पिछले 32 दिन से बीएचयू सेंट्रल आफिस के बाहर चल रहा धरना नॉन नेट फेलोशिप की राशि बढ़ाने की मांग खुले आसमान के नीचे ठंड में सो रहे हैं रिसर्च स्कॉलर्स


वाराणसी (ब्यूरो)बीएचयू के ऑफिस को अगर कोई धरना स्थल के नाम से पुकारे तो ज्यादा हैरान होने की जरुरत नहीं है। इन दिनों इसे इसी नाम से पुकारा जा रहा है। दरअसल बीएचयू के शोधार्थी छात्र-छात्राएं यहां नॉन जेआरएफ फेलोशिप (नॉन नेट फेलोशिप) में बढ़ोत्तरी की मांग को लेकर पिछले 32 दिनों से अनिश्चित कालीन धरने और क्रमिक अनशन पर बैठे है, लेकिन तब से लेकर अब तक इन छात्रों से मिलने के लिए न तो वीसी की तरफ से कोई पहल की गई और न ही विवि प्रशासन की ओर से। ऑफिस के मेन गेट पर धरना देने की वजह से उस गेट को भी बंद कर दिया गया है। ठंडी बढऩे के बाद भी छात्र खुले आसमान के नीचे ओंस भरी रात में धरना स्थल पर सो भी रहे हैं। इधर धरने के साथ क्रमिक अनशन के 15वें दिन शोधार्थियों ने विवि प्रशासन और वीसी के संवेदनहिनता की निंदा करते हुए आमरण अनशन का फैसला लिया है। शोधार्थियों ने वीसी को आगाह किया है कि अगर शनिवार तक हमारी समस्या का निदान नहीं हुआ तो वे सोमवार से आमरण अनशन शुरू कर देंगे।

जेआरएफ के फेलोशिप को कई बार संशोधित

इन शोधर्थियों का कहना है कि सन 2006 में जूनियर रिसर्चर फेलोशिप और नॉन जेआरएफ फेलोशिप एकसमान 8 हजार रुपए प्रति माह था। जिसके बाद जेआरएफ के फेलोशिप को कई बार संशोधित किया गया और वर्तमान में जेआरएफ फेलोशिप करीब 43 हजार से ज्यादा हो गया है। लेकिन नॉन नेट को अभी भी मात्र 8 हजार रूपए ही मिल रहा है। जबकि शोध कार्य दोनों रिसर्चर्स को एक जैसा ही करना पड़ता है। इसमें काई फर्क नहीं है। लैब में भी दोनों रिसर्चर्स को एक एक समान चीजों की ही जरूरत पड़ती है। ऐसे में इतने कम फेलोशिप में गुजारा करना मुश्किल हो जाता है। रिसर्च के दौरान बहुत सारे एक्सपेंसेस होते है। जिन्हें पूरा करने में पसीने छूट जाते हैं।

मेहनत एकसमान तो फेलोशिप फर्क क्यों

छात्रों का कहना है कि नॉन जेआरएफ की कैटेगरी में वो रिसर्चर्स भी आते जिन्होंने नेट, गेट और सेट किया हुआ है। इन्ही योग्यता के साथ अगर वो आईआईटी में एडमिशन लेता हैं तो उसे जेआरएफ वाला ही फेलोशिप दिया जाता है। नेट एग्जाम देने वालों में कुछ ही लोगों को जेआरएफ दिया जाता है, जिनमें 0.5 से 1 नंबर का ही अन्तर होता है, लेकिन बात तो शोध कार्य की है चाहे वो जेआरएफ हो या नॉन जेआरएफ। रिसर्च में दोनों को मेहनत तो बराबर की ही करनी है। जब मेहनत एक समान तो फेलोशिप में इतना भेदभाव क्यों। इसी फर्क को दूर कराने के लिए छात्र पिछले एक माह से धरना दे रहे हैं। इन्ही मांगो को लेकर बीएचयू के शोधार्थियों ने लगभग 3 महीने पहले विवि के कुलपति, कुलसचिव, और डीएसडब्ल्यू समेत सभी संस्थान के डीन को ज्ञापन सौपा गया था, लेकिन किसी से भी इसका कोई जवाब नही मिलने पर विवि के शोधर्थियों ने 17 अक्टूबर को सिंह द्वार से केंद्रीय कार्यालय तक शांतिपूर्ण तरीके से पैदल मार्च निकाला गया, जिसमे सैकड़ो शोधार्थी शामिल थे।

