बात जब हथकरघा की हो और बनारस का नाम न आए. ऐसा तो हो ही नहीं सकता. बनारस की हथकरघा कला तो विश्व स्तर तक प्रसिद्ध है. अभी 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भी मनाया गया. इस खास दिन पर कम उम्र में ही बनारस की पहचान को आगे बढ़ाने की सोच रखने वाली अंगिका कुशवाह को नेशनल लेवल पर अवॉर्ड मिला है.

वाराणसी (ब्यूरो)। बात जब हथकरघा की हो, और बनारस का नाम न आए। ऐसा तो हो ही नहीं सकता। बनारस की हथकरघा कला तो विश्व स्तर तक प्रसिद्ध है। अभी 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भी मनाया गया। इस खास दिन पर कम उम्र में ही बनारस की पहचान को आगे बढ़ाने की सोच रखने वाली अंगिका कुशवाह को नेशनल लेवल पर अवॉर्ड मिला है। ये सम्मान उन्हें बनारस की वर्षों पुरानी हथकरघा कला को और आगे बढ़ाने और 800 बुनकरों को रोजगार देने के लिए मिला था। अंगिका से एक खास बातचीत में पता चला कि वह बचपन से ही इसी बिजनेस को करना चाहती थीं, जिसकी प्रेरणा उन्हें उनके पिता अमरेश प्रसाद कुशवाह से मिली। जो कि अंगिका हथकरघा उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड के संस्थापक हैं।

अनानास के पत्तों से बनाए धागे

बनारस की अंगिका कुशवाह ने अपनी पढ़ाई राजस्थान के एक कॉलेज से की है। उन्हें हथकरघा क्षेत्र में पीएचडी की है। अंगिका ने एक बार अनानास के पत्तों से धागे बनाए थे। ये रिसर्च उन्होंने खुद की थी। वह इस क्षेत्र में आगे बढ़ती गईं, और उन्हें अब नेशनल लेवल पर अवॉर्ड मिला। अंगिका कहती हैं उनके पिता ने 1994 पर इस उद्योग की स्थापना की थी। उसके बाद उनका जन्म हुआ था। उनके पिता ने अपनी कंपनी का जो नाम रखा था वही अपनी बेटी का भी रख दिया। अंगिका शुरू से ही अपने पिता के बिजनेस में हाथ बंटाने लगीं और अपने पिता के साथ बिजनेस को आगे बढ़ाने और बनारस की हथकरघा से जुड़ी पहचान जो खोने लगी थी उसे वापस दिलाने में लग गईं।

हथकरघा कारोबारियों को देना है रोजगार

अंगिका कहती हैं बनारस की पहचान हथकरघा कला से भी है। पर ये कला धीरे धीरे मार्केट से गायब होने लगी और हाथ से डिजाइन करने वाले कारोबारियों को काम मिलना भी बंद हो गया। इसकी वजह थी कि मार्केट में मिलने वाली साडिय़ां अब मशीन से तैयार होने लगी थीं, जिससे हथकरघा से जुड़े सभी कारोबारी मजदूरी और दूसरे कामों में लग गए। अंगिका चाहती थीं कि उनके इस उद्योग से ज्यादा से ज्यादा हथकरघा कारोबारी जुड़ें, जिन्हें वह रोजगार दे सकें और बनारस की संस्कृति को जीवित कर सकें और उन्होंने ऐसा ही किया। आज वह अपनेबिजनेस से 800 लोगों को रोजगार दे रही हैं।

रेशम-कपास के धागों से तैयार होते हैं प्रोडक्ट

अंगिका ने बताया कि प्रोडक्ट को तैयार करने में रेशम और कपास जैसे प्राकृतिक धागों का उपयोग किया जाता है। वे अपनी बुनाई में सभी चार प्रकार के रेशम (शहतूत, एरी, मुगा और टसर) को शामिल करते हैं। सारा रेशम बैंगलोर, असम से और एनएचडीसी की मदद से खरीदा जा रहा है। साड़ी, लहंगा, दुपट्टा, ड्रेस सामग्री-महिलाओं और पुरुषों के पहनने के कपड़े, थालपोश, पॉकेट स्क्वायर, स्टोल जैसे कुछ सामान और असबाब, कुशन कवर, पर्दे जैसी साज-सज्जा जैसे डिजाइन उनके उद्योग में तैयार की जाती है।

वेबसाइट से भी सेल

अंगिका के प्रोडक्ट सिर्फ देश नहीं बल्कि विदेशों तक जाते हैं। वह अपनी वेबसाइट अगिंका डॉट को.इन के जरिए हर जगह अपने द्वारा तैयार की साडिय़ां, ड्रेस और तमाम चीजें पहुंचा रही हैं। उनका बिजनेस ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों जगह से आगे बढ़ रहा है।

बनारस की लुप्त हो रही हथकरघा कला को वापस लाने की कोशिश जारी है। अवॉर्ड पाकर खुशी हुई थी। अब आगे का लक्ष्य और ज्यादा लोगों को रोजगार देना है।

अंगिका कुशवाह, ओनर, अंगिका हथकरघा उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड

Posted By: Inextlive