तीन पीढ़ी से खिला रहे नानखटाई
वाराणसी (ब्यूरो)। काशी के लक्खा मेला रथयात्रा की नानखटाई के क्या कहने। एक बार जो खाएं बार-बार खाने का मन चाहे, हो भी न क्यों, जहां प्रभु जगन्नाथ रथ पर स्वयं विराजमान हो वहां की नानखटाई खाने के लिए शहर ही नहीं पूरे पूर्वांचल के जिले से लोग आते है। दुकानदार भी प्रभु के इतने बड़े भक्त होते है कि वह ंकहीं भी हो लेकिन इस तीन दिवसीय मेले में नानखटाइ्र्र की दुकान लगाने जरूर आते है। इन दुकानदारों में तो कई ऐसे दुकानदार है जो पिछले कई पीढ़ी से रथयात्रा मेला में नानखटाई लोगों को खिला रहे है.
एक हफ्ते से तैयारीरथयात्रा मेला के नजदीक आने की आहट के साथ ही नानखटाई का लाजवाब स्वाद दिलोदिमाग पर छा जाता है। इसके लिए एक हफ्ते पहले से ही दुकानदार तैयारी करना शुरू कर देते है। इसके लिए एक से एक वॅरायटी की नानखटाई बनाने में जुट जाते है। मेला शुरू होते ही मेला क्षेत्र में जगह-जगह नानखटाई की दुकानें भी स्वरूप लेने लगती हैं। मेले में भगवान के दर्शन को आने वाले नानखटाई का भोग लगाकर इसे चाव से खाते हैं और दुकानदार भी लोगों को बड़े चाव से खिलाते है।
तीन पीढिय़ों से बना रहेतीन पीढिय़ों से नानखटाई का व्यवसाय करने वाले राकेश गुप्ता का कहना है कि रथयात्रा मेले में पिछले कई सालों से नानखटाई की दुकान लगा रहे है। उनकी यह तीसरी पीढ़ी है। मेला क्षेत्र से ही छोटी दुकान से लेकर नानखटाई बनाने व बेचने का काम शुरू किया था। मेले से एक महीना पहले ही सूजी, मैदा, गरी व मेवे की नानखटाई का स्टाक तैयार करते थे। फिर मेले के एक सप्ताह पहले से ही मेला क्षेत्र में दुकान सज जाती थी। दादा के बाद पिता ने उनकी विरासत को इस मुकाम तक पहुंचाया कि आज लोग उनके नाम से इस दुकान तक पहुंचते हैं और डालडा व शुद्ध देशी घी से निर्मित तरह-तरह की नानखटाई का स्वाद लेते हैं.
सेंकाई में सावधानी जरूरी दीपक गुप्ता बताते हैं कि नानखटाई बनाने में मेहनत संग काफी समय लगता है। सामग्री तैयार कर सांचे मे भरकर नानखटाई का स्वरूप दिया जाता है। उसके बाद तंदूर में लकड़ी का कोयला जला उस पर सेंकाई होती है। जिसमें ध्यान दिया जाता है कि ये जले नहीं, वरना स्वाद खराब हो जाता है. 160 से 500 रुपये किलोसूजी और मैदा की डालडा घी से बनी नानखटाई 160 रुपये किलो, गरी की 170, काजू-मैदा, देशी घी की 500, मेवे की 500 व बेसन की 180 रुपये किलो है। उनका कहना है कि पिछले दो-तीन वर्षों से नानखटाई के फ्लेवर में लगातार इजाफा हुआ है। अभी तक 20 से 25 तरह के स्वाद में नानखटाई बेचा करते थे। इस बार यह संख्या बढ़कर 40 से अधिक हो चुकी है। ग्राहकों की पसंद को देखते कई वॅरायटी की नानखटाई तैयार की जाती है।
इन फ्लेवर में नानखटाई सूजी, मैदा, बेसन, खोवा, मेवा के अलावा चॉकलेट, स्ट्राबेरी, वनीला सहित विभिन्न स्वाद में नानखटाई तैयार की जाती है। इसके अलावा नारियल, काजू, किसमिस, पिस्ता, किशमिश, मखाना की भी नानखटाई बनायी जाती है। दुकानदारों ने बताया कि गत वर्ष की तुलना में इस बार नानखटाई 10 से 20 प्रतिशत महंगा है। रथयात्रा का नानखटाई काफी पसिद्ध है। मेले में पूर्वांचल के जिलों से लोग प्रभु का दर्शन करने आते है और यहां की नानखटाई खरीदकर खाते है और अपने परिवार के लिए लेकर भी जाते है। विकास गुप्ता, दर्शनार्थी पिछले कई सालों से रथयात्रा मेले में नानखटाई की दुकान लगा रहे है। हमारी यह दूसरी पीढ़ी है। कहीं भी रहते है रथयात्रा मेला में दुकान लगाने के लिए जरूर आते है. राकेश गुप्ता, दुकानदारपहले तो नानखटाई आठ से दस प्रकार के तैयार करते थे। लेकिन लोगों की मांग के अनुसार अब कई फ्लेवर में नानखटाई को बनाते है.
दीपक गुप्ता, दुकानदार