कभी प्यार तो कभी डांट जीने की राह दिखाने वाले टीचर्स को हैप्पी टीचर्स डे. टीचर का काम होता है बिना किसी स्वार्थ के स्टूडेंट्स को शिक्षा देना. बनारस तो वैसे भी शिक्षा का केंद्र है ही. यहां अगर पढऩे की भावना है तो गुरु भी पग-पग पर मिल जाएंगे. ये शिक्षक मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं.

वाराणसी (ब्यूरो)। कभी प्यार तो कभी डांट, जीने की राह दिखाने वाले टीचर्स को हैप्पी टीचर्स डे। टीचर का काम होता है बिना किसी स्वार्थ के स्टूडेंट्स को शिक्षा देना। बनारस तो वैसे भी शिक्षा का केंद्र है ही। यहां अगर पढऩे की भावना है तो गुरु भी पग-पग पर मिल जाएंगे। ये शिक्षक मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं। सिर्फ इस भाव से की आने वाले समय में ये गरीब बच्चे अपनी कई पीढिय़ों का जीवन संवार सकते हैं। उन्होंने समस्याओं से जूझते हुए गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की। कई बार तो भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने पर टीचर्स को जान से मार देने की धमकियां भी मिलीं, पर निडरता के साथ उन्होंने अपने नेक काम को जारी रखा है। आज टीचर्स डे है। जो कि ऐसे ही टीचर्स के लिए समर्पित है। इस खास दिन पर आपको बताते है कि इन्होंने मुफ्त शिक्षा देने के लिए क्यों सोचा।

बच्चों संग महिलाओं को भी शिक्षा

संगीता थर्ड संडे ग्रुप की संचालिका हैं। उनका बचपन से सपना था कि वह बच्चों और महिलाओं को शिक्षा दे सकें। जब भी वह सड़क में बच्चों को भीख मांगते देखती थीं, तब तब उनका सपना और मजबूत होता था। जिसके बाद संगीता ने अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी कर, एक ग्रुप बनाया जिसका नाम उन्होंने थर्ड संडे रखा। क्योंकि उनका ग्रुप थर्ड संडे के ही दिन उन घरों में शिक्षा देता है, जो कि आर्थिक रूप से कमजोर हैं। सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि महिलाओं को भी वह पढ़ाती हैं। क्योंकि आज के समय में महिलाओं का पढ़ा लिखा होना सबसे ज्यादा जरूरी है। थर्ड संडे के अलावा वह घर पर भी प्रतिदिन शाम को तीस बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देती हैं। इनके ग्रुप में हर सब्जेक्ट के एक्सपर्ट हंैं, जो बच्चों को मैथ व सांइस पढ़ाते हैं।

कहां से मिली प्रेरणा

संगीता कहती हैं कि उन्हें इसकी प्रेरणा उन गरीब बच्चों को देखकर मिली, जो पैसों की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाते और मजबूरी के कारण सड़कों पर भीख मांगते हैं। तब संगीता के मन में आया कि वह इन्हें पढ़ा सकती हैं। तभी से वह शिक्षा देने के रास्ते में लग गईं। जरूरत को समझते हुए उन्होंने महिलाओं को भी पढ़ाना ठीक समझा, जिससे उनका कोई फायदा न उठा सके।

150 बच्चों को फ्री एजुकेशन

विकास इंटर कॉलेज के प्रिसिंपल डॉ। अशोक कुमार सिंह 150 बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देते हैं। सिर्फ यहीं नहीं बल्कि प्रिंसिपल होने के बाद भी वह क्लास में बच्चों को पढ़ाते है। डॉ। अशोक कुमार 10वीं से 12वीं क्लास के स्टूडेंट को पढ़ाते हैं। वह यह काम 10 साल से कर रहे हैं। उनका कहना है कि कई बच्चे मैथ, साइंस की कोचिंग पढऩा चाहते हैं, क्योंकि ये टफ सब्जेक्ट हैं, पर पैसों की कमी के कारण वह इसके लिए असमर्थ होते हैं। इसलिए वह स्कूल में बच्चों की क्लास लेने के बाद उन सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा देते हैं, जो पढ़ लिखकर कुछ बनने का सपना देख रहे हैं।

कहां से मिली प्रेरणा

डॉ। अशोक के पिता भी प्रिंसिपल थे, जोकि गरीब बच्चों को शिक्षा देते थे। उन्हें देखकर ही डॉ। अशोक को भी गरीब बच्चों को पढ़ाने की इच्छा हुई। और वह इस काम में लग गए। उनके पिता का भी सपना था कि वह उनकी ही तरह आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पढ़ाएं।

