हर तरफ पत्थर, कहां से रिसकर नीचे जाए पानी
वाराणसी (ब्यूरो)। देश की सांस्कृतिक नगरी काशी में विकास कार्य इस कदर हुए कि हर तरफ गुलाबी पत्थर और आरसीसी की ढलाई ही दिखती है। शहर को स्मार्ट बनाने के लिए हर गली, हर मोहल्ले को कलरफुल कर दिया गया। ईंट के डिवाइडर को हटाकर सरिया का डिवाइडर बना दिया गया। विकास की दौड़ में जिम्मेदार भी जल संचय की व्यवस्था करना भूल गए। नहर, तालाबों, सरोवर और कुंडों को गुलाबी पत्थरों से पक्का कर दिया गया। इसके चलते बारिश के पानी का संचय धीरे-धीरे घटता गया। अब हालत यह है कि शहर का जलस्तर काफी नीचे पहुंच गया है। आने वाले समय में वर्षा के जल को संचय करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो पानी के लिए त्राहि-त्राहि करना पड़ सकता है.
90 परसेंट गलियां पथरीलीपांच साल पहले शहर की अधिकतर गलियां खड़ंजे की थी। बारिश जब होता था तो काफी हद तक वर्षा का जल धीरे-धीरे रिस कर अंदर चला जाता था। शहर को स्मार्ट बनाने के लिए गलियों से खड़ंका का कांसेप्ट ही हटा दिया गया। उसकी जगह गुलाबी पत्थर को चिकना कर बिछा दिया गया। अब बारिश जब होता है तो पानी पत्थरों पर टीकता ही नहीं है सीधे बहकर कहीं और चल जाता है.
आरसीसी के पाथवेशहर को सुंदर बनाने के लिए ज्यादातर पाथवे को आरसीसी में ढाल दिया गया है। स्मार्ट सिटी ने गोदौलिया से लेकर दशाश्वमेध तक जो पाथवे बनवाया है वह पत्थर का बना दिया है। यहीं नहीं वरुणा पुल पर भी डिवाइडर को आरसीसी में ढाल दिया गया है। ऐसे में जल का संचय होना मुश्किल है। इस तरह से शहर की सड़क से लेकर गलियों तक को पथरीला कर दिया गया है.
हर तरफ कंक्रीट के जंगल काशी में जिस तरह से विकास कार्य हुए है उससे आने वाले समय में जल के लिए संकट खड़ा हो सकता है। काशी से कनेक्ट जितनी भी सड़कें है सभी को आरसीसी में ढाल दिया गया है। पांच साल पहले प्रयागराज जाने वाले मार्ग पर सड़क के दोनों तरफ इतना घना पेड़ थे कि उसकी छाया से पूरी सड़क ढकी रहती थी लेकिन पेड़ को काटकर अब सड़क को चौड़ीकरण कर दिया गया है। कोई परिवार के साथ अगर निकले तो पेड़ की छाव में बैठने के लिए कहीं जगह तक नसीब नहीं होगी। यही हाल आजमगढ़,, गाजीपुर, बलिया में भी देखने को मिलता है। हर तरफ कंक्रीट के ही जंगल नजर आते है। जल संचय भी जरूरीकाशी की जनता विकास चाहती है लेकिन उसके साथ जल संचय की व्यवस्था होनी चाहिए ऐसा कहना है लोगों का। सड़क चौड़ीकरण करें लेकिन वृक्ष फलदार लगाए। विकास के नाम पर पेड़ को तो काट दिया गया है लेकिन उस तरह के पेड़ अब नहीं लगाए जा रहे है ऐसे में वर्षा पर असर तो पड़ेगा। लोगों का कहना है कि विकास कार्य के खिलाफ नहीं है लेकिन विकास के साथ-साथ जीवन के लिए जो सबसे जरूरी है पानी उसके लिए भी ध्यान देना जरूरी है.
आमजन आए आगे आमजन को भी जल संचय को लेकर आगे आना होगा। आम पब्लिक की तरफ से अभी तक जल संचय के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। स्मार्ट शहर की जनता को भी जल संचय को लेकर स्मार्ट बनना होगा। अपने घर व आसपास के पार्क में जल संचय के लिए रेन वाटर हारवेस्टिंग लगाना चाहिए जिससे जल का संचय हो सके। व्यापारिक संगठन हो या फिर क्लब, संस्था के पदाधिकारियों को भी जल संचय के लिए पहल करना चाहिए. कई जगह अच्छे कार्यशहर में जी-20 को देखते हुए कई एरिया में काफी अच्छे कार्य हुए है। वरुणा पुल के रोड किनारे पाथवे पर पौधरोपण किया गया है। यह जल संचय का सबसे अच्छा माध्यम है। पाथवे के किनारे क्यारी बनाकर उसमें जो पौधे लगाए गए है बारिश का पानी सीधे उसमें संचय होगा। हरियाली से भरा डिवाइडर बारिश का पानी संचय करने में काफी महत्वपूर्ण होता है। इससे बारिश का पानी भी सीधे वरुणा में जाएगा। इसके अलावा तेलियाबाग, मलदहिया, भोजूबीर डिवाइडर के बीच में पेड़ लगाए गए हैं, हालांकि इनसे पानी का बचाव तो नहीं होगा, लेकिन पर्यावरण में सुधार जरूर होगा। वीडीए की तरफ से बनाए बिल्डिंगों में भी हरियाली का विशेष ध्यान दिया गया है। सुंदरपुर, लालपुर, बड़ालालपुर समेत कई आवासीय योजना में ग्रिनरी पर विशेष फोकस किया गया है।
फिलहाल अवेयर नहीं स्मार्ट सिटी काशी में यह सच है कि जल संचय को लेकर अधिकांश लोग अवेयर नहीं है। ऐसे में लोगों को जागरूक होना जरूरी है। क्योंकि भीषण गर्मी पड़ रही है लेकिन इसके अपेक्षा बारिश काफी कम हो रही है। बारिश में अगर पानी को बचा लिया जाए तो आने वाले दिनों में काम आ सकता है। इससे अंडर ग्राउंड लेवल भी बढ़ेगा। तालाब, नदियां सहायकखेत का मेढ़ मजबूत न होना बाढ़ के स्वरूप को धारण करती है, इसलिए सबसे जरूरी है खेत के मेढ़ का मजबूत होना। जितना खेत में पानी इक_ा होगा उतना ही भूजल में बाढ़ की विभिषिका कम आएगी। रेन वाटर हारवोस्टिंग के लिए नगर, तालाब, नदियां सहायक है। ग्राउंड वाटर का लेवल इसलिए कम हो रहा है नहर, तालाब और कुंड चारों तरफ से सॉलिड हो चुके है इसलिए भूजल का रिसाव बढ़ी नदियों में कम हो रहा है। बनारस में 90 परसेंट घरों में ग्राउंउ वाटर का उपयोग होता है, ग्राउंड वाटर स्टोरेज बढ़ाने के लिए उपाय होना चाहिए।
जल का सोर्स बढ़ाने के लिए बालू क्षेत्र का उपयोग किया जाना चाहिए। गंदे जल को छानने की भी क्षमता बालू में है, सारे एसटीपी बालू क्षेत्र में बनाने चाहिए। नदियों में सीप होल्स छोड़े जाने चाहिए। अस्सी और वरुणा में सीप होल्स नहीं छोड़े गए, इसलिए पानी फिल्टरेड नहीं हो पाता. यूके चौधरी, भूगर्भ जल विशेषज्ञ