Varanasi news: मानव मस्तिष्क न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन की वास्तविक समय में पहचान करेगी चिप
वाराणसी (ब्यूरो)। आइआइटी बीएचयू के विज्ञानियों ने ऐसे चिप का आविष्कार किया है जिससे मानव मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन हार्मोन की वास्तविक समय में पहचान और निगरानी की जा सकती है। चिप को मैटेलिक नैनो पार्टिकल नाम दिया गया है और इसके माध्यम से अब पार्किंसन, अवसाद व सिजोफ्रेनिया जैसी न्यूरोलाजिकल बीमारियों का प्रांभिक चरण में ही सटीक पता लगाया जा सकता है। सिरेमिक इंजीनियङ्क्षरग विभाग के सहायक प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता/ विज्ञानी डा। शांतनु दास ने नैनो मैटेरियल्स फार इलेक्ट्रानिक्स एंड एनर्जी डिवाइसेस (नीड) लैब में इसे तैयार किया है।
डा। दास ने बताया कि यह नवाचार मस्तिष्क के कार्य की समझ में क्रांति लाने और प्रारंभिक चरण में ही न्यूरोलाजिकल विकारों के लिए नए उपचारों का मार्ग प्रशस्त करेगा। इस प्रकार की बीमारियों का प्रारंभिक चरण में पता लगाने के लिए बायोमार्कर सेंङ्क्षसग के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। डा। दास के निर्देशन में शोध कर रहीं उम्मिया कमर ने बताया कि डोपामाइन एक प्रकार का न्यूरोट्रांसमीटर है जो शरीर में स्वत: निर्मित होता है। शरीर तंत्रिका तंत्र और कोशिकाओं के बीच संदेश भेजने के लिए इसका उपयोग करता है। इसलिए इसे Óरासायनिक संदेशवाहकÓ भी कहा जाता है। यह मस्तिष्क के उन क्षेत्रों पर काम करता है, जिनसे हमें खुशी, संतुष्टि और प्रेरणा का अहसास होता है। डोपामाइन की भूमिका स्मृति, मनोदशा, नींद, सीखने, एकाग्रता, गति और शरीर के अन्य कार्यों को नियंत्रित करने में भी होती है। यह सोचने और योजना बनाने की हमारी अनूठी मानवीय क्षमता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। शरीर में इसकी कमी कई तरह से स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। व्यक्ति में प्रेरणा की कमी, थकान और सुस्ती होती है, जिससे गंभीर अवसाद हो सकता है। डोपामाइन का उत्पादन करने वाली तंत्रिका कोशिकाओं की कमी या मृत्यु हमारे शरीर में डोपामाइन के स्तर को कम करने का कारण बनती है। डोपामाइन यदि का स्तर बढ़ जाए तो शरीर के आवेग नियंत्रण में बाधा पैदा कर सकता है। इस कारण इंसान का व्यवहार आक्रामक हो सकता है। अत्यधिक डोपामाइन के कारण तंत्रिका कोशिकाओं के धीरे-धीरे टूटने की बीमारी हंङ्क्षटगटन भी हो सकती है।