पखावज वादक पं. अमरनाथ मिश्र और पं. किशन महाराज की मित्रता ने आयोजन को दिया विस्तार संगीत समारोह में बाहर के कलाकारों के आने का सिलसिला 1962 में शुरू हुआ


वाराणसी (ब्यूरो)संकटमोचन मंदिर इन दिनों ज्यादा गुलजार है। ज्यादा गुलजार होने से आशय है कि यह एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जहां 100 साल से गीत-संगीत के साथ ही भाईचारा, कौमी एकता और सौहाद्र्र का संगम देखने को मिलता है। गंगा-जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए इस मंदिर ने हमेशा नई इबारत लिखी। संकटमोचन मंदिर के इस समारोह की खासियत है कि बिना निमंत्रण श्रोताओं का हुजूम जुटता है। यहां गीत-संगीत की ऐसी सरिता हिलोरे मारती है, जिसमें आस्तिक तो आस्तिक, नास्तिक भी संगीत सुनने आते हैं। 27 अप्रैल से शुरू हुए संकट मोचन संगीत समारोह का यह 101 वर्ष है। चार दिन में प। रतिकांत महापात्रा, साजन मिश्र, प। शिवमणि, विश्वमोहन भट्टï, हरिप्रसाद चौरसिया, अभय सोपोरी, मालिनी अवस्थी, मधुमिता राय, अनूप जलोटा जैसी संगीत की तमाम हस्तियों ने प्रस्तुति देकर हनुमत दरबार में हाजिरी लगाई.

हनुमान की ड्योढ़ी पर सजा था पहला मंच

हनुमत दरबार में सार्वभौम रामायण सम्मेलन की शुरुआत 1923 में हुई थी। तीन दिन सार्वभौम सम्मेलन का समापन चौथे दिन संगीत समारोह से होता था। तब उस समय संगीत समारोह का पहला मंच संकट मोचन बाबा की ड्योढ़ी पर सजा था। गर्भगृह के ठीक बाहर कलाकार गायन-वादन करते थे। यह क्रम 25 वर्षों तक चला। रामायण समारोह का पूरा दायित्व बड़े महंतजी निभाते तो संगीत समारोह की कमान तत्कालीन छोटे महंत पं। अमरनाथ मिश्र संभालते। समारोह में श्रोताओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए 1948 में तत्कालीन बड़े महंत पं। बांकेराम मिश्र के निर्देश पर मंदिर परिसर स्थित कुएं की जगह मंच के रूप में इस्तेमाल की जाने लगी। आयोजन की लोकप्रियता का ग्राफ धीरे-धीरे बढऩे लगा। कबीरचौरा और रामापुरा के कलाकारों का जुड़ाव तेजी से बढऩे लगा। पखावज वादक पं। अमरनाथ मिश्र और पं। किशन महाराज की घनिष्ट मित्रता ने आयोजन के स्वरूप को और विस्तार दिया।

तो बदलना पड़ा मंच

पहली बार 25 साल बाद मंच बदला, बढ़ती भीड़ को देखते हुए दोबारा अगले 15 साल बाद ही मंच का स्थान बदलने की जरूरत महसूस की गई। संगीत समारोह में बाहर के कलाकारों के आने का सिलसिला 1962 में शुरू होने के बाद इस समारोह की ख्याति भी बनारस से बाहर बढ़ गई। श्रोता ही नहीं कलाकार भी बढऩे लगे। नतीजा यह रहा कि अगले नौ साल में ही पुन: मंच बदलने की जरूरत आन पड़ी। वर्ष 1971 में तीसरी बार मंच का स्थान बदला गया। संगीत समारोह का चौथा मंच गर्भगृह के उत्तर स्थित आंगन के पश्चिमी बरामदे में बनाया गया। तब से आयोजन भी तीन दिन का हो गया.

मंच पर टूटी ट्यूबलाइट

1966 के कार्यक्रम में पं। गोपाल मिश्र और बीच में पं। किशन महाराज बैठे थे। वादन के दौरान मंच पर अचानक एक ट्यूबलाइट गरम होकर फूट गई। तेज आवाज के साथ शीशे इधर उधर बिखर गए लेकिन दोनों में से किसी कलाकार के चेहरे पर शिकन नहीं आई। जैसे उन्हें पता नहीं चला कि मंच पर कुछ टूटा-फूटा भी है। इस दौर में संगीत समारोह का समापन प्रख्यात तबला वादक पं। कंठे महाराज की प्रस्तुति से होता था। दो दिनों में जितने भी कलाकारों ने प्रस्तुति दी होती। सब के सब आगे की पंक्ति में बैठ कर उनका वादन सुनते थे.

40वें साल में 3 बड़े बदलाव

संगीत समारोह के 40वें साल 1962 में तीन बड़े बदलाव हुए। पहला संगीत समारोह के मंच में हुआ। कुएं की जगह से हटाकर मंच व्यवस्था गर्भगृह के दक्षिणी छोर स्थित बरामदे में की गई, जहां इन दिनों महिला दीर्घा है। इसी वर्ष से संगीत समारोह को दो दिन कर दिया गया। तीसरा बदलाव यह था कि पहली बार बनारस से बाहर के कलाकार के रूप में पं। जसराज के बड़े भाई पं। मणिराम बाबा दरबार में आए। 1966 में वायलिन वादक वीजी जोग दूसरे बाहरी कलाकार बने। वीजी जोग के साथ सारंगी पर पं। गोपाल मिश्र (पं। राजन-साजन के चाचा एवं गुरु) ने जुगलबंदी की थी.

