फर्जी सर्टिफिकेट पर बन गए प्रूफ रीडर!
-संस्कृत यूनिवर्सिटी के प्रकाशन निदेशक ने वीसी से दर्ज कराई कम्प्लेन
-पीएचडी के दौरान प्रूफ रीडर का अनुभव प्रमाणपत्र लगाने का दावा -यूनिवर्सिटी में एक दूसरे की पोल खोलने में जुटे ऑफिसर व कर्मचारी VARANASIसंपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी में ऑफिसर्स, टीचर्स व कर्मचारी एक दूसरे की पोल खोलने में जुटे हुए हैं। इस क्रम में प्रूफ रीडर डॉ। हरिवंश पांडेय की नियुक्ति फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र के आधार पर होने का दावा किया गया है। इस मामले की जांच कर कार्रवाई के लिए प्रकाशन संस्थान के डायरेक्टर डॉ। पद्माकर मिश्र ने वीसी से भी कम्प्लेन की है। कार्रवाई के लिए उन्होंने इसकी प्रतिलिपि रजिस्ट्रार, चीफ प्रॉक्टर, फाइनेंस ऑफिसर व स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर को भी दी है। इसमें कहा गया है कि प्रूफ रीडिंग पद के लिए इंटरमीडिएट के साथ पांच साल का अनुभव प्रमाण पत्र मांगा गया था। फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र के आधार पर डॉ। हरिवंश पांडेय की नियुक्ति 29 जुलाई 1989 में हुई। 1985 से 1989 तक वह पीएचडी कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने पू्रफ रीडिंग का अनुभव प्रमाणपत्र भी संलग्न किया है। पढ़ाई व नौकरी एक साथ संभव नहीं है। इतना ही प्रकाशन निदेशक के पद को शैक्षिक घोषित कराने में भी डॉ। पांडेय की सक्रिय भागीदारी रही है। इसके लिए उन्होंने तत्कालीन वीसी प्रो। अशोक कुमार कालिया के फर्जी पत्र का इस्तेमाल किया। तत्कालीन वीसी प्रो। कालिया ऐसे किसी भी पत्र पर हस्ताक्षर न करने की बात स्वीकार कर चुके हैं। इतना ही नहीं पू्रफ रीडर से कार्यालय पंडित पद पर डॉ। पांडेय की हुई नियुक्ति पर भी सवाल उठाया गया है। इसके अलावा फर्जी तरीके से टीए बिल का भी भुगतान लेने का आरोप है। प्रकाशन निदेशक ने इस मामले की जांच न होने पर कुलाधिपति को पत्र लिखने की भी धमकी दी है।
मेरे ऊपर लगाए गए सभी आरोप निराधार हैं। प्रकाशन निदेशक मेरे ऊपर आरोप बदले की भावना से लगा रहे हैं। जबकि उनकी ही नियुक्ति ही गलत तरीके से हुई है। इस संबंध में सीएम ने जांच कमेटी भी गठित की है। डॉ। हरिवंश पांडेय, कार्यालय पंडित