सुदखोरी: यहां सुबह से शाम तक ही 20 फीसदी बढ़ जाती है रकम
वाराणसी (ब्यूरो)। बनारस सदियों से पूर्वांचल का बड़ा बाजार रहा है। यहीं से आसपास के लगभग एक दर्जन जिलों के साथ आधा बिहार के बाजारों की मांग भी पूरी की जाती रही है। बड़ा बाजार होने के कारण यहां छोटे से लेकर बड़े तक हर तरह के व्यापारी और उन्हीं की तर्ज पर सुदखोरी का बिजनेस करने वाले भी सदियों से आबाद हैं। यहां की सुदखोरी भी अलग तरह की है। मंथली और वार्षिक ब्याज दर के साथ ही बनारस में डेली ब्याज दर भी वसूलने की प्रथा है। यही यहां के सूदखोरों की सबसे अधिक कमाई वाला जरिया है। इसमें पैसा डूबने का खतरा भी कम रहता है, क्योंकि सुबह दिया गया पैसा शाम तक बीस से तीस परसेंट ब्याज के साथ वापस जेब में पहुंच जाता है। हालांकि अब कमिश्नरेट पुलिस के सख्त होने से इस तरह के मामलों में कार्रवाई होने लगी है। लगभग एक माह पहले ऐसे ही मामले में रमेश राय उर्फ मटरू को पुलिस के दबाव में कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा था। बीते रविवार को भी पुलिस कमिश्नर के आदेश पर सुदखोरी के ही मामले में प्रमोद सिंह, जयदीप सिंह व प्रदीप सिंह के खिलाफ केस दर्ज किया गया है.
केस-1पहडिय़ा मंडी के फल व्यवसायी संतोष सोनकर काल्पनिक नाम भी सूदखोर से परेशान हैं। वह बताते हैं कि चार साल पहले एक सूदखोर से उन्होंने 50 हजार रुपये ब्याज पर लिया था। तीन लाख रुपये से अधिक दे चुके हैं, लेकिन अभी तक उसके चंगुल से निकल नहीं पाए हैं।
केस-2 गारमेंट विक्रेता रामजी गुप्ता की गोदौलिया-दशाश्वमेध रोड पर होजरी की दुकान है। कारोबार के लिए मार्केट में सक्रिय सूदखोर से तीन साल पहले दो लाख रुपये ब्याज पर लिया था। लॉकडाउन के बावजूद सूदखोर ने कोई रियायत नहीं दी। हर महीने बीस हजार रुपये ब्याज देते हैं। काफी प्रयास किया, लेकिन उसके चंगुल से छूट नहीं पाए. ये दो केस सिर्फ उदाहरण है। इस तरह के केस शहर के हर मार्केट और मुहल्ले में मिल जाएंगे। सूदखोरों का बहुत बड़ा नेकसस है। इनकी नजर हमेशा जरूरतमंदों पर रहती है और इनके कारिंदे ऐसे लोगों की दुखती रग पर हाथ रखते हुए उन्हें अपने आका तक ले जाते हैं। अगर गिरवी रखने को कुछ न मिला, तब भी बनावटी दरियादिली दिखाते हुए कर्ज दिया जाता है। एक बार जिसने सूदखोरों से कर्ज ले लिया, फिर उससे उबरना आसान नहीं रहता. जमीन और मकान पर कब्जा40 लाख से ज्यादा आबादी वाले बनारस में कहने को तो लिखा पढ़ी में निर्धारित दर पर ब्याज पर पैसा देने वाले महज 50 से 60 साहूकार हैं। यह सभी बैंक की निर्धारित ब्याज दर की तरह ही पैसा उधार देते हैं, लेकिन हकीकत में मनमाना ब्याज दर पर पैसा उधार देने वालों की संख्या जिले में हजार से ऊपर है। प्रतिमाह निर्धारित समय पर ब्याज और किश्त का पैसा न मिलने पर सूदखोर चक्रवृद्धि ब्याज वसूलते हैं और उधार लेने वाले के घर के कीमती सामान भी जबरन उठा ले जाते हैं। जमीन और मकान पर कब्जा भी कर लेते हैं।
फंस जाते हैं लोग सूदखोरों के जाल में आमजन के फंसने की एक बड़ी वजह उनकी अज्ञानता और बैंकों की तमाम तरह की कागजी लिखापढ़ी की कवायद से बचना है। बैंक में लोन के लिए कई तरह की कागजी कार्यवाही पूरी करनी पड़ती है। इसके लिए कई बार बैंक के चक्कर लगाने पड़ते हैं। यह भी गारंटी नहीं होती है कि कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद लोन मिल ही जाएगा। ऐसी स्थिति में सूदखोरों से पैसे लेना आसान होता है। यह बिना किसी जांच-पड़ताल के ही ब्याज पर पैसा देते हैं. 10 से 40 फीसद तक ब्याजब्याज पर पैसा देते समय सूदखोर उधार लेने वाले की हैसियत और आवश्यकता देखते हैं। इसके बाद प्रतिमाह 10 से 40 प्रतिशत तक ब्याज तय करते हैं।
हर माह दो की जाती है जान बनारस में सूदखोरों का नेटवर्क काफी लंबा है। सूदखोरों ने शहर के बाजार, मार्केट के अलावा कई सरकारी व गैर सरकारी विभागों में अपनी घुसपैठ बना रखी है। पिछले पांच साल के आंकड़ों पर गौर करें तो औसतन हर माह दो लोग सूदखोरों से परेशान होकर अपनी जान दे देते हैं. क्या है सूदखोरी का नियम - सिर्फ रजिस्टर्ड व्यक्ति ही सूद पर पैसे दे सकता है - ब्याज दर निर्धारित है - शहर में हैं हजारों सूदखोर - हर इलाके में है आतंक - शहर के मार्केट के अलावा नगर निगम, रेलवे, बरेका, वीडीए, विकास भवन आदि कर्मचारी होते हैं निशाने पर - हर माह सैलरी वाली डेट पर इन जगहों पर नजर आते हैं सूदखोर - सैलरी मिलते ही ब्याज वसूल लेते हैं, मूलधन के लिए कभी नहीं बनाते दबावशहर में सूदखारों का बड़ा नेक्सस है। सूदखारों के खिलाफ लगातार कार्रवाई हो रही है। कई जेल भी भेजे गए हैं। पुलिस के पास जो भी मामले आ रहे हैं, उसकी त्वरित जांच कराकर जल्द से जल्द कार्रवाई की जा रही है। लोगों से अपील भी है कि अगर कोई व्यक्ति सूदखोर से परेशान हैं तो कमिश्नरेट पुलिस उसकी हर मदद को तैयार है.
संतोष सिंह, एडिशनल सीपी