नवरात्रि के साथ त्योहारों का श्रीगणेश हो गया है. इस वर्ष 15 नवंबर को देव दीपावली है. अनुमान है कि इस बार बीते साल से अधिक पर्यटक व श्रद्धालु देवों की दीपावली देखने के लिए वाराणसी पहुंचेंगे. करीब दो महीने पहले से ही देवताओं की अगवानी में सजने वाली काशी के 84 घाटों की अद्भुत छटा निहारने के लिए नावों और बजड़ों की बुकिंग शुरू हो गई है

वाराणसी (ब्यूरो)। नवरात्रि के साथ त्योहारों का श्रीगणेश हो गया है। इस वर्ष 15 नवंबर को देव दीपावली है। अनुमान है कि इस बार बीते साल से अधिक पर्यटक व श्रद्धालु देवों की दीपावली देखने के लिए वाराणसी पहुंचेंगे। करीब दो महीने पहले से ही देवताओं की अगवानी में सजने वाली काशी के 84 घाटों की अद्भुत छटा निहारने के लिए नावों और बजड़ों की बुकिंग शुरू हो गई है। जैसे-जैसे पर्व नजदीक आता है, वैसे-वैसे बजड़े का रेट हाई हो जाता है। इसको देखते हुए होटल संचालकों ने अपने वीआईपी गेस्ट के लिए बजड़े तैयार करने शुरू कर दिए हैं। इनमें सबसे अधिक 40 सीटर बजड़े की इन्क्वायरी ज्यादा आ रही है।

1986 से पुन: शुरू हुई परंपरा

केंद्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष आचार्य वागीश दत्त मिश्र के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पूर्व में भी काशी की परंपरा रही है, मगर वर्ष 1986 में तत्कालीन काशी नरेश डॉ। विभूति नारायण सिंह की पहल से यह संभव हुआ। उन्होंने पंचगंगा घाट पर इस दिन शाम को गंगा आरती की और तभी से यह परंपरा पुन: शुरू हो गई। तबसे परंपराओं का निर्वहन होता चला आ रहा है।

2010 से आई भव्यता

मिश्रा का कहना है कि 90 के दशक से देव दीपावली की भव्यता काफी बढ़ गई है। पहले जहां लोग घाट की सीढिय़ों, मढिय़ों और नाव पर बैठकर देव दीपावली को देखते थे। वहीं, 90 के दशक के बाद से गंगा की लहरों पर बजड़े पर बैठकर देव दीपावली की छटा देखने का चलन काफी तेजी से बढ़ा है। देसी-विदेशी पर्यटक बजड़े की ही डिमांड करने लगे। इसको देखते हुए गंगा की लहरों में काफी तेजी से बजड़ा चलाने का चलन बढऩे लगा।

गंगा की लहरों में 110 बजड़े

नाविक संघ के पदाधिकारी प्रमोद मांझी का कहना है कि वर्तमान में 110 बजड़े हैं। इनमें से 50 बड़े तो 60 छोटे बजड़े हैैं। बड़े बजड़े पर 100 वीआईपी लोग तो छोटे बजड़े पर 40 वीआईपी के बैठने की व्यवस्था है। खासकर देव दीपावली के लिए सभी बजड़े को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। सभी वीआईपी की यही डिमांड रहती है कि पूरे बजड़े को फूल-मालाओं से सजाकर दिया जाए। बैठने के लिए गद्दा, मसलन की भी व्यवस्था होनी चाहिए।

84 घाट होते जगमग

देव दीपावली पर 84 घाटों को सजाया जाता है। घाट की भव्यता देखने लायक रहती है। 6 बजे से घाट की सीढिय़ों पर दीप जलाने की परंपरा शुरू होती है तो रात 9 बजे तक अनवरत चलती है। तीन घंटे की अलौकिक छटा को देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी सैलानी आते हैं। इसके लिए मुंह मांगी कीमत में बजड़े की बुकिंग भी कराते हैं।

20 से 25 हजार में बुकिंग

नाविक शंभू निषाद ने बताया कि वर्तमान समय में बड़े नाव की बात करें तो 20 से 25 हजार रुपये में बुकिंग हो रही है और छोटी नाव को तकरीबन 5000 से 10,000 में बुक किया जा रहा है। इसके अलावा घाटों के किनारे खासतौर पर होटल की भी बुकिंग शुरू हो चुकी है, जहां दूरदराज से पर्यटक बनारस घाट के इस दीपोत्सव को देखने के लिए आएंगे। पर्व के नजदीक आने पर बजड़े का रेट और बढ़ जाता है।

फैक्ट एंड फीगर

50 बड़े बजड़े

80 से 100 लोगों के बैठने की कैपेसिटी

60 छोटे बजड़े

30 से 40 लोगों के बैठने की कैपेसिटी

वर्जन

15 नवंबर को देव दीपावली है। देव दीपावली 90 के दशक के बाद से भव्यता में आई है। अब तो फिल्मी स्टारों का भी जमावड़ा होने लगा है।

वागिश दत्त मिश्र, अध्यक्ष, केंद्रीय देव दीपावली महासमिति

बजड़े की बुकिंग आनी शुरू हो गयी है। बड़े बजड़े से लेकर छोटे बजड़े की डिमांड ज्यादा है। इनमें शहर के होटल संचालक और टूरिस्ट गाइड ज्यादा हैैं।

शंभू निषाद, नाविक

बजड़ा नाव में यह सुरक्षा

1. सभी यात्रियों के लिए जीवन रक्षक जैकेट उपलब्ध कराई जाती हैं।

2. सुरक्षा उपकरणों से सुसज्जित नावें।

3. सुरक्षा मानकों को पूरा करने के लिए नौकाओं का नियमित रखरखाव

4. अनुभवी नाविक सावधानीपूर्वक नौपरिवहन सुनिश्चित करते हैं।

क्यों प्रसिद्ध हैं घाट

दशाश्वमेध घाट - शाम की गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध।

अस्सी घाट - प्रात:कालीन गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध।

हरिश्चंद्र घाट - वाराणसी में श्मशान घाट।

मणिकर्णिका घाट - वाराणसी में सबसे प्रसिद्ध श्मशान घाट।

Posted By: Inextlive