Varanasi news: आईपी एड्रेस और वर्चुअल नंबर के सहारे हो रही जालसाजी, साइबर फ्रॉड का नापाक कनेक्शन
वाराणसी (ब्यूरो)। साइबर जालसाज लगातार वाराणसी के लोगों को निशाना बनाए हैं। 2 साल में 3842 केस में 4.20 करोड़ रुपए खातों से खाली हो गए। हालांकि, राशि की रिकवरी के लिए कमिश्नरेट पुलिस ने जालसाजों के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। इसी कड़ी में वाराणसी के साड़ी कारोबारी अजय श्रीवास्तव से हुई ठगी की जांच के दौरान साइबर थाना पुलिस राजस्थान के श्रीगंगानगर पहुंच गई। वहां के सूरतगढ़ में दबिश देकर चार साइबर अपराधियों को अरेस्ट किया। इन्होंने आईपी एड्रेस के जरिए साइबर जालसाजी की।
लॉरेंस विश्नोई से जुड़े तारपूछताछ में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। गैंग का लीडर अंतरराष्ट्रीय हैकर आशीष विश्नोई है, जिसका कनेक्शन लॉरेंस विश्नोई, डुल्लू समेत कई इंटरनेशनल गैंग से है। इन्हीं के इशारे पर आशीष का पूरा गैंग काम करता था। यही नहीं पकड़े गए साइबर अपराधी का नया नेटवर्क पाकिस्तान बॉर्डर से जुड़ा है। पाकिस्तान सीमा से महज 30 किमी। दूर गांव में ठगों ने अपना सेटअप बनाया था। पिछले पांच साल में 10 हजार करोड़ से अधिक की ठगी की है। इनका नेटवर्क विदेशों तक फैला है। एक देश से दूसरे देश जाकर भी ठगी का ठेका लेते थे। वारदात करने के बाद ये विदेश भाग जाते थे। आरोपितों के नाम से दुबई, कनाडा, इंडोनेशिया में मास्टर अकाउंट मिले हैं।
कैसे करते हैं धोखाधड़ी साइबर क्राइम एक्सपर्ट श्यामलाल गुप्ता बताते हैं आरोपी वर्चुअल नंबर और आईपी एड्रेस से वारदात को अंजाम देते हैं और अपनी पर्सनल आईडी और पहचान को छुपाने के लिए गूगल पर मौजूद वर्चुअल सर्विस का इस्तेमाल करते हैं और दूसरे देश के नंबर से रजिस्टर कराते हैं और आईपी एड्रेस बदल कर इस्तेमाल करते हैं। फिर उसी से धोखाधड़ी को अंजाम देते हैं। डार्क वेब से डेटा का इस्तेमाल करके पुलिस को गुमराह करते हैं। क्या होता है आईपी एड्रेस आईपी एड्रेस इंटरनेट और लोकल नेटवर्क में डिवाइस की पहचान के लिए एक यूनिक एड्रेस है। आईपी एड्रेस की मदद से किसी नेटवर्क पर दो डिवाइस के बीच कम्युनिकेशन के लिए इंफार्मेशन भेजी और रिसीव की जाती है। इंटरनेट को अलग-अलग कम्प्यूटर और वेबसाइट की पहचान के लिए आईपी एड्रेस की जरूरत होती है। कैसे खरीदते हैं वर्चुअल नंबर और आईपी एड्रेसआरोपी गूगल पर वर्चुअल सर्विस सर्च करते हैं, फिर वर्चुअल नंबर प्रोवाइड करने वाली कम्पनी को सर्च करते हैं। वहा से बायर बन कर खुद को रजिस्टर कराते हैं और पेमेंट करके जिस भी देश का नम्बर और आईपी एड्रेस चाहिए। वहॉ के लिए पेमेंट करके उस नंबर और आईपी को खरीद लेते हैं, जिसके बाद घटनाओं को अंजाम देते हैं। साइबर क्राइम एक्सपर्ट श्यामलाल गुप्ता कहते हैं कि ऐसे आरोपियों को पकडऩा बहुत मुश्किल हो जाता है। आरोपी अपनी पुरी आइडेंटिटी छुपा देते हैैं।
साड़ी व्यापारी से 27 लाख की ठगी में पकड़े गए चार आरोपियों के फॉरेन कनेक्शन मिले हैं। पूछताछ में कई चौकाने वाली जानकारी मिली है। उसी के आधार पर अन्य साइबर नेटवर्क को तलाश रही है। बहुत जल्द ही अन्य मामलों का खुलासा भी हो सकता है। - सरवणन टी, साइबर क्राइम प्रभारी फैक्ट एंड फीगर 3842 साइबर जालसाजी के मामले दो साल में आए ्र 4.20 करोड़ रुपए खातों से हुए पार 1.20 करोड़ की कराई गई रिकवरी विदेशों में जनरेट हुए आईपी एड्रेससाइबर ठगों ने भेलूपुर के अस्सी की रहने वाली संभावना त्रिपाठी को ऑनलाइन पार्ट टाइम काम करके अच्छी कमाई लालच दिया। शुरू में उन्हें कंपनियों को रेटिंग देने, कार बुकिंग का टास्क दिया गया। अच्छी कमाई का लालच देकर 39 लाख 15 हजार रुपये की साइबर ठगी की। पकड़े गए साइबर ठग मैसेज भेजने, डिजिटल कॉल करने के लिए एप का इस्तेमाल करते थे। इनका एड्रेस चीन, सिंगापुर, थाईलैंड, कंबोडिया व दुबई में जेनरेट होता था।