घर में 85 पर्सेंट पुरुषों पर टॉर्चर
वाराणसी (ब्यूरो)। दुर्भाग्य से हमारे देश में पति के पास पत्नी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम जैसा कानून नहीं है यह टिप्पणी दो साल पहले मद्रास हाई कोर्ट ने डोमेस्टिक वॉयलेंस से जुड़े एक मामले को लेकर दी थी। सवाल उठा कि क्या पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार हो सकते हैं? तो इसका जवाब है हां। अब ऐसा हो रहा है। अब डोमेस्टिक वॉयलेंस के पीडि़तों में पुरुष भी हैं, मगर उनकी आवाज इतनी धीमी है कि वह न तो समाज को और न ही कानून को सुनाई पड़ती है। फैमिली प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के मकसद से चलाए जा रहे संस्थाओं की मानें तो डोमेस्टिक वॉयलेंस से संबंधित कंप्लेंस में करीब 50 फीसदी कंप्लेंस पुरुषों से रिलेटेड होती हैं यानी इनमें पुरुष इस वॉयलेंस का शिकार होते हैं और उत्पीडऩ करने वाली महिलाएं होती हैं। भले ही महिला उत्पीडऩ को रोकने के लिए सरकार की ओर से नियुक्त संस्थाएं कार्य कर रही हंै, लेकिन बनारस में महिला विकास मंच के नाम से कार्य कर रही संस्था ने माना है कि अब महिलाओं से कहीं ज्यादा पुरुष प्रताडि़त हो रहे हैं। पढि़ए यह रिपोर्ट.
केस-1
बड़ागांव निवासी पुरुष ने पहली पत्नी की मौत के बाद अपने तीन बच्चों की परवरिश के लिए दूसरी शादी की थी। लेकिन, कुछ दिनों बाद ही महिला पति के साथ बच्चों को प्रताडि़त करने लगी। महिला के बच्चेदानी में ट्यूमर था। जिसका पति ने इलाज भी कराया। बावजूद इसके उसकी प्रताडऩा कम नहीं हुई। मामला महिला विकास मंच पहुंचा तो संस्था ने पुलिस की मदद से दोनों के बीच समझौता करा दिया.
केस-2
लहरतारा की महिला को शादी के 10 साल बाद तक बेबी नहीं हुआ। 11वें साल वह प्रेग्नेंट हो गई। लेकिन, उसका पति अन्य महिला से एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में इनवॉल्व हो गया। इसे लेकर घर में आए दिन विवाद होता रहा। महिला विकास मंच की टीम ने करीब 8 घंटे तक थाने में बैठकर दोनों में सुलह-समझौता कराया। पति ने भी दूसरी महिला का साथ छोड़ दिया.
तीन हजार केस में 70 फीसदी सॉल्व
यह तो सिर्फ एग्जाम्पल हैं। ऐसे हजारों केस आए हैं, जिसे महिला विकास मंच के सदस्यों ने अपने सूझबूझ से पति-पत्नियों को साथ लाकर केस को साल्व किया है। ज्यादातर केस में महिलाओं से ज्यादा पुरुष अपनी पत्नियों से प्रताडि़त होते पाए गए। संस्था की अध्यक्ष वीणा मानवी ने देश के सबसे चर्चित केस चिरईगांव निवासी एसडीएम मौर्या और उसके पति आलोक मौर्या को एक साथ लाकर दोनों को बीच समझौता कराया है। दोनों ने एक-दूसरे से माफी मांग ली है।
संस्था 10 साल से स्थापित
वीणा मानवी बताती हैं कि संस्था को स्टैबलिस हुए 10 साल हो गए है। लेकिन पिछले 5 साल में यूपी, बिहार समेत ऑल ओवर इंडिया से संस्था के पास तीन हजार से ज्यादा केसेस आए हैैं। इसमें 70 परसेंट केस को सॉल्व कर दिया गया। दिलचस्प बात ये है कि अब तक जितने भी केस आए हैं उनमें मात्र 15 फीसदी महिलाएं ही उत्पीडऩ का शिकार हुई हैं। मतलब 85 पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार हैं। ज्यादातर मामलों में महिलाएं ही गलत पाई गई हैं.
