हर साल बढ़ रही विद्वानों की संख्या पांच साल में 40 परसेंट बढ़ा संस्कृत के प्रति रुझान हर साल 10 परसेंट विद्वान जा रहे हैं विदेश जर्मनी फ्रांस अमेरिका के मंदिरों में कर रहे कर्मकांड

वाराणसी (ब्यूरो)काशी का मान लगातार विश्व पटल पर बढ़ रहा है। यहां के संस्कृत विद्वान देश ही नहीं विदेशों में भी संस्कृत का परचम लहरा रहे हैं। पांच साल में बनारस से करीब सौ से अधिक छात्र कनाडा, जर्मनी समेत अन्य देशों में संस्कृत का न सिर्फ कर्मकांड कर रहे हैं बल्कि यहां की संस्कृति को भी बढ़ा रहे हैं। न्याय शास्त्र, वेदांत, वेद से लेकर मिमांस योग शास्त्र की विद्या दे रहे हैं। पांच साल पहले संस्कृत के विद्वानों की पूछ काफी कम रही लेकिन संस्कृत के बढ़ते क्रेज को देखते हुए अब विदेशों में संस्कृत के छात्रों की मांग बढ़ गई है। अभी तक करीब सौ से अधिक छात्र विदेशों में संस्कृत की परंपराओं को बढ़ा रहे हैं। इनमें काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र शामिल हैं।

और छात्रों की है डिमांड

विदेशों में अभी और संस्कृत के छात्रों की डिमांड की जा रही हैं। संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो। की मानें तो पिछले पांच साल में करीब 40 परसेंंट से अधिक छात्रों की मांग बढ़ी है। इसको देखते हुए अब विश्वविद्यालय में काफी तेजी से छात्र संस्कृत में एडमिशन ले रहे हैं। संस्कृत भाषा को सीख रहे हैं.

इन देशों में बढ़ा रहे परंपरा

काशी के संस्कृत के विद्वान मॉरीशस, कनाड़ा, ग्रीस, जर्मनी, अमेरिका, इग्लैंड, फ्रांस, जापान, यूक्रेन जैसे देशों में संस्कृत की परंपराओं को बढ़ा रहे हैं। इन देशों के मंदिरों में कर्मकांड और पूजन आदि सभी संस्कृत में ही की जा रही है। यही नहीं योग शास्त्र, मिर्मासा, वेदांत, वेद जैसे शास्त्रों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। यहीं नहीं अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस के मंदिरों में प्रतिदिन कर्मकांड भी कर रहे हैं। वहां के लोगों के बीच जाकर संस्कृत की विद्या का विस्तार कर रहे हैं। इसको देखते हुए जो लोग वहां पर रह रहे हैं, सभी अपने-अपने मंदिरों में यहां के संस्कृत विद्वानों से ही पूजन करवा रहे हैं.

देश व विदेश के विद्वानों की जुटान

संस्कृत की विद्या को बढ़ाने के अभी हाल ही के 3 व 4 मार्च को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में सेमिनार हुआ था। इनमें देश ही नहीं विदेश के विद्वानों की जुटान हुई थी। प्रोग्राम में पारंपरिक विषयों का अध्ययन, अध्यापन पर मंथन हुआ था। व्याकरण समेत मिमांसा, वेदांत, वेद, योग शास्त्र को बढ़ावा दिया गया। संस्कृत के साथ-साथ पूरे देश में वेद के ज्ञान को बढ़ावा देना है ताकि भविष्य में भी वेद की महत्ता बरकरार रहे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चाहते हैं कि संस्कृत को बढ़ावा मिले। इस क्षेत्र में वह काफी तेजी से कार्य भी कर रहे हैं। यही वजह है कि काशी में हर साल संस्कृत के छात्रों में इजाफा हो रहा है। शहर में भी संस्कृत का लोग प्रशिक्षण ले रहे हैं। अमेरिका और जर्मनी में अभी और संस्कृत के विद्वानों की मांग है। वहां पर कर्मकांड काफी तेजी से विस्तार कर रहे हैं.

प्रोरामनारायण द्विवेदी, महामंत्री, काशी विद्वत परिषद

इस आधुनिकता के जमाने में हम अपने वेद को भूलते चले जा रहे हैं, जबकि इसी वेद से हमें ज्ञान प्राप्ति हुई। संस्कृत के विषयों के प्रति छात्रों की रुचि बढ़ी है। वेद, आचार्य में काफी छात्रों ने भविष्य बनाया है। आगे भी छात्र काफी तेजी से इसमें भविष्य बना रहे हैं। संस्कृत की परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। सरकार संस्कृत को बढ़ावा दे रही है.

प्रोहरेराम त्रिपाठी, कुलपति, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय

Posted By: Inextlive