पढ़ाई के साथ एक्स्ट्रा एक्टिविटी

हमारा आने वाला भविष्य सड़कों पर भीख मांग रहा है। जो कि हमें रोज दिख ही जाता है। पर हर किसी के मन में उनका जीवन सुधारने का ख्याल नहीं आता। ये सिर्फ एक गुरु ही कर सकते हैं। ऐसी ही एक गुरु हैं सोशल वर्कर प्रतिभा सिंह, जो न सिर्फ बच्चों को पढ़ाती हैं। बल्कि कई बच्चों को एडमिशन कॉनवेंट स्कूल में भी करा चुकी हैं। वर्तमान में वह 42 बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रही हैं, जोकि उनके घर पर आठ घंटे रहते हैं और दोनों टाइम का खाना भी वहीं खाते हैं। पढ़ाई कराने के साथ ही वह उन बच्चों को एक्स्ट्रा एक्टिविटी भी कराती हैं, जिसमें वेद, म्यूजिक, डांस, संस्कृत और वेद मंत्र आदि शामिल हैं। बच्चे बहुत ही अच्छे से वेदों का उच्चारण भी करते हंै। उन्होंने बच्चों को चार कैटेगिरी में डिवाइड किया है, जोकि नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी, और फस्र्ट क्लास के हैं। वह बच्चों की काउंसलिंग भी करती हैं और जब बच्चे बड़ी क्लास में जाने लायक हो जाते हैं, तो वह कॉन्वेंट स्कूल में, स्कूल की मदद से बच्चों का एडमिशन स्कूल्स में करा देती हैं। कई बार भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्हें धमकियां भी मिली, पर उन्होंने हार नहीं मानी और डट कर सामना किया।

कहां से मिली प्रेरणा

प्रतिभा सिंह कहती है कि वह जब भी सड़क पर किसी गरीब बच्चे को भीख मांगता हुआ देखती थीं तो उन्हें लगता था कि वह इन्हें शिक्षा देंगी, तो इनकी कई आने वाली पीढिय़ां भीख मांगने से बच जाएंगी। और ऐसा ही हुआ। उनके यहां पढ़ाई करने वाले कई बच्चों की जॉब भी लगी। और बच्चों की माताओं का भी उन्होंने भीख मांगना छुड़ाया और उन्हें हाउस मेड या किसी और सेक्टर में नौकरी लगवा दी।

टीचर्स डे 2024 की थीम

इस खास दिन को मनाने के लिए हर साल एक खास थीम भी तय की जाती है। वहीं, टीचर्स डे 2024 की थीम 'सतत भविष्य के लिए शिक्षकों को सशक्त बनानाÓ तय की गई है।

ङ्क्षजदगी के अंधेरे में रोशनी की मशाल हैं शिक्षक

टीचर्स डे पर सभी विद्यार्थियों व शिक्षकों को मेरी शुभकामनाएं। बीएचयू के सदस्य के रूप में हम सभी का सौभाग्य है कि डॉ। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विभिन्न भूमिकाओं में विश्वविद्यालय के साथ लंबा जुड़ाव रहा है। शिक्षक किसी भी शैक्षणिक संस्थान का आधार होते हैं और शिक्षक दिवस इस बात पर भी मंथन करने का अवसर है कि कैसे हम अपने शिक्षकों के व्यक्तिगत एवं पेशेवर विकास के अवसरों को बढ़ाएं। मैं मानता हूं कि विश्वविद्यालय इस दिशा में अनुकरणीय प्रगति कर रहा है तथा ²ढ़ निश्चय के साथ आगे भी करता रहेगा।

- प्रो। सुधीर कुमार जैन, बीएचयू वीसी

एक विद्यार्थी की ङ्क्षजदगी में शिक्षक का अहम योगदान होता है। एक शिक्षक ही है जो आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करता है। शिक्षक वे मशाल हैं जो खुद जलकर अपने शिष्य की ङ्क्षजदगी को रोशन करते हैं। शिक्षक हमें सीखने, बढऩे और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। शिक्षक हमारी शैक्षिक यात्रा के दौरान मार्गदर्शन, समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं। शिक्षक हम में ज्ञान, बुद्धि, संस्कार और वास्तविकता के मूल्यों का संचार करते हैं। शिक्षक दिवस शिक्षा के महत्व और हमारे जीवन पर इसके सकारात्मक प्रभाव की याद दिलाता है।

-प्रो। आनंद कुमार त्यागी, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वीसी

गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरु:साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:.Ó भारतीय संस्कृति में सामाजिक विकास एवं व्यक्तित्व निर्माण में गुरु का महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षक समाज को न केवल शिक्षित-दीक्षित करता है अपितु वह एक साधारण मानव को एक सभ्य नागरिक भी बनाता है। इसलिए शिक्षक का स्थान भगवान और माता-पिता से भी ऊपर माना जाता है। शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ-साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना अत्यंत विशिष्ट और कठिन कार्य है।

प्रो। बिहारी लाल शर्मा, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वीसी

Posted By: Inextlive