शुरू हुआ महिलाओं का प्रवेश

सत्तर का दशक भी संकटमोचन संगीत समारोह के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा। इस दशक में न सिर्फ उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों से कलाकारों के आने का क्रम शुरू हुआ। बल्कि अचानक हुए एक वाकये के बाद मंच पर महिलाओं के प्रवेश की राह खुल गई। संकटमोचन संगीत समारोह की स्वर्ण जयंती वर्ष 1973 में हुआ.

पंजसराज से शुरू हुआ

ठीक एक वर्ष बाद पं। जसराज का प्रवेश हुआ। बेशक बनारस के बाहर के कलाकारों के आगमन का क्रम 1962 से शुरू हो गया था लेकिन यह सिलसिला पं। जसराज की दूरदर्शिता से परवान चढ़ा। अगले ही साल जयपुर के नामी गायक गोविंद प्रसाद जयपुरवाले का आना हुआ। कुछ ऐसा सुखद संयोग बना कि पूर्व काशीनरेश महाराज डॉ। विभूतिनारायण सिंह की प्रेरणा से तुलसी घाट पर ध्रुपद मेला की नींव पड़ी। महाशिवरात्रि पर पक्की गायिकी के मेले ने कई अन्य कलाकारों के संकटमोचन से जुडऩे की राह खोली.

1978 कंकणा बनर्जी ने की थी प्रस्तुति

वर्ष 1978 में कोलकाता की कंकणा बनर्जी संकटमोचन संगीत समारोह में गायन करने वाली पहली महिला कलाकार बनीं। वर्ष 1977 में पं। प्रताप नारायण का गायन हो रहा था। काशी के अरुण चटर्जी उनके साथ संगत कर रहे थे और कंकणा बनर्जी तानपुरा संगत कर रही थी। कंकणा ने अचानक बीच में सुर लगा दिए थे। उनके सुर लगाते ही मंदिर परिसर में श्रोताओं के बीच कानाफूसी शुरू हो गई। कुछ ने महिला ने गा दिया महिला ने गा दिया का शोर भी किया, लेकिन प्रो। वीरभद्र मिश्र का संकेत पाकर सभी शांत हो गए और गायन सुनने लगे। गायन के अंत में प्रो। मिश्र ने कंकणा बनर्जी के स्वतंत्र गायन की घोषणा कर दी। गायन में महिलाओं के प्रवेश के नौ साल बाद 1987 में नृत्य में भी अवसर मिला। पहली नृत्यांगना के रूप में संयुक्ता पाणिग्रहि ने ओडिसी की प्रस्तुति की। उसके बाद उमा शर्मा और सोनल मानसिंह का आना हुआ.

1979 में राजन-साजन ने दी प्रस्तुति

पं। राजन साजन के पिता पं। हनुमान प्रसाद मिश्र और चाचा पं। गोपाल मिश्र ने पं। अमरनाथ मिश्र से आग्रह किया कि क्यों न हमारे बच्चों की भी शुरुआत यही से हो। 1979 में पं। राजन-साजन को पहली बार इसी मंच से लॉन्च किया गया। सूर्योदय से पहले दोनों भाई राग ललित गा रहे थे। उस दिन पं। रविशंकर साठ साल के हुए थे। वह दर्शन करने आए। दर्शन के बाद पं। रविशंकर ने मंच पर बैठ कर दोनों भाइयों का गायन सुना था.

इन कलाकारों ने दी प्रस्तुति

तबला वादक किशन महाराज, पं। शारदा सहाय, पं। शामता प्रसाद, पं। लच्छू महाराज, पं। ईश्वर लाल मिश्र, पं। छोटे लाल मिश्र, माणिक वर्मा, नृत्यांगना, कुमार गंधर्व, मालिनी अवस्थी, सोनू निगम, तबला वादक संजू सहाय, भजन सम्राट अनूप जलोटा, पण्डित विश्व मोहन भट्ट, ड्रम वादक शिवमणि, कविता कृष्णमूर्ति, हरीश गंगानी, रविकांत महापात्रा, उल्लास कलाशकर समेत कई नामचीन कलाकार प्रस्तुति दे चुके हैं.

फैक्ट एंड फीगर

1923 में एक दिवसीय आयोजन से हुई थी संकट मोचन संगीत समारोह की शुरुआत

1965 में पं। जसराज के बड़े भाई पं। मणिराम समारोह में प्रस्तुति देने वाले पहले बाहरी कलाकार थे

1979 में पहली बार संकट मोचन संगीत समारोह में अपने अग्रज पं। साजन मिश्र के साथ शरीक हुए थे। 2019 तक दोनों भाई साथ साथ गाते रहे। 2021 में कोरोना संक्रमण से पं। राजन मिश्र का निधन हो गया।

1978 में कोलकाता की कंकणा बनर्जी ने संकटमोचन संगीत समारोह में गायन करने वाली पहली महिला कलाकार थीं।

संकट मोचन संगीत समारोह में देश-विदेश के कलाकार प्रस्तुति के लिए आते हैं। कोई अच्छा संगीत तो कोई अच्छा वादन कर प्रभु के चरणों में समर्पित करते हैं। यह परंपरा सौ वर्षों से चली आ रही है। इसी बहाने लोग मंदिर से जुड़ते हैं.

प्रोविश्वम्भर नाथ मिश्र, महंत, संकटमोचन

Posted By: Inextlive