भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी बीएचयू के फार्मास्युटिकल्स इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं ने गैस्ट्रो-डुओडेनल अल्सर के इलाज में एक नवीनतम खोज करने में सफलता प्राप्त कर ली है. खोजकर्ता प्रोफेसर साईराम कृष्णमूर्ति और शोध छात्र पंकज पालीवाल की टीम ने एक मौखिक जैव-सक्रिय ग्लास फॉर्मुलेशन तैयार किया है जिसमें माइक्रोनाइज्ड बेरियम ऑक्साइड शामिल है.

वाराणसी (ब्यूरो)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी बीएचयू) के फार्मास्युटिकल्स इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं ने गैस्ट्रो-डुओडेनल अल्सर के इलाज में एक नवीनतम खोज करने में सफलता प्राप्त कर ली है। खोजकर्ता प्रोफेसर साईराम कृष्णमूर्ति और शोध छात्र पंकज पालीवाल की टीम ने एक मौखिक जैव-सक्रिय ग्लास फॉर्मुलेशन तैयार किया है जिसमें माइक्रोनाइज्ड बेरियम ऑक्साइड शामिल है। यह फॉर्मुलेशन गैस्ट्रिक और डुओडेनल अल्सर के खिलाफ सेफ्टी और थेरेप्यूटिक असर दिखाती है। यह फॉर्मुलेशन पेट के एसिड को न्यूट्रलाइज करने में मदद करती है, जिससे अल्सर की इंटेसिटी कम हो जाती है। इस उपचार ने कोशिकाओं के प्रसार को बढ़ाया, जिससे अल्सर के ठीक होने में सहायता मिली। इसके अलावा, यह फॉर्मुलेशन एक प्रोटेक्टिव बैरियर बनाती है, जो अल्सर को बढ़ाने वाले हानिकारक कारकों से बचाव करती है।

इन कारणों से होते है अल्सर

इस सम्बन्ध में जानकारी देते हुए प्रोफेसर साईराम कृष्णमूर्ति ने बताया कि भारत में पेप्टिक अल्सर की जीवनकाल प्रचलन दर 11.22 परसेंट है, जबकि दुनियाभर में डुओडेनल अल्सर की प्रचलन दर लगभग 3.00 परसेंट है। ये अल्सर पुरुषों में अधिक सामान्य होते हैं और आमतौर पर एच। पाइलोरी संक्रमण, गैर-स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स का उपयोग, धूम्रपान, दैनिक एस्पिरिन का सेवन, और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर जैसे कारणों से होते हैं।

सुरक्षित और अधिक प्रभावी

इन अल्सरो में पेट की एसिड डिफेंस मैकेनिज्म (अम्लीय सुरक्षा तंत्र) कमजोर हो जाती है, जिससे अल्सर की समस्या उत्पन्न होती है। डॉ। ने बताया कि अभी तक, प्रोटोन पंप इनहिबिटर और हिस्टामाइन टाइप 2 रिसेप्टर ब्लॉकर्स का उपयोग पेट के अम्लीय उत्पादन को कम करने और अल्सर को ठीक करने के लिए किया जाता है। हालांकि, इनका लंबे समय तक उपयोग साइड इफेक्ट्स के साथ जुड़ा हो सकता है। इसलिए, एक सुरक्षित और अधिक प्रभावी एंटी-अल्सर एजेंट की आवश्यकता है।

सिरेमिक इंटरनेशनल और एसीएस ओमेगा में प्रकाशित

इस मौखिक जैव-सक्रिय ग्लास फॉर्मुलेशन की प्रभावशीलता और सुरक्षा पर किए गए व्यापक शोध के परिणामों को प्रतिष्ठित जर्नल्स जैसे कि सिरेमिक इंटरनेशनल और एसीएस ओमेगा में प्रकाशित किया गया है। इसके साथ ही, बीएबीजी के लंबे आधे-जीवन के कारण इसे मौजूदा दवाओं की तुलना में बेहतर रोगी अनुपालन के लिए विकसित किया गया है।

प्रोडक्ट को बाज़ार में लांच करने की है तैयारी

प्रोफेसर साईराम कृष्णमूर्ति और पंकज पालीवाल के शोध एक मौखिक जैव-सक्रिय ग्लास फॉर्मुलेशन जिसमें जलयुक्त माइक्रोनाइज्ड बेरियम ऑक्साइड होता है, के उपयोग से गैस्ट्रो-डुओडेनल अल्सर के इलाज के लिए उनके अनुसंधान समूह द्वारा आविष्कृत इस शोध को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय द्वारा पेटेंट प्रदान किए गए हैं। इस रिसर्च में प्रमुख डॉक्टोरल छात्र, पंकज पालीवाल और श्रेयसी मुजुमदार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिन्होंने इस शोध को एक दशक से भी अधिक समय तक आगे बढ़ाया है। इस नए जैव-सक्रिय ग्लास फॉर्मुलेशन का व्यापक अध्ययन के परिणामस्वरूप एक सुरक्षित और प्रभावी चिकित्सीय विकल्प के रूप में भविष्य में उपयोग होने की संभावना है।

प्रोफेसर साईराम कृष्णमूर्ति ने बताया कि क्लिनिकल ट्रायल के बाद इस प्रोडक्ट को बाज़ार में लांच करने की तैयारी है। निदेशक, प्रोफेसर अमित पात्रा ने प्रोफेसर साईराम कृष्णमूर्ति और उनकी शोध टीम को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है। उन्होंने भविष्य में उनके अनुसंधान को और आगे बढ़ाने के लिए हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है।

वर्जन

ये अल्सर पुरुषों में अधिक सामान्य होते हैं और आमतौर पर एच। पाइलोरी संक्रमण, गैर-स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स का उपयोग, धूम्रपान, दैनिक एस्पिरिन का सेवन, और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर जैसे कारणों से होते हैं। इस खोज से इसे कम करने में मदद मिलेगी।

प्रोफेसर साईराम कृष्णमूर्ति, आईआईटी बीएचयू

Posted By: Inextlive