पंच रिश्तों ने पहुंचा दिया ओलम्पिक तक
भारतीय हॉकी खिलाड़ी ललित उपाध्याय का सफर
41 साल बड़ा लंबा वक्त होता है। इतने में एक पूरी पीढ़ी जवान होकर बूढ़ी होने लगती है। भारतीय पुरुष हॉकी टीम के हर सदस्य को उस लम्हे का बेसब्री से इंतजार था, जब वह ओलंपिक में मेडल जीते। गुरुवार को वह आस पूरी हो गई है। जी, हां हम बात कर रहे हैं टोक्यो ओलम्पिक की, जिसमें भारतीय टीम ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। इस ऐतिहासिक उपलब्धि में वाराणसी के लाल ललित उपाध्याय की भूमिका भी अहम रही। फॉरवर्ड और मिड फील्ड से खेलने वाले ललित ने हर मैच में अपने परफामेंस से टोक्यो के साथ भारत ही नहीं, बल्कि हर बनारिसयों का दिल जीत लिया। मोहम्मद शाहिद, विवेक सिंह और राहुल सिंह के बाद ललित उपाध्याय को ओलम्पिक तक पहुंचाने में किन लोगों का अहम योगदान है। यह बताने जा रहा है दैनिक जागरण आईनेक्स्ट। बनारस ही नहीं पूरे विश्व में जिस ललित की जय-जयकार हो रही है, उसमें पांच रिश्तों का अहम योगदान है।
सतीश उपाध्यायललित के पिता हैं सतीश उपाध्याय, जो मुख्य रूप से व्यवसायी हैं। यूपी कॉलेज के पास ही गारमेंट शॉप है। यूपी कालेज के मैदान में खेल के लिए आते-जाते हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मोहम्मद शाहिद से उनकी दोस्ती हो गई और हॉकी से लगाव भी। अपने बच्चे को भी हॉकी खिलाड़ी बनाने की ठान ली। सबसे पहले उन्होंने अपने बेटे अमित को बतौर हॉकी खिलाड़ी तैयार किया। अमित उपाध्याय नेशनल के आगे नहीं जा सके। इसके बाद उन्होंने दूसरे बेटे ललित पर फोकस कर दिया।
परमानंद मिश्र यह हैं ललित उपाध्याय के गुरु यानी कोच। परमानंद ने ही अपने सानिध्य में ललित को तैयार किया है। वह बताते हैं कि ललित बहुत ही अनुशासित है और जुनूनी भी। वह कभी भी मैदान में अपसेंट नहीं रहा। कोचिंग के अलावा भी वह मेरे पास आकर खेल की बारिकियों को समझता था। जो कमी थी, उसे जब तक दूर नहीं कर लेता, तब तक वह मानता नहीं था। ललित दूसरा मोहम्मद शाहिद है। रीता उपाध्याय यह हैं ललित उपाध्याय की मां, जो घर के अंदर बतौर कोच की भूमिका में रहती हैं। रीता उपाध्याय का खेल से कोई सरोकार नहीं रहा है, लेकिन बेटे की हर जरूरत को बहुत अच्छी तरह समझती हैं। बिना कहे ही ललित को समय पर नाश्ता और भोजन कराती हैं। उनका पूरा ध्यान उसकी डाइट पर रहता है। मां रीता ने कभी भी ललित को किसी चीज की कमी नहीं होने दी है।
नागेन्द्र उपाध्याय
यह है ललित के चचरे बड़े भाई, यही वह शख्स है, जिन्होंने साल 2003 में ललित को पहली बार यूपी कालेज के मैदान पर लेकर पहुंचे थे। कोच परमानंद मिश्र से हाकी का ककहरा सिखाने का आग्रह किया। नागेन्द्र भी हॉकी खिलाड़ी हैं, हालांकि इनका सफर नेशनल तक रहा, लेकिन ललित को इंटरनेशनल स्तर पर पहुंचाने की ठान ली थी। ललित के साथ साये की तरह रहते हैं। वह बताते हैं कि ललित का पूरा फोकस सिर्फ खेल पर रहता है। भगवान हनुमान जी बनारस की गलियों से टोक्यो ओलम्पिक तक पहुंचाने में एक अदृश्य शक्ति भी है। वह हैं भगवान हनुमान जी। ललित के घर में हनुमान जी का मंदिर है। बचपन से ही ललित हनुमान की सेवा करते हैं। जब भी वह घर पर रहते हैं तो उनकी सेवा वही करता है। भाई योगेन्द्र बताते हैं कि ललित हर मंगलवार को हनुमान जी को सिंदूर का लेप लगाता है। मंदिर में हनुमान जी का दर्शन करके ही वह घर से निकलता है।