Varanasi news: काशी में आकर मिलती है एनर्जी : कविता कृष्णमूर्ति
वाराणसी (ब्यूरो)। संकटमोचन संगीत समारोह में चौथी बार हाजिरी लगाने पहुंचीं पाश्र्व गायिका कविता कृष्णमूर्ति बाबा की नगरी में विकास मॉडल को देखकर अभिभूत हो उठीं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की टीम ने संकटमोचन संगीत समारोह से लेकर काशी के विकास मॉडल और गानों में रीमिक्स से लेकर कई पहलुओं पर बातचीत को तो उन्होंने कहा कि यहां आकर अद्भुत एनर्जी मिलती है.
चौथी बार आईं काशी
पाश्र्वगायिका कविता कष्णमूर्ति ने कहा कि बनारस मैं चौथी बार आयी हूं। बनारस आकर ऐसा लगता है कि जैसे हिंदू कल्चर की सबसे बड़ी शक्ति मिल गयी है। गुरुवार सुबह बाबा के दरबार में दर्शन करने गयी तो ऐसा लगा जैसे अद्भुत एनर्जी मिल गयी हो। मन करता है बनारस ही आकर शिफ्ट हो जाऊं। बनारस बहुत बदल चुका है। काफी डेवलप हो चुका है।
90 के बाद बदल गई फिल्म इंडस्ट्री
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 90 के दशक के बाद फिल्म इंडस्ट्री में काफी बदलाव आया है। प्रोडयूसर सब इंडीविजुअल थे। जैसे प्रकाश मेहरा, सुभाष घई प्रोडयूसर रहते थे रिकॉडिंग रूम में। सिंगर, डायरेक्टर और सांग राइटर समेत सब मिलकर काम करते थे। इसके बाद ऐसा सिनेरियो बदला कि सिर्फ म्यूजिक डायरेक्टर रिकॉडिंग स्टूडियों में अकेले काम कर रहे है। ऐसा दौर आया कि अब गाने टुकड़े-टुकड़े में गाने लगे है।
स्टाइल होती थी गायकों की
आरडी बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ओपी नैय्यर, जतीन ललित, अनु मलिक हो सभी की एक स्टाइल होती थी गाने की। फट सुनकर पता चल जाता है कि किसके गाने है। अब सुनती है तो पता हीं नहीं चल पाता है कि कौन म्युजिम डायरेक्टर है। अब गानों में काफी बदलाव आ चुका है। अभी भी इंडस्ट्री में सिंगर काफी अच्छे है। म्युजिक डायरेक्टर भी काफी टैलेंटेड है लेकिन म्युजिकल जो सब्जेक्ट काफी बदल चुका है। फिल्म जब बनती है तो गानों में बैकग्राउंड नहीं पता चलता है। जैसे श्रीदेवी स्क्रीन हवा-हवाई खुद गाया है। फिल्म में एक्टर का गाना बहुत कम हो गया है।
भजन का कांसेप्ट तेजी से बढ़ा
कविता कृष्णमूर्ति कहती है कि विश्वनाथ धाम और अयोध्या धाम बनने के बाद भजन गानों का कांसेप्ट काफी तेजी से बढ़ा है। पहले लोग भजन के गीतों को भूल चुके थे लेकिन अब काफी तेजी से अच्छे-अच्छे गायक भजन गा रहे है। यह काफी अच्छी बात है। हां पुराने गानों को रिमिक्स कर रहे है पुराने गायकों को उस गाने में क्रेडिट मिलना चाहिए.
नई पौध हो रही तैयार
वायलिन वादक डा। एल सुब्रमणियम का कहना है कि राग से नई जनरेशन दूर होती जा रही है। यंग जनरेशन को संगीत से जोडऩे के लिए नई किताब राग हार्मोनी की लांचिंग की है। यह किताब भारतीय राग उस्तादों के लिए आर्केस्ट्रा रचनाओं के बारे में है। एल सुब्रमण्यम द्वारा लिखित राग हार्मोनी: हार्मोनिक स्ट्रक्चर्स एंड टोनलिटीज़ इन इंडियन क्लासिकल म्यूजि़क का एक अंश है.
परंपराओं को बढ़ा रहे आगे
डा। एल सुब्रमणियम का कहना है कि बंगलूरू में लक्ष्मी नारायण ग्लोबल सेंटर में 30 हजार बच्चों को संगीत सिखाया जा रहा है। राग के बारे में उन्हें बताया जा जिससे वह संगीत की परंपराओं को आगे बढ़ा सके। सलाम बाम्बे, जयते समेत कई फिल्मों में वह धुन बचा चुके है। इसके अलावा कई मलयालम फिल्मों में भी धुन बजा चुके है। गुरुवार को संकट मोचन संगीत समारोह में वायलिन पर राग बजाएंगे.