटी पिंडको कामेश्वर नाथ की है। जबकि बड़ी पिंडको दुर्वासेश्वर की है। जिनकी तपस्या से इनका प्राकट्य हुआ है।

नंदी का पूर्वाविमुख मूर्ति

गर्भगृह के चाहर पश्चिमी द्वार पर नंदी की पूर्वाविमुख मूर्ति है। गर्भगृह के बाहर द्वार को दाहिनी ओर दीवार पर संगमरमर की लक्ष्मी व विष्णु तथा बायों और गणेश की मूर्ति है। इसका जीणोंद्वार सन 1959 में किया गया था। यहां पर शिव की अनेक पिंडिया है। वहां पर द्वादश ज्योतिलिंग भी विराजमान है।

मन कामेश्वर महादेव सभी की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं और दर्शन मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं। यह स्वयंभू है दुर्वासा ऋषि के कठोर तप के कारण यह सात पाताल का भेदन करते हुए प्रकट हुए हैं। यहां एक कूप भी है जो बहुत ही प्राचीन मंदिर है।

पंडित राजेश गिरी, पुजारी

काशी में हर मुहल्ले हर गली में बाबा विराजमान है। सभी शिवलिंग का महत्व है। बाबा का दर्शन-पूजन करने से ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

दीपक मालवीय, सदस्य, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास

मनकामेश्र मंदिर काफी पुराना है। यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना बाबा पूर्ण करते है। एक लोटा जल चढ़ाने पर बाबा प्रसन्न हो जाते है।

संगीता गौड़, ज्योतिषाचार्य

Posted By: Inextlive