सुकुमारी गौरा कइसे कैलास चढि़हें...
वाराणसी (ब्यूरो)। शिव-पार्वती विवाह के उपरांत रंगभरी (अमला) एकादशी पर बाबा के गौना के रस्म की तैयारियां अब परवान चढऩे लगी हैं। उत्सव अब सवाब पर पहुंच रहा है। मंगलवार को मंगलगीत के बीच गौरा के हल्दी की रस्म के दौरान फूलों की खूशबू से महंत आवास सराबोर रहा.
महिलाओं ने लगायी हल्दी महंत आवास पर गौरा के विग्रह को तेल हल्दी की रस्म के लिए सुहागिनों और गवनहरियों की टोली संध्या बेला में महंत आवास पहुंची। उत्सव में मोहल्ले की बुजुर्ग महिलाएं भी शरीक हुईं। ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच मंगल गीत गाते हुए महिलाओं ने गौरा को हल्दी लगाई। मांगलिक गीतों से महंत आवास गुंजायमान हो उठा। लोक संगीत के बीच बीच शिव-पार्वती के मंगल दाम्पत्य की कामना पर आधारित पारंपरिक गीतों का क्रम देर तक चला. 'गौरा के हरदी लगावा,'गौरा के हरदी लगावा, गोरी के सुंदर बनावाÓ, 'सुकुमारी गौरा कइसे कैलास चढि़हेंÓ, 'गौरा गोदी में लेके गणेश विदा होइहैं ससुरारीÓ आदि गीतों में गौने के दौरान दिखने वाली दृश्यावली का बखान किया गया। मंगल गीतों में यह चर्चा भी की गई कि गौना के लिए कहां क्या तैयारी हो रही है। दुल्हे के स्वागत के लिए कौन कौन से पकवान पकाए जा रहे हैं। सखियां पार्वती का साज शृंगार करने के लिए कैसे कैसे सुंदर फूल चुन कर ला रही हैं।
रजत मूर्ति को चावल से चूमा हल्दी की रस्म के बाद नजर उतारने के लिए 'साठी क चाऊर चूमिय चूमियÓ गीत गाकर महिलाओं ने गौरा की रजत मूर्ति को चावल से चूमा। गौरा के तेल-हल्दी की रस्म के लिए महंत डॉ। कुलपति तिवारी के सानिध्य में संजीव रत्न मिश्र ने माता गौरा का श्रृंगार किया। हल्दी रस्म पुजन आचार्य सुशील त्रिपाठी ने कराया। अंकशास्त्री पं। वाचस्पति तिवारी के संयोजन में सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति की गई। तीन मार्च को रंगभरी (अमला) एकादशी पर बाबा विश्वनाथ, माता पार्वती संग प्रथमेश की चल प्रतिमा की पालकी यात्रा को लेकर लोकाचार के लिए महंत आवास पर पालकी की मरम्मत से लेकर बाबा के राजसी स्वरूप और पुजन परंपरा के साथ गौरा के गौना के सामानो को सूची बद्ध कर लिया गया है.