बनारस के पैराडाइज किला पर रोहिंग्या का ठिकाना
वाराणसी (ब्यूरो)। वाराणसी समेत पूरे पूर्वांचल में पहचान बदलकर छिपे बांग्लादेशियों की फेहरिस्त में रोहिंग्या भी शामिल हो गए हैं। मंगलवार को बलिया से गिरफ्तार म्यांमार निवासी मोहम्मद अरमान और अब्दुल अमीन से मिली जानकारियों से खुफिया जांच एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। वाराणसी के राजघाट स्थित पैराडाइज मैदान समेत तमाम जगहों पर आबाद हो चुकी बस्तियों में इनकी मौजूदगी हो सकती है। बलिया की घटना के बाद एटीएस यानी एंटी टेररिस्ट स्क्वायड की स्थानीय इकाई की रडार पर ये बस्तियां और वहां रहने वाले लोग हैं.
सर्वे में मिले थे, पहचान नहीं हुईबलिया से पकड़े गए दो रोहिंग्या को लेकर एटीएस के साथ ही कमिश्नरेट पुलिस को भी चौकन्ना किया गया है। हालांकि, 2017 में सीएम बनते ही योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर वाराणसी में पूरे शहर में सर्वे कराए गए थे। इसमें 15 हजार से अधिक बांग्लादेशियों के अवैध तरीके से बनारस में रहने की आशंका जताई गई थी। बावजूद इसके पुलिस एक भी बांग्लादेशी या रोहिंग्या व्यक्ति की तस्दीक नहीं कर सकी थी.
इन इलाकों में कराया गया था सर्वेबांग्लादेशी होने की आशंका में खुद को पश्चिम बंगाल के वाशिंदे बताने वाले करीब 15 हजार लोगों का सत्यापन करने के लिए सीएम ने निर्देश दिए थे। इस आधार पर भेलूपुर के बजरडीहा, खोजवां, लंका के नगवां, दशाश्वमेध, कोतवाली, जैतपुरा, आदमपुर, रामनगर के सूजाबाद, नगर निगम पुलिस चौकी क्षेत्र के माधोपुर, कैंट रेलवे स्टेशन के आसपास, वरुणा पार की प्रेमचंद नगर कॉलोनी और आवास विकास कॉलोनी के साथ ही शहर के बाहरी इलाकों की झोपड़-पट्टियों में सर्वे कराया गया था.
दस्तावेज देख मुश्किल था मूल नागरिकता तय कर पाना जिन चिह्नित इलाकों में सर्वे कराया गया, वहां के वाशिंदों के पास मतदाता परिचय-पत्र, राशन कार्ड और आधार कार्ड जैसे अहम दस्तावेज देख उनकी मूल नागरिकता तय कर पाना खुफिया इकाई के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए मुश्किल हो गया था। उन्होंने न सिर्फ भारतीय नागरिकता के दावे किए बल्कि बोली-भाषा से जुड़े सवालों पर जवाब दिया कि वे बांग्लादेशी नहीं बल्कि बांग्लाभाषी हैं। बताया जाता है कि राजनीतिक समर्थन प्राप्त करने के लिए बांग्लादेशियों का राशन कार्ड के साथ वोटर बना दिया गया. कई बस्तियों का पहले नामोनिशान नहीं थाराजघाट स्थित पैराडाइज मैदान में जहां पहले बस्तियों का नामोनिशान नहीं था, वहां अब झुग्गी- झोपडियां आबाद हो गई हैं। इनमें रहने वालों में रिक्शा चलाने, मजदूरी करने, घरों-होटलों-ढाबों में नौकर का काम करने, ठेले-खोमचे लगाने और कूड़ा एकत्र करने वाले जैसे लोग शामिल हैं। इसी तरह कोनिया, अलईपुरा, चितईपुर, डाफी समेत कई इलाकों में बस्तियां आबाद हो चुकी हैं।
खुद को बताया था पश्चिम बंगाल का जिस पर भी बांग्लादेशी नागरिक होने का शक होता है, वह खुद को बांग्लादेश की सीमा से सटे पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा, नादिया, उत्तरी 24 परगना, रायगंज और जलपाईगुड़ी जिले का मूल निवासी बता देता है। ऐसे लोगों का सत्यापन करना भी पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ था। इन झुग्गी-झोपडिय़ों में रहने वालों को स्थानीय नेताओं ने अपना वोट बैंक बना लिया है। लोग बता रहे कि वोट के चक्कर में स्थानीय नेताओं ने ही बांग्लादेशी नागरिकों का पहले राशनकार्ड बनवाया और फिर राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर उनका मतदाता परिचय-पत्र और आधार-कार्ड भी बनवा दिया. बलिया से पकड़े गए रोहिंग्या के बाद वाराणसी समेत पूरे पूर्वांचल में अवैध रूप से रहने वाले एटीएस की रडार पर है। वोटर कार्ड समेत अन्य दस्तावेज बनने से इनकी पहचान मुश्किल है, लेकिन इनकी गतिविधियों पर पूरी नजर है। संदिग्ध या देश विरोधी गतिविधियां मिली तो तुरंत एक्शन लिया जाएगा. विपिन राय, प्रभारी, एटीएस