लैंडमार्क बनकर रह गए शहर के दस धरोहर
वाराणसी (ब्यूरो)। दुनिया की सबसे प्राचीन शहर में शुमार काशी की पौराणिकता किसी से छिपी नहीं है। काशी को ही वाराणसी और बनारस भी कहा जाता है। इस अध्यात्मिक शहर को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं, जिसमें से एक यह भी है कि काशी शिव के त्रिशूल पर टिकी है। इसकी प्राचीनता को देखते हुए इसे दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी की मान्यता मिली है। शहर की तरह यहां के दस ऐसे धरोहर हैं, जो पहले उपयोग में थे, लेकिन जैसे-जैसे काशी ने आधुनिकता की चादर ओढऩी शुरू कर दी तो ये धरोहर बेकार हो गए। हालांकि इन धरोहर का नाम अब भी जिंदा है, जो लैंडमार्ग के रूप में बनारस के लोगों की जुबान से सुनाई पड़ती है। आइए आप भी जानिए इन धरोहरों के बारे में
टीवी टॉवरछावनी परिषद की जमीन पर कैंटोनमेंट एरिया में टीवी टॉवर बना है, जो शहर में हर जगह से दिखता है। जब एंटीना का जमाना था तो इसका बहुत महत्व था, लेकिन सेटेलाइट के दौर में इसका इस्तेमाल खत्म हो गया है। यह सिर्फ लैंडमार्ग और बनारस की पहचान के रूप में जिंदा है।
घंटाघरमैदागिन से चौक जाते समय नीचीबाग पड़ता है। जहां डाकखाना है। इसके ठीक सामने घंटाघर है, लेकिन वह अब समय नहीं बताता है। एक दौर में इसी घंटाघर से काशी का समय शुरू होता था। यह खड़ा जरूर है, लेकिन इसका कोई काम नहीं है।
काटनमिल सिगरा छित्तपुर के पास काटनमिल है। एक दौर में इस मिल से कई परिवारों को दाल-रोटी चलती थी, लेकिन शहर में बढ़ते कर-कारखानों के आगे यह दम तोड़ दिया, जो अब सिर्फ जगह के नाम से जिंदा है। पैराडाइज ग्राउंड राजघाट के पास ब्रिटिश हुकूमत में काशी स्टेशन और पैराडाइज ग्राउंड की पहचान थी। इस ग्राउंड अंग्रेजों का जहाज उतरा था, इसलिए इसे पैराडाइज का नाम दिया गया। भारत आजाद हुआ तो यह खेलकूद का मैदान हो गया, जिसे रेलवे ने अब अपने कब्जे में ले लिया है। टाउनहाल मैदान शहर के बीचो-बीच खेलकूद के लिए टाउनहाल मैदान हुआ करता था, जहां दिनभर छोटे बच्चे से लेकर बड़े तक हर खेल खेलते थे। जिला स्तरीय क्रिकेट टूर्नामेंट भी होता था, लेकिन स्मार्ट होने के कारण यह मैदान मल्टीलेवल पार्किंग में तब्दील हो गया। आज भी इसे टाउनहाल के नाम जाना जाता है. हरतीरथविशेश्वरगंज के पास हरतीरथ पोखरा की पौराणिक मान्यता थी। कहा जाता है कि इस पोखरे में स्नान से सारे तीर्थ का लाभ मिलता था, लेकिन बदलते बनारस का यह भेंट चढ़ गया। दूरसंचार विभाग ने पोखरे का पाटकर अपना आफिस और टावर लगा दिया, लेकिन आज भी इसे हरतीरथ के नाम जाना जाता है.
मोतीझील महमूरगंज में मोतीझील हवेली को बाबू मोतीचंद्र ने 1908 में बनवाया था। इन्हें ब्रिटिश गवर्नमेंट ने राजा और सर की उपाधि दिया। इसलिए लोग इन्हें राजा मोतीचंद्र से बुलाते थे। ये उस समय इलाके के जमींदार हुआ करते थे। हवेली के अंदर झील थी। समय के कालचक्र में यह भी समां गया, लेकिन नाम आज भी जिंदा है. रानी फाटक औसनगंज क्षेत्र एक समय स्टेट हुआ करता था। रानी फाटक के अंदर राजा औसनगंज का महल और आसपास उनकी प्रजा रहती थी। आज महल और रानी फाटक भी है, लेकिन राजा परिवार का कोई नहीं रहता है। महल के आसपास रहने वाले लोगों का पता रानी फाटक ही है. कसाईबाड़ा अलईपुर इलाके में बनारस का सबसे बड़ा कसाईबाड़ा था। यहां पर सभी तरह के जानवरों को काटा जाता था, लेकिन बदलते बनारस में इसका अस्तित्व भी खत्म हो गया, लेकिन आज भी इसकी पहचान है. चुंगीबनारस से राजघाट जाते समय भंदऊ चुंगी पड़ता है। अंग्रेजों के जमाने में यहां से गुजरने पर चुंगी देना पड़ता था, इसलिए से चुुंगी के नाम जाना जाता है। आज भारत में यह प्रथा खत्म हो गई, लेकिन जगह का नाम ही चुंगी रख दिया गया.