धरने से शोध पर नहीं पड़ रहा कोई असर

शोधार्थी भले ही 32 दिनों से धरने पर मगर इससे उनके रिसर्च पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। अपने रिसर्च वर्क को बिना रोके या बिना प्रभाव के दिन रात अनवरत धरना चला भी रहे हैं। सभी शोधार्थी बारी-बारी से आकर धरना स्थल पर बैठते है और साथ मे अपना काम भी करते है। जब एक्सपेरिमेंट का काम होता है तो वे बारी बारी से लैब में जाते हैं और जब पढऩे वाला काम होता है तो शोधार्थी धरना स्थल पर ही पढ़ते है। शोध छात्र नीरज तिवारी ने बताया कि एक बार बीएचयू के रजिस्ट्रार ने स्टूडेंट्स डेलीगेट्स को मिलने के लिए बुलाया,लेकिन कोई बात नही बनी। यहां

सबका मानना है कि फेलोशिप बढऩा चाहिए, क्योंकि इससे ज्यादा मेहनताना तो मनरेगा में मिलता है। इसी क्रम मे एक दिन 500 शोधर्थियों द्वारा शांतिपूर्ण तरीके से कैंडल मार्च और एक दिन भिक्षाटन किया गया जिसमे 271 रुपये मिले जिसे बीएचयू को ही दान में दिया गया।

मानसिक रूप से प्रताडि़त

शोधार्थियों का कहना है कि बीएचयू प्रशासन द्वारा बच्चों को मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जाता रहा है। इसमें कई बच्चे बीमार भी हो गए है। मेन गेट बंद करवाकर वीसी दूसरे रास्ते से अपने ऑफिस में आ जा रहे हैं लेकिन बीमार बच्चों से मिलने की कोशिश तक नहंी कर रहे हैं। बीएचयू को आईओई का दर्जा मिला हुआ है जिसके तहत बीएचयू को 1000 करोड़ का अतिरिक्त फंड मिला हुआ है, जिसके मिलने मे स्टूडेंट्स का बहुत बड़ा योगदान होता है, लेकिन उसका ही फायदा स्टूडेंट्स नही मिल रहा है। शोधार्थियों की मांग है कि सन् 2006 के 8000 रुपये मे सिर्फ इंफ्लेशन ही जोड़ दिया जाए तो लगभग 25000 बन जाता है। इसलिए विवि कम से कम 25000 रुपये प्रति माह फेलोशिप सभी नॉन नेट शोधार्थियों को दे.

हम अपनी जायज मांग को लेकर धरना दे रहे हैं। इस धरने का असर उनके शोध कार्य पर पडऩे नहीं दिया जा रहा है। यही वजह है कि एक बार में 10-15 शोधार्थी ही धरना स्थल पर दिखाई देते हैं। सभी बारी-बारी से वहां अपना समय देते हैं। सभी शोधकर्ता आंदोलन स्थल पर ही अपना लैपटॉप, पेपर लेकर पढ़ाई कर रहे हैं। फिर भी विश्वविद्यालय प्रशासन उदासीन है।

नीरज तिवारी, शोध छात्र, बीएचयू

सभी शोधार्थियों ने आर्थिक संकट के कारण होने वाली समस्याओं को गिनाते हुए अपनी शोध वृत्ति को 25000 प्रति माह करने की मांग की है। छात्र 32 दिन से खुले आसमान के नीचे सड़क पर सो रहे हैं। लेकिन इससे वीसी और बीएचयू को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। अगर शनिवार तक ये लोग नहीं जगे तो सोमवार से आमरण अनशन शुरू किया जाएगा। ऐसे में अगर किसी छात्र या छात्रा को कुछ होता है तो इसकी जिम्मेदारी विवि प्रशासन की होगी.

कैलाश वर्मा, शोध छात्र, बीएचयू

Posted By: Inextlive