कैसे सॉल्व करती हैं केस
वाराणसी सेंटर की अध्यक्ष रीता गुप्ता बताती हैं कि जब तक हम दोनों पति-पत्नी को नहीं सुनते तब तक किसी कंक्लूजन पर नहीं पहुंचते। इसमें पुलिस प्रशासन की भी मदद ली जाती है, जिसमें पुलिस कमिश्नर से लेकर एसीपी और एसएचओ तक शामिल होते हैं। इस दौरान दंपति को थाने में बुलाया जाता है, जहां दोनों की बातें सुनने के बाद उन्हें आमने सामने बिठाते हैं। इसके बाद सच सामने आता है। इस सच में ज्यादातर केसेस में पाया जाता है कि महिला ने पुरुष को ज्यादा टार्चर किया है। दंपति को समझाने के साथ दोनों को एक हजार रुपए के स्टांप पर एक बॉंड भराया जाता है और दोनों को हिदायत दी जाती है कि अगर आगे कोई कुछ किया तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
क्यों पड़ी इस मंच की जरूरत
वीणा मालवीय ने बताया कि कभी मैंने भी प्रताडऩा को झेला था। तभी मैंने यह सोचा था कि सशक्त होने के बाद मैं ऐसा संगठन बनाऊंगी जो महिलाओं को प्रताडि़त होने से बचाए, लेकिन पांच साल बाद जब काम करने के लिए आगे बढ़ी तो पता चला कि महिलाओं से ज्यादा पुरुष प्रताडि़त हो रहे हैं। फिर संस्था का टैगलाइन चेंज किया और महिला और पुरुष पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का नारा दिया। उन्होंने बताया कि जो 30 प्रतिशत केस सॉल्व नहीं होते उनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो उनकी पहुंच से दूर और फाइनांस की वजह से सॉल्व नहीं हो पाते। संस्था अपनी जेब से एक लिमिट तक ही खर्च कर सकती है।
यहां सभी का दुखड़ा सुना जाता है
जो गरीब और मजलूम होते है उनकी हम पूरी मदद करते है। हालांकि जो सक्षम है और खर्च को अफोर्ड करता वे हम उसकी भी मदद करते हैं। इस समाज में कोई एक घंटा वक्त नहीं देता किसी को, आपकी मदद करने वाला या आपकी सुनने वाला कोई नहीं है। लेकिन यह एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां सभी का दुखड़ा सुना जा रहा है। हर जगह से हारे हुए जो लोग ये सोच रहे थे कि अब हम किससे मदद ले ऐसे लोगों के लिए ही महिला विकास मंच है।
जिद है हर किसी की सुनेंगे
वीणा मानवी की मानें तो बनारस समेत यूपी, बिहार झारखंड, राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्यों में यह मंच स्थापित है। सरकार जिन संस्थाओं को भारी भरकम फंड दे रही है वे इस तरह के केस को सॉल्व करने में या तो नाकाम है या औपचारिकता पूरी कर उन्हें कोर्ट भेज दे रही है। यह न्याय नहीं है। हमारी जिद है कि हम काम करेंगे। हम लोगों की मदद ऐसे ही करते रहेंगे। हमें शासन से मदद मिले तो हम औरों से भी बेहतर कर सकते हैं.
लड़की की मां बन रही सबसे बड़ी विलन
वीना मानवी ने बताया कि आज ज्यादातर केस में महिलाओं का दोष पाया जा रहा है। पति को खाना बनाकर न देना, सास ससुर की इज्जत न करना, पति से आए दिन मारपीट करना, मायके भागना इस तरह की समस्या आम हो गई है। ऐसे में यह कह सकते हैं जो दोगी वहीं तो पाओगी। महिला ही महिला की दुश्मन बन रही है। पुरुष तो सैंडविच बनकर रह जाता है। न सास बहू को समझ रही और न बहू सास को। बसे बसाए घर को तोडऩे में सबसे बड़ी विलन लड़की की मां बन रही है। आज घर में हींग है या हल्दी खत्म हो गई यह जानकारी मायका तक में पहुंच रही है। मायके में भले ही किचन में हल्दी हो न हो लेकिन ससुराल में नहीं है तो लड़की के कर्म फूट गए। अगर लड़की की मां बेटी के बजाए दामाद से बात करें तो किसी भी घर में कोई विवाद ही न हो।
महिलाएं अपनी संस्कार भूल गई है। नई पीढ़ी की जो महिलाएं आ रही है उनकी पेशेंस लेवल जीरो है। जरा सा कुछ बोल दिया तो सीधे कोर्ट पहुंच रही है। जबकि गलत पुरुष नहीं महिलाएं पाई जा रही है। एक हजार केस में 85 फीसदी में महिलाएं गलत है। महिलाओं की पेशेंस लेवल मजबूत होनी चाहिए। मुझे भी बहुत गालियां सुनने को मिलती है। फिर भी कभी पेशेंस नहीं खोती। महिलाएं मुझ जैसी बने.
वीणा मानवी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, महिला विकास मंच
सेंटर पर हर माह 15 से 20 केस आता है। जब केस की तह तक पहुंचती हूं तो 85 से 90 फीसदी केस में महिलाएं गलत साबित हो रही हंै। आज के समय में 25 प्रतिशत भी महिलाएं प्रताडि़त नहीं है। जो भी थाने या कोर्ट पहुंच रही हंै वे सिर्फ पति को परेशान करने के मकसद से जा रही हैं.
रीता गुप्ता, जिला अध्यक्ष, महिला विकास मंच
दहेज निरोधक कानून, घरेलू हिंसा और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानूनी प्रावधान अमल में लाए गए हैं। लेकिन पुरुषों के साथ हिंसा के लिए कोई कानून नहीं। एक दशक पहले जहां एक हजार मुश्किल से मैरिड कपल्स तलाक के लिए कोर्ट पहुंचता था, अब यह आंकड़ा बढ़ गया है। पीडि़त पुरुष जब तलाक का कदम उठाते भी हैं तो उन्हें डर होता है कि कहीं उनका पक्ष सुने बिना ही क्रूर करार न दे दिया जाए।
अंशुमान त्रिपाठी, सीनियर एडवोकेट, डिस्टिक्ट कोर्ट
अगर आप डोमेस्टिक वॉयलेंस के शिकार हैं तो इस नंबर पर दर्ज करा सकते हैं अपनी शिकायत। 8317048620, 9696771276